Shashi Tharoor targeted Congress: आज से पचास साल पहले देश ने एक ऐसा दौर देखा था जिसे भारतीय लोकतंत्र का सबसे दागदार चैप्टर माना जाता है। यह दौर आपातकाल का था। अब खुद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने अपनी ही पार्टी पर इसको लेकर सवाल उठाए हैं। उन्होंने जबरदस्ती नसबंदी को लेकर कांग्रेस पर सीधी चोट की।
मलयालम अखबार ‘दीपिका’ में गुरुवार को छपे एक लेख में शशि थरूर ने साफ-साफ कहा कि आपातकाल को केवल इतिहास की एक गलती कहकर भुलाया नहीं जा सकता, बल्कि इसे एक सबक की तरह याद रखा जाना चाहिए। उन्होंने लिखा कि इंदिरा गांधी की सरकार ने 1975 से 1977 के बीच अनुशासन और व्यवस्था के नाम पर जो किया, वह कई बार निर्दयता में बदल गया। इसका सबसे बदनाम उदाहरण है – जबरन नसबंदी।
लोगों को जबरन अस्पताल ले जाया गया और बिना मर्जी ऑपरेशन कर दिए गए
थरूर ने इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि उस दौर में संजय गांधी के नेतृत्व में नसबंदी अभियान चलाया गया, जिसमें गरीबों को जबरन पकड़कर उनकी नसबंदी कर दी गई। खासकर ग्रामीण इलाकों में प्रशासन को एक निश्चित संख्या पूरी करनी होती थी, और इसके लिए बल प्रयोग और डर का माहौल बनाया गया। लोगों को जबरन अस्पताल ले जाया गया और बिना मर्जी के ऑपरेशन कर दिए गए।
दिल्ली में झुग्गियों को बिना कोई वैकल्पिक व्यवस्था किए उजाड़ दिया गया
थरूर ने इस बात का भी जिक्र किया कि दिल्ली जैसे शहरों में झुग्गियों को बिना कोई वैकल्पिक व्यवस्था किए उजाड़ दिया गया। हजारों लोग एक ही रात में बेघर हो गए और उनकी कोई सुध नहीं ली गई। इन सारे कामों को ‘साफ-सफाई’ और ‘शहर सुधार’ के नाम पर जायज ठहराया गया, लेकिन असल में यह सत्ता का दुरुपयोग था।
शशि थरूर ने अपने लेख में यह भी कहा कि लोकतंत्र कोई गारंटी नहीं है, इसे हर दिन बचाना और मजबूत करना पड़ता है। उन्होंने चेतावनी दी कि आज भी कई बार सत्ता में बैठे लोग ‘स्थिरता’ और ‘राष्ट्रहित’ के नाम पर लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचलने की कोशिश कर सकते हैं।
थरूर का मानना है कि आज का भारत 1975 वाला भारत नहीं है, हम ज्यादा मजबूत और आत्मविश्वासी लोकतंत्र हैं। हालांकि खतरे अब भी मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि संविधान की रक्षा करने वालों को हमेशा सतर्क रहना होगा क्योंकि सत्ता का केंद्रीकरण, असहमति की आवाज को दबाना और अधिकारों की अनदेखी आज भी कभी भी हो सकती है।
शशि थरूर ने इमरजेंसी को लेकर कांग्रेस की अपनी ही सरकार की गलतियों को न सिर्फ स्वीकार किया, बल्कि देश को याद दिलाया कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए आंखें खुली रखना जरूरी है, चाहे सत्ता में कोई भी हो।