2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी बिसात बिछना शुरू हो गई है। एक तरफ फिर बीजेपी पीएम मोदी के चेहरे को आगे कर अपना दांव खेल रही है तो वहीं इस बार विपक्ष ने खुद को इंडिया नाम देकर नए समीकरण साधने का काम किया है। दोनों तरफ से जीत की बात की जा रही है, एक कह रहा है कि मोदी से किसी का मुकाबला नहीं, तो दूसरा कह रहा है कि बीजेपी का इस बार सफाया तय है। अब इन दावों के बीच वर्तमान स्थिति कुछ अलग ही कहानी बयां कर रही है।

इंडिया गठबंधन में दरार?

पिछले 48 घंटों में दो ऐसी घटनाएं हुई हैं जो सियासी रूप से इंडिया गठबंधन के सामने कई सवाल खड़े कर देती हैं। पहली घटना शरद पवार और अजित पवार की एक उद्योगपति के घर पर सीक्रेट मीटिंग, दूसरी घटना दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच में सीटों को लेकर छिड़ी लड़ाई। इन दोनों ही घटनाओं की एक कॉमन कड़ी है- इंडिया गठबंधन में पैदा होती दरार। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि शरद पवार की भतीजे अजित से जो मुलाकात हुई है, उसे लेकर कई तरह की अटकलें शुरू हो चुकी हैं।

राजनीतिक गलियारों में चर्चा चल रही है कि क्या एक बार फिर शरद पवार कोई बड़ा वाला खेल करने जा रहे हैं। ये खेल एनडीए से हाथ मिलाने का, भतीजे को फिर माफ करने का और सबसे बड़ा इंडिया गठबंधन की नांव को बीच मझधार में डुबोने का। अब ये चर्चा भी इसलिए शुरू हुई क्योंकि खुद शरद पवार ने कहा कि कुछ लोग उन्हें मनाने की कोशिश में लगे हैं। वो चाहते हैं कि वे बीजेपी से हाथ मिला लें। अब एनसीपी प्रमुख ने जरूर सामने से आकर इनकार कर दिया कि वे बीजेपी में जाने वाले हैं, लेकिन उनकी मुलाकात की टाइमिंग ने सवाल तो उठा दिए हैं।

शरद पवार का हर फैसला, क्यों विपक्ष की बढ़ रही धड़कन?

उस मीटिंग के बाद एक कांग्रेस नेता ने तो यहां तक कह दिया कि शरद पवार को कैबिनेट का ऑफर दिया गया है। यानी कि डील करने की पूरी कोशिश हुई है। अब इसमें कितनी सच्चाई, कोई नहीं जानता, लेकिन इंडिया गठबंधन में अविश्वास की खाई जरूर पैदा हो गई है। तभी तो महाराष्ट्र कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने कह दिया कि राहुल गांधी, शरद पवार से बात करने वाले हैं. संजय राउत भी उनके साथ मंथन करेंगे। ये बताने के लिए काफी है कि कहने को शरद पवार इंडिया गठबंधन के सबसे अनुभवी नेता हैं, लेकिन उनके कई कदम विपक्ष को भी असमंजस की स्थिति में डाल रहे हैं।

यहां ये समझना भी जरूरी है कि शरद पवार का अनुभव इंडिया गठबंधन के लिए एक्स फैक्टर है जो कई राज्यों में उनकी मदद कर सकता है। उन्हें ऐसे ही राजनीति का मराठा क्षत्रप नहीं कहा जाता है। उनकी रणनीति, उनके समीकरण, उनकी सोशल इंजीनियरिंग काफी ठोस रहती है, बीजेपी के दांव को भी वे बखूबी समझते हैं। इसी वजह से पवार का साथ रहना विपक्ष के लिए जरूरी है। अब होना जरूरी है, लेकिन क्या ऐसा हो पा रहा है? शरद पवार के इस समय जिस तरह के फैसले दिख रहे हैं, इंडिया गठबंधन में सिर्फ कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है।

अजित से क्या नाराज नहीं चाचा शरद?

