आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता और वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष एक बार फिर सोशल मीडिया पर ट्रोल्स का शिकार हुए हैं। आशुतोष ने एक लेख लिखा है जिसमें उन्होंने मोदी सरकार को ज़्यादा निरंकुश बताया है। आशुतोष ने अपने इस लेख तो ट्वीट कर शेयर किया है। जिसे शेयर करते ही यूजर्स आशुतोष पर निशाना साधने लगे और उन्हें ट्रोल करने लगे।
वरिष्ठ पत्रकार ने लेख शेयर कर लिखा “आशुतोष लिखते हैं- ज़्यादा निरंकुश हुई मोदी सरकार, मजबूत सत्ता के सामने शर्मनाक रूप से संस्थाओं का दंडवत होना क्या है?” उनके इस ट्वीट पर एक यूजर ने लिखा “लोकतंत्र में जनता के द्वारा चुना हुआ शासक निरंकुश कैसे हो गया? ये कमी संविधान की है या संस्थाओं की? संविधान में जनता के अधिकारों से ज्यादा राजनीतिज्ञों को विशेषाधिकार प्राप्त है। अपराधी या आपराधिक प्रवृत्ति वाला भी देश की सत्ता पर अपनी पकड़ बना लेता है तो कौन जिम्मेदार है??
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एक अन्य यूजर ने लिखा “अरे कांग्रेस की तरफ से नहीं मिलेगा राज्यसभा का टिकट जनता सब समझती है तुम जैसे दरबारी लोगो की आदत तुम लोगो को केवल विरोध करना है चाहे देश का विरोध ही क्यो ना करना पड़े कौन सी संस्था को दंडवत करवा दिया झूठे।” एक ने लिखा “एक परिवार के आगे 50 वर्षों से दण्डवत करने वाले आप आज ये सवाल पूछ रहे हैं?? आप शवासन कीजिए वही ठीक है।”
लोकतंत्र में जनता के द्वारा चुना हुआ शासक निरंकुश कैसे हो गया? ये कमी संविधान की है या संस्थाओं की? संविधान में जनता के अधिकारों से ज्यादा राजनीतिज्ञों को विशेषाधिकार प्राप्त है। अपराधी या आपराधिक प्रवृत्ति वाला भी देश की सत्ता पर अपनी पकड़ बना लेता है तो कौन जिम्मेदार है??
— #सत्यसारथी – नरेंद्र (@SATYASAARTHI) May 31, 2020
अरे कांग्रेस की तरफ से नही मिलेगा राज्यसभा का टिकट जनता सब समझती है तुम जैसे दरबारी लोगो की आदत तुम लोगो को केवल विरोध करना है चाहै देश का विरोध ही क्यो ना करना पडे कोनसी संस्था को दंडवत करवा दिया झूठे
— Team SCB हीरा (@Heera51059946) May 31, 2020
एक परिवार के आगे ५० वर्षों से दण्डवत करने वाले आप आज ये सवाल पूछ रहे हैं ?? आप शवासन कीजिए वही ठीक है
— Priyanka sharma (@Aadishakti_101) May 31, 2020
आशुतोष ने अपने लिख में लिखा “मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा हो गया है। पिछले एक साल में मोदी सरकार और ज़्यादा अलोकतांत्रिक और निरंकुश हुई है। लोकतंत्र के जिन खंभों पर संविधान की रक्षा की जिम्मेदारी थी, वे पूरी तरह दंडवत दिखाई दिए। सीएए विरोधी आवाज़ को बेरहमी से कुचला गया और न्यायपालिका आम आदमी के पक्ष में खड़ी नहीं दिखी। जामिया, जेएनयू और दिल्ली दंगों के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट का यही रुख रहा। ये स्थिति मुझे बेहद निराश करती है। “

