हिमाचल प्रदेश के शिमला में इस समय बवाल मचा हुआ है। संजौली मस्जिद को लेकर आर-पार की स्थिति बन गई है, दो समुदायों के बीच में तनाव बढ़ता दिख रहा है। एक तरफ अगर बीजेपी के कार्यकर्ता जमीन पर उतर विरोध कर रहे हैं, कांग्रेस सरकार के मंत्री भी सुर में सुर मिला रहे हैं। लेकिन क्या सही में इस पूरे मामले को सिर्फ हिंदू-मुस्लिम के चश्मे से देखना चाहिए? जो दिखाया जा रहा है, क्या वही पूरा सच भी माना जाए?

संजौली मस्जिद का पूरा विवाद समझिए

अब इसका जवाब ना है क्योंकि जिसे कुछ लोग हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा मान रहे हैं, असल में वो सिर्फ अवैध अतिक्रमण से जुड़ा हुआ एक विवाद है। इस मस्जिद को लेकर कहा जा रहा है कि 1947 से भी पुरानी है, पहले यहां पर एक टेलर की दुकान थी, फिर लोगों ने ही चंदा देकर मस्जिद का निर्माण करवाया। अब शिमला का नियम है जिसमें साफ कहा गया है कि आप ढाई मंजिल से ज्यादा बड़ी कोई भी इमारत खड़ी नहीं कर सकते। लेकिन जिस संजौली मस्जिद की बात हो रही है, वो वर्तमान में पांच मंजिल की बन चुकी है।

एक कागज तो ये भी बताता है कि जिस जमीन पर मस्जिद बनी है, 1967 से वो हिमाचल सरकार के पास है। इसके ऊपर किसी भी सरकारी जमीन पर अगर धार्मिक स्थल का निर्माण होना भी है, तो उसके कुछ नियम होते हैं। अगर उन नियमों का पालन होगा तो कोई विवाद नहीं, लेकिन अगर नियमों को ही ताक पर रखा जाएगा तो तनाव भी बढ़ेगा और बुलडोजर कार्रवाई भी होती दिख जाएगी। अब सवाल उठता है कि आखिर यह नियम हैं क्या?

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मंदिर-मस्जिद बनाने का नियम क्या?

असल में जिस भी जिले में सरकारी जमीन पर मस्जिद या मंदिर का निर्माण होना है, तो उस स्थिति में वहां के डीएम को एक आवेदन दिया जाएगा। उस आवेदन में अपना उदेश्य बताया जाएगा। उसके बाद डीएम चेक करेगा कि इस इलाके में मंदिर या मस्जिद बनाने से कानून व्यवस्था की कोई स्थिति तो पैदा नहीं हो जाएगी, कहीं दो समुदायों के बीच में तनाव तो नहीं बढ़ेगा। अगर डीएम पूरी तरह संतुष्ट हो जाएगा, उस स्थिति में वहां मंदिर या मस्जिद का निर्माण हो सकता है।

अतिक्रमण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

अब समझने वाली बात यह है कि मंदिर-मस्जिद को लेकर सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक ने समय-समय पर कई आदेश दिए हैं,निचोड़ यही है- अवैध तरीके से ना मंदिर बनेगा ना मस्जिद। इस साल फरवरी में एक मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- हम इस बात को लेकर बिल्कुल स्पष्ट हैं, बात चाहे मंदिर की हो या मस्जिद की… अवैध निर्माण नहीं किया जा सकता है। बड़ी बात यह है कि उस मामले में मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि सरकारी जमीन खाली पड़ी थी, सरकार ने उसका इस्तेमाल नहीं किया, इसलिए मस्जिद बनाई गई।

सिर्फ मस्जिदों पर नहीं हो रही कार्रवाई

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा, वो सभी धर्मों के लिए नजीर है। सर्वोच्च अदालत ने जोर देकर बोला कि अगर जमीन खाली थी तो क्या आप जमीन पर कब्जा कर लेंगे. वो जमीन तो सरकार की है ना, वो इस्तेमाल करें या ना करें। आपको तो उस पर कब्जा करने का कोई अधिकार नहीं है। अब यह आदेश काफी कुछ बताता है, लेकिन फिर भी कुछ लोगों के मन में धारणा है कि मस्जिदों के खिलाफ कार्रवाई हो रही है, मंदिरों को बख्शा जा रहा है। अगर ऐसी धारणा है तो दिल्ली हाई कोर्ट का एक स्टेटमेंट भी समझना जरूरी है।

दिल्ली हाई कोर्ट का अतिक्रमण वाला आदेश

पिछले साल दिल्ली हाई कोर्ट ने भी एक आदेश दिया था। असल में PWD डिपार्टमेंट को एक फुटपाथ बनाना था, अब एक इलाका ऐसा आया जहां मंदिर और मस्जिद दोनों की दीवारें रुकावट बन गईं। जानते हैं हाई कोर्ट ने क्या बोला- सरकारी जमीनों पर धार्मिक स्थलों का अतिक्रमण नहीं हो सकता है, उस कीमत पर तो बिल्कुल नहीं जब विकास उससे बाधित हो रहा हो। अब यह आदेश भी बताने के लिए काफी है कि अतिक्रमण किसी भी तरह का बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इस बात को कई राज्य सरकारें भी समझती हैं, इसी वजह से समय-समय पर मंदिरों के खिलाफ भी कार्रवाई देखने को मिली है।

उत्तराखंड में 45 मंदिरों पर हुआ एक्शन

इसका एक उदाहरण तो उत्तराखंड है जहां धामी सरकार ने 45 मंदिरों को साफ कर दिया था। अवैध अतिक्रमण बताकर ही उन मंदिरों को हटाया गया था, इसी तरह 2021 के योगी सरकार के आदेश में भी स्पष्ट कहा गया था कि सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों पर बनने वाले धार्मिक स्थलों के निर्माण पर रोक लगेगी। यह बताने के लिए काफी है कि कार्रवाई सिर्फ अवैध अतिक्रमण के खिलाफ होती है, उसे धर्म से जोड़ देना गलत है। हां इस समय हिमाचल में कांग्रेस के लिए दुविधा जरूर खड़ी हो रही है।

हिमाचल में कांग्रेस क्यों बुरा फंसी?

अगर कांग्रेस खुलकर इस संजौली मस्जिद के खिलाफ खड़ी हो जाए तो उस स्थिति में वो अपना मुस्लिम वोट खो देगी, उसे इसके छिटकने का डर रहेगा। वही अगर उसने मस्जिद को ना हटाने की बात कर दी, उस स्थिति में उस पर तुष्टीकरण का आरोप लगाने के लिए बीजेपी तैयार रहेगी। इसी वजह से देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए अभी इधर खाई उधर कुंआ वाली स्थिति बनी हुई है।