भाजपा सांसद शांता कुमार के विस्फोटक पत्र ने बिहार में राजग विरोधी दलों को एक बड़ा चुनावी हथियार दे दिया है। यह पत्र बिहार चुनाव पर असर डाल सकता है। इससे पहले यशवंत सिन्हा ने यह कहकर भाजपा नेतृत्व पर ताने मारे थे कि पार्टी ने 75 साल से अधिक के लोगों को ‘ब्रेन डेड’ घोषित कर दिया है।

भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह ने ललित मोदी को भगोड़ा करार देते हुए कहा था कि उसकी किसी को मदद नहीं करनी चाहिए थी। कीर्ति आजाद तो इससे आगे बढ़कर भाजपा के एक बड़े नेता को आस्तीन का सांप कह चुके हैं।

बहरहाल बुजुर्ग शांता कुमार ने साबित कर दिया है कि उनका ब्रेन डेड नहीं है। केंद्र में सत्ता पाने के 15 महीने के भीतर ही ऐसी स्थिति भाजपा के लिए चिंताजनक बताई जा रही है। वह भी ऐसे मौके पर जबकि बिहार का चुनाव सामने है। लालू प्रसाद के ‘जंगल राज’ के खिलाफ भाजपा अपनी नैतिक धाक के साथ चुनाव मैदान में उतर सकती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। शांता कुमार का पत्र बिहार में राजग विरोधी नेताओं के लिए एक बड़ा चुनावी हथियार साबित हो सकता है।

बिहार के राजनीतिक हलकों में भी व्यापमं कांड की चारा घोटाले से तुलना की जाने लगी है। ऐसे में चुनाव प्रचार के दौरान राजग नेतागण, राजद-जद (एकी) गठबंधन के खिलाफ आरोप के जो तीर चलाएंगे , वे कितने कारगर होंगे? हालांकि पूरे देश के लिए यह सवाल बिहार चुनाव की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है कि कैसे महज 15 महीने के भीतर ही एक लोकप्रिय नेता में पुरानी चमक नहीं रही।

सवाल है कि मोदी और भाजपा से निराश होकर लोग अब कहां जाएंगे ? क्या उसी कांग्रेस के पास जिसने खुद को सुधारने की क्षमता खो दी है, या क्षेत्रीय दलों के पास जिनमें से अधिकतर दल अतिशय जातिवाद, भीषण भ्रष्टाचार और घनघोर वंशवाद में लिप्त हैं। केंद्र और कुछ राज्यों की भाजपा सरकारों पर जिस तरह के आरोप लग रहे हैं , उस स्थिति में नरेंद्र मोदी, संघ और पार्टी से यह उम्मीद की जाती थी कि वे शुद्धीकरण करेंगीं ताकि आने वाले दिनों में भाजपा उसी गति को प्राप्त नहीं करे, जहां आज माकपा और कांग्रेस पहुंच गईं हैं।

लगता है कि अनैतिक कामों में लिप्त लोगों का भाजपा में इतना अधिक प्रभाव बढ़ गया है कि पार्टी नेतृत्व उनके समक्ष लाचार है। वैसे यह खतरा तो सामने है कि कार्रवाई करने पर कम से कम राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मोदी सरकार के स्थायित्व पर खतरा पैदा कर ही सकती हैं।

राजस्थान से भाजपा के 25 सांसद हैं। विधानसभा में भाजपा के 163 सदस्य हैं। इनमें से अधिकतर जन-प्रतिनिधि मुख्यमंत्री के समर्थक हैं। मुख्यमंत्री को नाराज करने पर राजस्थान की भाजपा सरकार तो चली ही जाएगी, केंद्र सरकार को भी अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए राजग के सहयोगी दलों पर निर्भर हो जाना पड़ेगा।

पर सवाल है कि क्या किसी भी कीमत पर सरकार चलाते रहने का वही खमियाजा नरेंद्र मोदी को नहीं भुगतना पड़ेगा जो मनमोहन सिंह और कांगेस को भुगतना पड़ा? इसी के साथ देश को भी भुगतना पड़ेगा क्योंकि मोदी सरकार मनमोहन सरकार से कई मामलों में बेहतर काम कर रही है। हालांकि अच्छा काम करने के बावजूद अधिकतर जनता भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करती।