पिछले महीने 18 अगस्त को भारत सरकार के संचार, इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने बंगलुरु में त्रिआयामी यानी थ्रीडी प्रिंटिंग प्रौद्योगिकी से बने एक डाकघर के भवन का उद्घाटन किया। देश में इस प्रौद्योगिकी से निर्मित यह पहला भवन है, जो सामान्य बजट से तीस फीसद सस्ता और वर्तमान भवन-निर्माण की प्रक्रिया की तुलना में कम यानी पैंतालीस दिनों में बनने के लक्ष्य के बावजूद तेंतालीस दिन में ही बन कर पूरा हो गया था।

स्याही नहीं, अलग-अलग उपयोग के लिए अलग-अलग धातु लगेंगे

डिजिटल क्रांति के दौर में यह प्रयोग निश्चित रूप से खुशी का विषय है, क्योंकि जो व्यापक समाज आज तक किसी साफ्टवेयर से घर का नक्शा बनाकर और उसका प्रिंट निकाल कर खुश हो जाता था, उसने अब सीधे घर ही ‘प्रिंट’ करना शुरू कर दिया है। इसमें सिर्फ स्याही नहीं, बल्कि अलग-अलग उपयोग के लिए अलग-अलग धातु का प्रयोग हो रहा है। तब यह देखने की बात होगी कि यह भविष्य में घर के साथ और क्या-क्या ‘प्रिंट’ कर सकता है। यह अपने आप में कारखाना हो सकता है, जिसमें सब कुछ साफ्टवेयर संचालित है और वैश्विक स्तर पर इसके उत्पादों को धरातल पर उतारने के लिए कृत्रिम मेधा का अधिकतम उपयोग हो रहा है।

ढांचागत विकास के साथ ही लघु और कुटीर उद्योग को नया रूप मिलेगा

ऐसे में यह कहने में किसी को संकोच नहीं होना चाहिए कि त्रिआयामी यानी थ्रीडी प्रिंटिंग प्रौद्योगिकी भारत जैसे विकासशील देश में विनिर्माण के क्षेत्र में एक आमूलचूल बदलावों की पहल कर सकती है। जाहिर है, इसमें लागत और समय दोनों कम लगेंगे, साथ ही सुदूर और दुर्गम स्थानों पर विनिर्माण का काम न्यूनतम जोखिम के साथ संपन्न किया जा सकता है। ढांचागत विकास के साथ ही यह प्रौद्योगिकी लघु और कुटीर उद्योग को नया रूप दे सकती है।

मानव के साथ जानवरों के हड्डी वाले अंग, खिलौने, घर में रखने वाले सजावट के सामान, फर्नीचर, बर्तन आदि बनाने के लिए ऐसे उपक्रमों की संख्या तेजी से बढ़ेगी और पारंपरिक मशीनें धीरे-धीरे पीछे छूटती जाएंगी और डिजिटल प्रौद्योगिकी की भूमिका बढ़ती जाएगी। उत्पादों के डिजाइन और स्वरूप में विविधता और आकर्षण और अधिक बढ़ेगा। उद्योगों की एक ही सांचे से बड़े पैमाने पर उत्पादन की प्रवृत्ति पर नए सिरे से विचार करने के लिए उपभोक्ताओं का दबाव बढ़ेगा।

ऐसे में कृत्रिम मेधा आधारित थ्रीडी प्रिंटिंग के एक नई औद्योगिक क्रांति के आधार बनने की पूरी संभावना है। अंकटाड की प्रौद्योगिकी और नवाचार रपट- 2023 में कहा गया है कि थ्रीडी प्रिंटिंग का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। वैश्विक स्तर पर 2020 में इसका मूल्य बारह बिलियन डालर था, जो 2030 तक बढ़कर इक्यावन बिलियन डालर होने की उम्मीद है। साथ ही यह उद्योग कुल मिलाकर तीन से पांच मिलियन नई कुशल नौकरियां पैदा करेगा। इस क्रम में सहायक नौकरियों की भी मांग तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि उद्योग को इंजीनियरों, साफ्टवेयर विकासकर्ता, सामग्री वैज्ञानिकों के साथ बिक्री, विपणन और अन्य विशेषज्ञों की आवश्यकता पड़ेगी।

भविष्य में कई और क्षेत्रों में होगा कृत्रिम मेधा का उपयोग

कृत्रिम मेधा एक माध्यम है, इसका उपयोग समाज और व्यक्ति के कमोबेश सभी पहलू में हो सकता है। वर्तमान में जिन क्षेत्रों में इसका उपयोग नहीं दिख रहा है, उसमें इसका उपयोग भविष्य में नहीं होगा, यह बात शायद ही कोई समझदार व्यक्ति स्वीकार करे। उदाहरण के लिए विगत कई वर्ष से गणतंत्र दिवस के सार्वजनिक समारोह में सीसीटीवी कैमरों के माध्यम से आतंकवादियों को खोजने का प्रयोग कृत्रिम मेधा के भरोसे से ही चल रहा है, जो चेहरे पहचान कर पूर्व चिह्नित आतंकवादी या अपराधी की सार्वजनिक उपस्थिति और सक्रियता से पुलिस नियंत्रण कक्ष में सुरक्षाकर्मियों को आगाह कर सकता है।

