पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजंसी लगाने के बाद 1977 में एक खुफिया रिपोर्ट में बहुमत मिलने का पूर्वानुमान जताए जाने के कारण चुनाव का आदेश दिया था और चुनाव हारने के बाद राहत भी महसूस की थी।

यह खुलासा इंदिरा के करीबी सहायक रहे आरके धवन ने मंगलवार को किया। उन्होंने कहा कि प.बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे इमरजंसी के ‘शिल्पकार’ थे। उन्होंने इंदिरा पर देश में व्याप्त हालात पर काबू पाने के लिए कठोर कदम उठाने पर जोर डाला था।

धवन ने कहा कि इंदिरा गांधी को ऐसा कभी नहीं लगा कि उनकी हार के लिए किसी भी तरह संजय गांधी जिम्मेदार थे। वे इमरजंसी के दौरान अपने बेटे की गतिविधियों से वाकिफ भी नहीं थीं और उन तक कभी संजय के खिलाफ कोई शिकायत पहुंची भी नहीं।

धवन ने एक टीवी कार्यक्रम में कहा कि संजय को कुछ मुख्यमंत्री और नौकरशाह अपने इशारों पर चलाते थे और यह कह कर उन्हें उनकी मां की तुलना में ज्यादा ‘ताकतवर’ होने का अहसास कराते थे कि वे ज्यादा भीड़ खींचते हैं। यह बात संजय के मन में घर कर गई थी।

इंदिरा के निजी सचिव रहे धवन ने बताया-‘इंदिरा रात का भोजन कर रही थीं, तभी मैंने उन्हें बताया कि वे हार गई हैं। उनके चेहरे पर राहत का भाव था। उनके चेहरे पर कोई दुख या शिकन नहीं थी। उन्होंने कहा था-‘भगवान का शुक्र है, मेरे पास अपने लिए समय होगा।’

धवन ने दावा किया कि इतिहास इंदिरा के साथ न्याय नहीं कर रहा है और नेता अपने स्वार्थ के चलते उन्हें ‘बदनाम’ करते हैं। उन्होंने कहा कि वे राष्ट्रवादी थीं और अपने देश के लोगों से उन्हें बहुत प्यार था। उन्होंने कहा-‘उन्हें आइबी की रिपोर्ट पर भरोसा था। पीएन धर ने उन्हें खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट सौंपी थी जिसके तत्काल बाद उन्होंने चुनावों की घोषणा कर दी थी। यहां तक कि सिद्धार्थ शंकर रे ने भी पूर्वानुमान जताया था कि इंदिरा को 340 सीटें मिलेंगी।’

धवन ने कहा कि रे ने इमरजंसी के बहुत पहले इंदिरा को पत्र लिख कर कुछ कड़े कदम उठाने का सुझाव दिया था। उन्होंने यह भी कहा था कि तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को इमरजंसी लागू करने के लिए उद्घोषणा पर हस्ताक्षर करने में कोई आपत्ति नहीं है।

धवन ने बताया कि जब इंदिरा ने जून, 1975 में अपना चुनाव रद्द किए जाने का इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश सुना था तो उनकी पहली प्रतिक्रिया इस्तीफे की थी और उन्होंने अपना इस्तीफा लिखवाया था। उन्होंने कहा कि वह त्यागपत्र टाइप किया गया, लेकिन उस पर हस्ताक्षर कभी नहीं किए गए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी उनसे मिलने आए और सबने जोर दिया कि उन्हें इस्तीफा नहीं देना चाहिए।’

संजय की पत्नी मेनका गांधी के बारे में धवन ने कहा कि मेनका संजय के साथ हर जगह जाती थीं, इसलिए उन्हें हर उस चीज की जानकारी थी जो संजय ने इमरजंसी के दौरान किया था। मेनका अब भाजपा में हैं और केंद्रीय मंत्री हैं। उन्होंने कहा कि अब वे यह दावा नहीं कर सकतीं कि उन्हें कुछ पता नहीं था।