सरकार ने आठ नवंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान किया था। वहीं इसकी घोषणा के छह साल बाद देश में जितना कैश मार्केट में है, उतना कभी नहीं रहा है। इससे पता चलता है कि कैश के माध्यम से भुगतान का तरीका जनता को अभी भी रास आ रहा है। रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के आंकड़ों के अनुसार 21 अक्टूबर 2022 तक देश में कुल 30.88 लाख करोड़ रुपये का कैश उपलब्ध है, जबकि 4 नवंबर 2016 को यह आंकड़ा 17.97 लाख करोड़ रुपये था।
नोटबंदी के दो हफ्ते बाद 25 नवंबर 2016 को 9.11 लाख करोड़ रुपये जनता के पास नकद थे लेकिन अब इसमें 239 फीसदी की वृद्धि हुई है। नवंबर 2016 में नोटबंदी होने के बाद 4 नवंबर 2016 को जनता के पास 17.97 लाख करोड़ रुपये की नकदी थी लेकिन जनवरी 2017 में यह घटकर 7.8 लाख करोड़ रुपये रह गई।
जनता के पास मुद्रा से तात्पर्य उन नोटों और सिक्कों से है जिनका उपयोग लोग लेन-देन, व्यापार और सामान खरीदने के लिए किया जाता है। हालांकि कुल चलन मुद्रा (currency in circulation) जब निकालते हैं तो उसमे बैंकों के पास पड़ी नकदी को शामिल नहीं किया जाता है।
सिस्टम में नकदी लगातार बढ़ रही है, भले ही सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कैश लेस समाज, भुगतान के डिजिटलीकरण और विभिन्न लेनदेन में नकदी के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने पर जोर दिया है। हालांकि कई विशेषज्ञों ने नोटबंदी का विरोध किया था।
हालांकि डिजिटल भुगतान हाल के वर्षों में धीरे-धीरे बढ़ रहा है। त्योहारी सीजन के दौरान नकदी की मांग अधिक रहती है क्योंकि बड़ी संख्या में व्यापारी अभी भी एंड-टू-एंड ट्रांजैक्शन के लिए नकद भुगतान पर निर्भर हैं। लगभग 15 करोड़ लोगों के पास अभी भी बैंक खाता नहीं होने के कारण नकद लेन-देन का एक प्रमुख माध्यम बना हुआ है। इसके अलावा टियर चार शहरों में 90 प्रतिशत ई-कॉमर्स लेनदेन में भुगतान के लिए नकद का उपयोग करते हैं, जबकि टियर एक शहरों में यह आंकड़ा 50 प्रतिशत है।