भारत की अर्थव्यवस्था के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम यानी एमएसएमई अत्यंत उपयोगी है। यह क्षेत्र रोजगार सृजन, उत्पादन वृद्धि और निर्यात में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। इससे देश के आर्थिक विकास में तेजी आती है। अप्रैल 2025 से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम का जो वर्गीकरण किया गया है, उसके अनुसार सूक्ष्म उद्यम वह है, जहां संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में निवेश 2.5 करोड़ रुपए और कारोबार दस करोड़ रुपए से अधिक नहीं है। लघु उद्यम वह है, जहां संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में निवेश 25 करोड़ रुपए और कारोबार 100 करोड़ रुपए से अधिक नहीं है। मध्यम उद्यम वह है, जहां संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में निवेश 125 करोड़ रुपए और कारोबार 500 करोड़ रुपए से अधिक नहीं है।

उद्यम पोर्टल पर सात अप्रैल 2025 तक देश में पंजीकृत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की संख्या 6.23 करोड़ है। इन्होंने 26.66 करोड़ लोगों को रोजगार दिए हैं। एमएसएमई क्षेत्र ने भारत के कुल निर्यात में 45 फीसद से अधिक योगदान किया है। यह क्षेत्र देश के आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाता है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग की सूची में विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के कई प्रकार के व्यवसाय शामिल हैं। सूक्ष्म उद्यम में कंघी, छाते के फ्रेम और प्लास्टिक खिलौने आदि जैसे हजारों उत्पाद सम्मिलित हैं। लघु उद्यम में विनिर्माण क्षेत्र में इंजीनियरिंग जैसे स्टील अलमारी, वाल्व, वायर कटर आदि हैं। सेवा क्षेत्र में आइटी समाधान जैसे सर्वर बैंक बनाना, ‘एप्लिकेशन’ सेवा प्रदाता, स्मार्ट कार्ड अनुकूलन आदि सम्मिलित हैं। मध्यम उद्यमों में विनिर्माण क्षेत्र में सिरेमिक और कांच उत्पाद जैसे छत की टाइलें, कांच की फर्श टाइलें, ग्रेनाइट और सेवा क्षेत्र में प्लेसमेंट सेवाएं, प्राकृतिक सुगंध, फोटोकापी केंद्र आदि सेवाएं सम्मिलित हैं।

सकल घरेलू उत्पाद में 29 फीसद से अधिक का योगदान

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम देश के सकल घरेलू उत्पाद में 29 फीसद से अधिक का योगदान करते हैं। विनिर्माण क्षेत्र में भी इनका योगदान 33 फीसद है। यह क्षेत्र कुल निर्यात में 45 फीसद से अधिक का योगदान करते हैं। भारत सरकार ने एमएसएमई के विकास के लिए कई योजनाओं और कार्यक्रमों की शुरूआत की है। इन उद्यमों के लिए संघ भी हैं जो इनके विकास में सहायता करते हैं। इनके लिए राष्ट्रीय पोर्टल पर कई उपयोगी लिंक और संसाधन उपलब्ध हैं, जिनके माध्यम से इन क्षेत्रों में कार्यरत उद्यमियों को विभिन्न प्रकार की सेवाएं और सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।

तरक्की की राह में आबादी का दबाव, पढ़ी-लिखी पीढ़ी ने अपना ली सीमा

सरकार ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाओं और पहलों को लागू किया है, इनमें सरकारी ‘ई-मार्केटप्लेस’ (जीईएम) और प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना और विश्वकर्मा योजना आदि सम्मिलित है। सरकार ने एमएसएमई में निवेश, वित्तीय सहायता, छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायों को सहायता करने के लिए आत्मनिर्भर भारत कोष, आपातकालीन क्रेडिट गारंटी योजना भी बनाई हुई है। ये योजनाएं परिचालन लागत को पूरा करने और अपनी क्षमताओं का विस्तार करने या नई परियोजनाओं को शुरू करने में सहायता करती हैं। सरकार ने इन उद्यमों से अन्य बड़े उद्योगों द्वारा ली गई सेवाओं और क्रय किए गए उत्पादों का समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के लिए कानूनी प्रावधान किए हैं। इनके अनुसार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम से क्रय किए उत्पादों और प्राप्त सेवाओं के लिए 45 दिन के भीतर हो, यह व्यवस्था की गई है।

