2002 में जम्मू-कश्मीर के सांबा में एक सैन्य हॉस्पिटल में संक्रमित खून चढ़ाने की वजह से एड्स का शिकार हुए भारतीय वायुसेना के एक सैनिक को मुआवजे के तौर पर 1.41 करोड़ रुपये की राशि में से 18 लाख रुपये दे दिए गए हैं। इसके अलावा बचे हुए पैसे सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में जमा करवा दिए हैं। इस बात की जानकारी आईएएफ ने सुप्रीम कोर्ट को दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 26 सितंबर को सैनिक की याचिका पर फैसला देते हुए भारतीय वायुसेना को उन्हें मुआवजे के तौर पर करीब 1.5 करोड़ देने का निर्देश दिया था। 13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर आतंकी हमले के बाद में शुरू किए गए ऑपरेशन पराक्रम में सैनिक बीमार हो गए थे और उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में एडमिट करवाया गया था। यहां पर उन्हें एक यूनिट ब्लड चढ़ाना पड़ा था।

सुप्रीम कोर्ट ने समीक्षा की मांग वाली याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अप्रैल के महीने में सितंबर 2023 के फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिका को सिरे से खारिज कर दिया था। कोर्ट ने 2023 के फैसले में जारी निर्देशों की अवमानना का आरोप लगाने वाली याचिका मंगलवार को बेंच के सामने सुनवाई के लिए आई। एएसजी विक्रमजीत बनर्जी ने कहा कि उन्होंने मामले में हलफनामा दायर किया है। जस्टिस संजय करोल और केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि कोर्ट की रजिस्ट्री में जमा की गई राशि को सैनिक को जारी कर दिया जाना चाहिए।

बेहतर मेडिकल सेवाओं पर क्या बोला सुप्रीम कोर्ट

एक वकील ने सैनिक की मेडिकल जांच के बारे में बात की और कहा कि बेंच इसके लिए उन्हें एम्स में इलाज के लिए भेजने पर विचार कर सकती है। बेंच ने इस पर कहा कि वह शख्स अजमेर में रहता है। अगर उन्हें किसी भी तरह की परेशानी ना हो तो उन्हें जयपुर में भी अच्छी मेडिकल सुविधा मिल सकती है। इसके बाद एएसजी को एमिकस के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए कहा और मामले की दो हफ्ते बाद सुनवाई होगी।

5 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 18 लाख रुपये की रकम उस शख्स को दी जाए और बाकी बची हुई राशि को दो हफ्ते के अंदर कोर्ट की रजिस्ट्री को जमा की जाए। बेंच ने यह भी निर्देश दिया कि उन्हें डिसेबिलिटी पेंशन का भी भुगतान किया जाए। अपने साल 2023 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह माना जाता है कि अपील दायर करने वाली याचिकाकर्ता मुआवजे का पूरा हकदार है। मेडिकल जांच की लापरवाही की वजह से मुआवजे की राशि 1,54,73,000 रुपये मानी गई। आईएएफ और भारतीय सेना को अलग-अलग जिम्मेदार ठहराया गया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अपील कर्ता को करीब 6 हफ्ते के अंदर मुआवजे की राशि का भुगतान कर दिया जाए। इतना ही नहीं डिसेबिलिटी पेंशन से संबंधित बकाया भी देने होंगे।