एक तरफ जहां विपक्षी दल शीला दीक्षित को उत्तर प्रदेश चुनाव में कांग्रेस का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने पर चुटकी ले रही हैं। वहीं दूसरी तरफ, दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री ने जिम्मेदारी को शायद बेहद गंभीरता से लिया है। 78 साल की शीला का ज्यादातर वक्त इन दिनों दिल्ली में नहीं, लखनऊ में बीतता है। रविवार को दीक्षित अपनी ससुराल उन्नाव में थी और अगले चार दिनों पर वह राज्य हेडक्वार्टर में रहेंगी। यहां वे पार्टी के नेताओं से मिलेंगी और चुनावों को लेकर कांग्रेस की तैयारियों पर बात करेंगी। इसके अलावा शीला पत्रकारों और कार्यकर्ताओं से भी बातचीत कर सकती हैं। दीक्षित ने पार्टी के लोगों को भरोसा दिलाया है कि वे अपनी यात्राओं के दौरान लखनऊ के पार्टी ऑफिस में कैम्प करेंगी। जहां शीला यूपी के चुनावी समर में बुजुर्ग होने के बावजूद बेहद चुस्त नजर आ रही हैं, नए नए प्रभारी बनाए गए राज बब्बर पद संभालने के बाद से ही लखनऊ के पार्टी कार्यालय में नहीं रुक सके हैं। पिछले सप्ताह, पार्टी कार्यकर्ताओं का बताया गया था कि राज बब्बर शुक्रवार से लखनऊ में कैम्प करेंगे, लेकिन उनका कार्यक्रम रद हो गया।
शीला का जन्म कपूरथला (पंजाब) में हुआ है, पर उनकी शादी यूपी में हुई। उनके ससुर उमा शंकर दीक्षित उन्नाव के रहने वाले थे। वह बंगाल के गवर्नर थे। उनके बेटे विनोद दीक्षित से शीला दीक्षित की शादी हुई थी। विनोदी आईएएस थे। जब वह आगरा के डीएम थे, तब शीला समाजसेवा में सक्रिय थीं। बाद में वह राजनीति में आ गईं। वह 1984-89 के बीच कन्नौज से सांसद भी रह चुकी हैं। हालांकि, उसके बाद लगातार तीन चुनावों में उन्हें हार का मुंह भी देखना पड़ा। शीला दीक्षित 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रही हैं। उन्हें सरकार चलाने और चुनाव जिताने का लंबा अनुभव रहा है। यूपी में कांग्रेस करीब तीन दशक से सत्ता से दूर है। ऐसे में शीला का अनुभव उसके काम आ सकता है।