राजनैतिक और निजी रिश्तों में फर्क कर पाने में असमर्थ मौजूदा राजनीति के कड़वे-विषैले दौर में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की यह तस्वीर जेठ की दोपहरी में खिले गुलमोहर-सा एहसास कराती है। फोटो पुरानी है। दो अक्टूबर 2015 की। संसद में गांधी जयंती मनाई जा रही थी। बापू के चित्र पर पुष्प अर्पित करने का क्रम चल रहा था। आडवाणी भी चले। सोनिया ने संभवतः उनको किंचित लड़खड़ाता देखा। उन्होंने लपक कर हाथ का सहारा दिया। आडवाणी ने सहारा स्वीकार कर लिया। दिमाग पर बिना कोई शिकन डाले।

यह बेहतरीन फोटो निकली है इंडियन एक्सप्रेस के छायाकार अनिल शर्मा की स्मृति मंजूषा से। फोटो को नई जिंदगी मिली इसे सोमवार को ट्विटर पर डालने से। शर्मा जी ने फोटो चिपकाई नहीं कि लोग तारीफों के पुल बांधने लगे। इक्का-दुक्का को छोड़कर सारी टिप्पणियां मधुर ही रहीं। रविंदर सिंह रॉबिन सीधे फोटोग्राफर को तीन कैप्शनों का ऑप्शन देकर पूछते हैं कि आप कौन सा कैप्शन देतेः डूबते को तिनके का सहारा, PM in waiting helping each other,साथी हाथ बढ़ाना साथी रे, एक अकेला थक जाएगा।


इसके जवाब में इस सुंदर तस्वीर को खींचने वाले ने उतना ही सुंदर उत्तर देकर प्रश्नकर्ता को लाजवाब कर दिया है। दिनेश शर्मा लिखते हैं कि मैं तो केवल एक ही शब्द लिखता और वह होता शिष्टाचार। बापू एक सोच नाम के ट्विटर हैंडिल ने लिखा हैः यह वह भाव है जिसको आप सीखकर नहीं अपना सकते। यह जन्मजात होता है। इसे संस्कार कहते हैं, जो कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता का एक स्तम्भ है।

कमोबेश यही बात प्रियरंजन कुमार भी कहते हैं लेकिन ऐसा कहते हुए वे आज के विषाक्त सियासी माहौल को भी याद करते हैं। लिखते हैं कि मोदी और शाह ने भारतीय राजनीति की पटकथा ही बदल कर रख दी है।

पंकज शंकर अपने भावों का इजहार एक कविता से करते हैः जब से हमारा प्रजातंत्र हुआ है बीमार,इतिहास के पन्नों में सिमट गया शिष्टाचार। बेजा टिप्पणी सिर्फ एक है जिसमें आडवाणी के लिए भद्दे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। लिखा गया है कि सोनिया गांधी के इस जेस्चर के लिए उन्हें विदेशी महिला कहने और अभद्र टिप्पणी के लिए माफी मांग लेनी चाहिए।

राजनीति में कट्टर विरोधी होने के बाद भी सोनिया और आडवाणी के बीच रिश्ते हमेशा अच्छे रहे हैं। आमने-सामने होने पर मुस्करा कर अभिवादन करना और किसी समारोह में अगल बगल सीटें मिल जाने पर बातचीत करना दोनों के लिए सामान्य बात रही है। इसीलिए एक बार तमिलनाडु के दिग्गज स्वर्गीय करुणानिधि ने कहा भी था कि उन्हें इन कट्टर विरोधियों के बीच मधुर रिश्तों पर रश्क होता है।

दरअसल, एक मौके पर जब करुणानिधि को चारो तरफ से बधाई मिल रही थी, अन्नाद्रमुक खामोशी साध गई थी। तभी उनको सोनिया और आडवाणी के रिश्तों की याद आ गई।