लॉ मिनिस्टर किरेन रिजिजू ने न्यायपालिका से संबंधों पर कहा है कि हमारे बीच मतभेद हैं लेकिन ऐसे नहीं जिन्हें टकराव कहा जाए। उनका कहना था कि कुछ लोग जो भारत की तरक्की को नहीं देख सकते, वो हमारे बीच गफलत पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। रिजिजू असम में एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। इसी प्रोग्राम में मौजूद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने दो टूक कहा कि सरकार और जूडिशरी के बीच संबंध संविधान में बताए गए प्रावधानों के मुताबिक चलेंगे। लेकिन देश के लोगों का विश्वास और आस्था ऐसी न्यायपालिका में है, जो न केवल स्वतंत्र हो बल्कि तीखे तेवर वाली हो।

असम के गुवाहाटी हाईकोर्ट के प्लेटिनम जुबली समारोह में रिजिजू ने कहा कि कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को एक साथ मिलकर चलना होगा। सीजेआई चंद्रचूड़ ने मन बना लिया है कि तीनों स्तंभों के बीच के संबंध सौहाद्रपूर्ण रहे। उनका कहना था कि न्यायपालिका और सरकार के बीच के मतभेद लोकतंत्र का एक हिस्सा ही तो है। उनका कहना था कि ये कुछ इसी तरह से समझा जा सकता है जैसे बार और कोर्ट एक दूसरे के बगैर काम नहीं कर सकते। दोनों एक सिक्के के ही दो पहलू हैं। दोनों के साथ आए बगैर न्याय नहीं दिया जा सकता है।

कॉलेजियम के मसले पर सुप्रीम कोर्ट की आलोचना कर चुके हैं रिजिजू और उप राष्ट्रपति

कॉलेजियम के मसले पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच की तनातनी पिछले कुछ अरसे से सुर्खियों में रही है। हालात कितने ज्यादा विकट हो चुके हैं कि कानून मंत्री और उप राष्ट्रपति ओपी धनखड़ सार्वजनिक तौर पर कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना कर चुके हैं। दोनों का कहना है कि जजों की नियुक्ति का काम सरकार का है। संविधान ने ये व्यवस्था दी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट खुद को संविधान से ऊपर मानकर काम कर रहा है।

बॉम्बे लायर्स एसोसिएशन ने कानून मंत्री और उप राष्ट्रपति को बर्खास्त करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर भी की थी। लेकिन अदालत ने उसे रिजेक्ट कर दिया था। उसके बाद एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पटीशन दायर की है। अभी ये याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

सीजेआई की दो टूक- कॉलेजियम से बेहतर सिस्टम नहीं

दूसरी तरफ सीजेआई चंद्रचूड़ का नजरिया साफ है। वो कई बार कह चुके हैं कि जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम से बेहतर कोई व्यवस्था नहीं है। उनका मानना है कि कोई भी सिस्टम बेदाग नहीं हो सकता। लेकिन मौजूदा दौर में जजों की नियुक्ति के लिए ये सिस्टम ही सबसे ज्यादा कारगर है। उनका मानना है कि जब तक न्यायपालिका दबाव से दूर रहेगी तब तक लोगों का विश्वास और आस्था उसमें बहाल रहेगी।