अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सिख समुदाय में नाराजगी है। सिख समुदाय शीर्ष अदालत की तरफ से फैसले में उनके धर्म को ‘कल्ट’ के रूप में जिक्र किए जाने से नाराज है। समुदाय का मानना है कि अदालत ने इस मामले में ऐसी किसी आदमी की गवाही पर भरोसा किया है जिसने साल 1510-1511 में गुरु नानक देव जी के अयोध्या जाने के उद्देश्य को गलत तरीके से परिभाषित किया गया है।

द वायर की खबर के अनुसार केंद्री गुरु सिंह सभा ने चंडीगढ़ में शीर्ष न्यायालय के फैसले की सार्वजनिक रूप से आलोचना की। सभा ने इस फैसले को सिख समुदाय का ‘अपमान’ बताया।  अदालत ने धर्म और संस्कृति का अध्ययन करने वाले और सिख कल्ट की ऐतिहासिक किताबें में रुचि रखने वाले राजिंदर सिंह की गवाही पर भरोसा किया। सिंह को हिंदू पक्ष की तरफ से अपने दावे के समर्थन में अदालत में गवाह के रूप में पेश किया गया था।

खबर में बताया गया है कि शीर्ष अदालत ने आगे राजिंदर सिंह के सबूतों को नोट भी किया। दिल्ली की एक वकील नीना सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को इस संबंध में एक पत्र भी लिखा है। पत्र में कहा गया है कि वह और सिख वकीलों का एक दल जल्द ही चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से मिलकर फैसले के उस पैरे में सुधार की मांग करेगा जिसमें सिख धर्म को ‘कल्ट’ बताया गया है।

खबर के अनुसार नीना सिंह ने कहा कि कि यह अपमानजनक है और सिख धर्म के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि जज को ऐसे गवाह को फटकार लगानी चाहिए जो हमारे जैसे शांतिपूर्ण और स्वतंत्र धर्म के खिलाफ इस तरह की भाषा का प्रयोग किया। सिख समुदाय इससे हैरान है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले और गवाह की गवाही से आहत है। सिख धर्म के बुद्धिजीवी भी गुरुनानक देव जी के बारे में कथित रूप से गलत जनम साखी या उनके जीवन के बारे में लिखे जाने से गुस्सा है।

अदालत में कहा गया था कि गुरु नानक देव जी अयोध्या में कथित राम जन्मभूमि पर ‘दर्शन’ के लिए गए थे। सिंह ने कहा कि गुरु नानक जी मक्का और अयोध्या में भगवान के एक ही स्वरूप का प्रचार-प्रसार करने गए थे ना कि दर्शन करने। सिख संप्रदाय के लोग फैसले में निहंग सिख के जिक्र और उनके हवन पूजा करने की बात से भी नाराज है। इन लोगों का कहना है कि सिख धर्म में हवन पूजा का रिवाज ही नहीं है।