मतलब जब शिवसेना में दो फाड़ हुई, उद्धव ठाकरे तुरंत कोर्ट चले गए। शिंदे को सीधी चुनौती दी गई, पार्टी को लेकर दावा ठोका गया। लेकिन एनसीपी प्रमुख उल्टा अजित से तीन बार मुलाकात कर चुके हैं, पहले वाली दिख रही जुबानी तल्खी भी कहीं गायब हो गई है। इसके ऊपर जब संसद से दिल्ली सेवा बिल पारित हुआ, एनसीपी के किसी भी गुट ने कोई व्हिप जारी नहीं की, मतलब यहां भी बड़ा खेल देखने को मिला। इसी वजह से शरद पवार के तमाम आश्वासन के बावजूद भी इंडिया गठबंधन को भरोसा नहीं कि एनसीपी प्रमुख उनके साथ रहने वाले हैं या नहीं।

शरद पवार के साथ एक ये भी परेशानी चल रही है कि वे पीएम मोदी के साथ मंच साझा करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। हाल ही में जब पीएम मोदी को लोकमान्य तिलक अवार्ड से सम्मानित किया गया था, एनसीपी प्रमुख वहां मौजूद रहे। ये भी तब हुआ जब संजय राउत से लेकर कांग्रेस तक कोई ऐसा नहीं चाहता था। यानी कि पवार अपने मन की भी कर रहे हैं, विपक्ष के रहने की बात भी कर रहे हैं। लेकिन उनकी भागीदारी और विपक्षी एकता में सक्रियता को लेकर सवाल है। ऐसा इसलिए क्योंकि मुंबई वाली बैठक का जिम्मा उद्धव ठाकरे और कांग्रेस ने ले रखा है। जबकि महाराष्ट्र में एनसीपी और पवार ज्यादा बड़ी ताकत हैं।

दिल्ली में सीट शेयरिंग ने बढ़ाई टेंशन, AAP होगी अलग?

अब ये बात तो शरद पवार की हुई, दिल्ली में बैठे अरविंद केजरीवाल भी इंडिया गठबंधन के लिए कोई छोटी सिरदर्दी नहीं हैं। यहां भी एक तरफ साथ आने की बात हो रही है तो दूसरी तरफ कोई भी समझौता नहीं करना चाहता है। समझौता सीट बंटवारे को लेकर, समझौता विचारधारा को लेकर है। कांग्रेस ने कहा है कि वो दिल्ली की सभी सात सीटों पर उम्मीदवार उतारने जा रही है। जिस मीटिंग के बाद ये फैसला हुआ उसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे तक साथ रहे। जोर देकर कहा जा रहा है कि कांग्रेस का अलग रास्ता है।

अब ये अलग रास्ता कहीं इंडिया गठबंधन में कई पार्टियों को अलग ना कर दे? इस समय इसकी पूरी संभावना बताई जा रही है क्योंकि कांग्रेस के इस रवैये से आम आदमी पार्टी खुश नहीं है। यहां ये समझना जरूरी है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली और पंजाब में अपनी प्रचंड बहुमत वाली सरकार चला रही है। दोनों ही राज्यों में उसने कांग्रेस को हरा ही सत्ता हासिल की है। ऐसे में लोकसभा की इन दो राज्यों से निकलने वाली 20 सीटों पर तो पार्टी अपना दावा जरूर ठोकने जा रही है। वहीं क्योंकि कांग्रेस भी यहां मुकाबला करना चाहती है, ऐसे में कौन झुकेगा, ये भी विपक्ष के सामने बड़ी चुनौती बन गई है।

महत्वाकांक्षी AAP, कांग्रेस कैसे बैठाएगी बैलेंस?

वैसे आम आदमी पार्टी के सपने तो सिर्फ दिल्ली-पंजाब तक सीमित नहीं रहने वाले हैं। उसके लिए गुजरात भी अब एक अहम राज्य बन गया है। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में उसने वहां पर पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी। माना गया कि कांग्रेस ने जो अपना सबसे खराब प्रदर्शन वहां किया, उसमें आप का बड़ा योगदान रहा। ऐसे में लोकसभा चुनाव में 26 सीटों पर कैसे सभी को साथ लेकर चला जाता है, ये अहम सवाल है।

अब इंडिया गठबंधन के सामने ये जो चुनौतियां आ रही हैं, इसकी भविष्यवाणी गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली सेवा बिल पर बहस के दौरान कर दी थी। उन्होंने कहा था कि इस बिल के पारित होने के बाद अरविंद केजरीवाल इंडिया गठबंधन से अलग हो जाएंगे। उनकी तरफ से ये भी कह दिया गया था कि विपक्ष में कई दूल्हे बनने को बैठे हैं, ऐसे में मोदी के खिलाफ चेहरा कौन होगा, ये अभी नहीं पता। अब अमित शाह ने तंज के अंदाज में ये बात बोली, लेकिन इंडिया गठबंधन के सामने ये सही मायनों में सबसे बड़ी चुनौती है। धुर विरोधियों को साथ कैसे लाया जाए, साथ आ जाएं तो सीट शेयरिंग के लिए क्या फॉर्मूला लगाया जाए। वो काम भी हो जाए तो पीएम उम्मीदवार का चेहरा किसे बनाए, यानी कि कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन और सवाल ही सवाल।