सरकार ने इस क्षेत्र में ऋण की उपलब्धता की कई योजनाएं बनाई

भुगतान में 45 दिनों से अधिक की देरी होने पर सूक्ष्म, लघु और मध्यम आपूर्तिकर्ता सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अधिनियम के तहत गठित सूक्ष्म और लघु उद्यम सुविधा परिषद से संपर्क कर सकते हैं। एमएसएमईडी अधिनियम की धारा 16 के तहत, आपूर्तिकर्ताओं को भुगतान में देरी होने पर रिजर्व बैंक द्वारा अधिसूचित बैंक दर के तीन गुना मासिक चक्रवृद्धि ब्याज के साथ भुगतान करना होता है। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय मौजूदा उद्यमों को सहयोग और नए उद्यम शुरू करने के प्रयासों को प्रोत्साहन देकर संबंधित मंत्रालयों, विभागों, राज्य सरकारों और इससे जुड़े अन्य पक्षों के सहयोग से इस क्षेत्र के विकास और विस्तार में सहायता करता है।

पानी, कर्ज और पाबंदियों में घिरा पाकिस्तान; भारत के सामने नाकाम रणनीति और बिगड़ती अर्थव्यवस्था

इन सभी सेवाओं और सुविधाओं के बावजूद इस क्षेत्र की समस्याएं भी कम नहीं हुई हैं। इस क्षेत्र के लिए जितनी बुनियादी ढांचे की जरूरत है उतना उपलब्ध नही है। हालांकि सरकार ने इस क्षेत्र में ऋण की उपलब्धता की कई योजनाएं बनाई है। फिर भी जमीनी स्तर पर उन योजनाओं के मध्यम से ऋण और गारंटी प्राप्त करना आसान नहीं है। विशेष रूप से छोटे और नए व्यवसायों के लिए वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त करना कठिन होता है। बड़े व्यवसायों द्वारा समय पर भुगतान के प्रावधानों के बावजूद कई तकनीकी बाधाएं उपस्थित कर समय पर भुगतान नहीं किया जाता, जिससे उनकी वित्तीय स्थिरता प्रभावित होती है।

बड़े व्यवसायों की तुलना में एमएसएमई के पास सीमित संसाधन

एमएसएमई को सरकार की योजनाओं के अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार की वित्तीय आवश्यकताओं के लिए अक्सर बैंक से लिए गए ऋण पर उच्च ब्याज दरें चुकानी पड़ती हैं, जिससे उनकी लागत बढ़ जाती और प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है। इस क्षेत्र की प्राकृतिक संसाधन और परिवहन की पर्याप्त सुविधाओं तक पहुंच नहीं होती है या ये सुविधाएं उनको अधिक लागत पर उपलब्ध होती हैं, जिससे उनकी परिचालन लागत बढ़ जाती है।

दूरदराज के क्षेत्रों में बहुत से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को बिजली और पानी की अपर्याप्त आपूर्ति और कमजोर संचार सुविधाएं मिल पाती हैं, जिससे उनकी उत्पादन लागत प्रभावित होती है। एमएसएमई को घरेलू और वैश्विक बाजार में बड़े उपक्रम के उत्पादों और सेवाओं के मामले में मूल्य और गुणवत्ता में कड़ी प्रतिस्पर्धा का भी सामना करना पड़ता है। बड़े व्यवसायों की तुलना में एमएसएमई के पास अक्सर सीमित संसाधन होते हैं। इस कारण भी वे बड़े उद्योगों से पिछड़ जाते हैं। एमएसएमई में प्रौद्योगिकी और कौशल की कमी भी दृष्टिगत होती है। वित्तीय कमजोरी के कारण उनके लिए कई बार तकनीक अपनाने में कठिनाई होती है, जिससे वे अपनी उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार नहीं कर पाते हैं। कुछ एमएसएमई में श्रमिकों के पास आवश्यक कौशल की कमी होती है, जिससे उनकी उत्पादन की गति और गुणवत्ता प्रभावित होती है।

पिघलती बर्फ बहता जीवन, क्या हम सुन रहे हैं विनाश की आहट? बड़ी त्रासदी है जलवायु परिवर्तन की चेतावनी

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम को कर अनुपालन और श्रम कानून में बदलाव की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनको बहुत-सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस क्षेत्र को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के प्रयासों के बावजूद, विनियमों और कर पंजीकरण का अनुपालन मुश्किल बना हुआ है, जिससे पूंजी मिलने में कठिनाई होती है और ये उपक्रम बंद हो रहे हैं। एमएसएमई के लिए ही अच्छी विपणन व्यवस्था भी बड़ी समस्या है। इसके लिए पर्याप्त विज्ञापन और समुचित वितरण व्यवस्था का होना भी जरूरी है। असंगत और छिटपुट विपणन प्रयासों से कोई परिणाम नहीं मिलता।

इन सभी समस्याओं और चुनौतियों के बावजूद, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम भारत की अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। सरकार और संबंधित पक्षकारों द्वारा यदि मिल-जुल कर इनके विकास और विस्तार के लिए और अधिक प्रयास किए जाएं, तो ये उपक्रम बेरोजगारी दूर करने, निर्यात को बढ़ावा देने और सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।