इसी तरह, एक प्रयोग रेलवे शुरू कर रहा है, जिसमें यात्रियों के सामान को उसके साथ जोड़कर उसकी चोरी की संभावना पर सुरक्षाकर्मियों को संकेत भेज सकता है। इसी क्रम में कृत्रिम मेधा के आधार पर थ्रीडी प्रिंटिंग से देश में समुद्री पुल एवं एक मानचित्र के आधार पर सीमा पर चारदिवारी का निर्माण संभव है। किसी व्यक्ति के दांत या पैर की हड्डी बनाकर इलाज में चिकित्सकों का सहयोग और मरीजों को लाभ पहुंचाने का काम हो रहा है।

आज कृत्रिम मेधा की व्यावसायिक संलिप्तता लगभग हर उद्योग के विकास और स्वचालन में पाई जा सकती है। इसलिए देश में इसकी व्यापकता के आंकड़ों का सटीक अनुमान लगाना तो कठिन है, लेकिन बीती फरवरी में नैसकाम के हवाले से सरकार ने संसद में बताया कि भारत में कृत्रिम मेधा से लगभग 4,16,000 पेशेवरों के लिए रोजगार के सृजन का अनुमान है। इसके अलावा, सन् 2035 तक कृत्रिम मेधा द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था में 957 बिलियन अमेरिकी डालर के अतिरिक्त योगदान देने की उम्मीद है।

इसके वर्तमान वैश्विक बाजार में 2020 की तुलना में 2021 में निजी निवेश 103 फीसद बढ़कर 96.5 बिलियन डालर हो गया था। अकेले अमेरिका में उद्योगों और व्यवसायों में कृत्रिम मेधा आधारित कुशल लोगों की मांग तेजी से बढ़ी है। 2010 और 2019 के बीच ऐसे लोगों की मांग में दस गुना वृद्धि हुई।

हालांकि भारतीय संदर्भों में इससे सतर्क होने की भी आवश्यकता है, क्योंकि इन स्थितियों में कुशल कामगारों की जरूरत तो बनी रहेगी, लेकिन अकुशल कामगारों के रोजगार का संघर्ष और बढ़ेगा। यही नहीं, जब छोटे व्यवसायों के उत्पाद-निर्माण में स्वचालन बढ़ेगा, तो अकुशल या जरूरत के मानकों पर अक्षम लोगों की बड़े पैमाने पर छंटनी होगी, जो आजकल अक्सर सुनने को भी मिल जाती है। यह नहीं भूलना चाहिए कि यातायात के तमाम साधनों के बीच आज भी कोलकाता में हाथ से खींचने वाला रिक्शा इसी तर्क पर बना हुआ है कि ऐसे रिक्शा चालकों की कुशलता इसी कार्य में सर्वोत्तम है। यह उनके जीवन-भरण का एकमात्र साधन के साथ मजबूरी भी है।

एक माध्यम के तौर पर कृत्रिम मेधा का नकारात्मक उपयोग भी समांतर रूप से चल रहा है। त्रिआयामी यानी थ्रीडी प्रिंटिंग प्रौद्योगिकी की सहायता से हम फोरेंसिक साक्ष्य तैयार कर सकते हैं, कृत्रिम मेधा से इनका तथ्यगत विश्लेषण कर सकते हैं, जिनसे अपराध को रोकने में सहायता मिल सकती है, लेकिन इन्हीं माध्यमों से शातिर अपराधों को भी बढ़ावा मिल रहा है। सेंसर आधारित ड्रोन से किसी मरीज तक जल्दी से दवा पहुंचाई जा रही है, लेकिन ऐसे ही ड्रोन से हथियारों और नशा की सामग्रियों की अंतरराष्ट्रीय तस्करी आज एक चुनौती बन कर उभरी है।

दूसरी तरफ यह सोचने का समय है कि हमारी डिजिटल उपस्थिति से मिले डेट दरअसल शोधों के विकास और सहायक ‘मशीन लर्निंग’ में केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन हम इन सब प्रक्रियाओं से पूरी तरह से या तो अनभिज्ञ हैं या इसके लिए कुछ कर पाने में असमर्थ। देश की लगभग डेढ़ सौ करोड़ की आबादी में से एक बड़ी संख्या में लोग किसी न किसी रूप में इस डिजिटल दुनिया से जुड़े हैं और यह हर जुड़ाव डिजिटल संसाधन तैयार कर रहा है, जिनका मुक्त दोहन निजी कंपनियों द्वारा हो रहा है।

ध्यान रखने बात है कि डिजिटल दुनिया में नित्य बदलाव हो रहे हैं, लेकिन इसके नियमन का काम आज भी सन् 2000 में बने नियम से काम चलाया जा रहा था। हालांकि अभी संसद से डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 पास हुआ है, जिसमें भारतीय डेटा संरक्षण बोर्ड बनाने की बात हुई है।

यह बोर्ड कैसे भारतीय डिजिटल डाटा का संसाधन और निजता की सुरक्षा करता है, यह तो समय बताएगा, लेकिन कृत्रिम मेधा से तेजी से बन रहे बाजार में हमारी मौलिक भागीदारी किस रूप में हो रही है, यह विचारणीय है, ताकि विश्व में सबसे बड़ी आबादी और सबसे अधिक इंटरनेट डाटा खपत करने वाले देश के रूप में हमारी भूमिका सिर्फ मजदूर या खरीदार तक ही सीमित न रहे। अगर आज इन उपायों पर तेजी से अमल नहीं किया गया, तो यह न तो समय के साथ न्याय होगा और न ही हमारी क्षमताओं की अलग से वैश्विक पहचान होगी।