Sengol Controversy: नई लोकसभा के गठन के बाद आज राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू के संबोधन से पहले एक बड़ा बवाल संगोल को लेकर शुरू हो गया है। समाजवादी पार्टी के लोकसभा सांसद आर के चौधरी ने मांग की है कि संसद में लगे सेंगोल को हटाकर संविधान की कॉपी लगाई जाए। उन्होंने सांसद पद की शपथ लेने के बाद ही प्रो-टेम स्पीकर को चिट्ठी लिखी थी और कहा था कि संगोल राजा-महाराजाओं का प्रतीक है, इसलिए इसे हटाया जाना चाहिए।

दरअसल, आरके चौधरी मोहनलालगंज सीट से सपा के सांसद हैं। उन्होंने कहा कि सेंगोल की जगह संसद में संविधान की एक विशाल प्रति लगाई जानी चाहिए, सांसद के रूप में शपथ लेने के बाद विरोध दर्ज कराते हुए चौधरी ने प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब को चिट्ठी लिखी था। जिसमें स्पीकर की कुर्सी के बगल में सेंगोल की मौजूदगी पर सवाल उठाए थे।

सेंगोल देखकर रह गया हैरान

प्रोटेम स्पीकर को लिखे अपने पत्र में सपा सांसद ने कहा था कि आज मैंने इस सम्माननीय सदन में शपथ ली कि मैं कानून द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, लेकिन मैं सदन की कुर्सी के दाईं ओर सेंगोल को देखकर हैरान रह गया। महोदय, हमारा संविधान भारत के लोकतंत्र का एक पवित्र दस्तावेज है, जबकि सेंगोल राजतंत्र का प्रतीक है।

सांसद आरके चौधरी ने आगे कहा कि हमारी संसद लोकतंत्र का मंदिर है, किसी राजा या राजघराने का महल नहीं है। मैं आग्रह करना चाहूंगा कि संसद भवन में सेंगोल हटाकर उसकी जगह भारतीय संविधान की विशालकाय प्रति स्थापित की जाए।

नई संसद के उद्घाटन के दौरान हुआ था स्थापित

बता दें कि नए संसद भवन के निर्माण के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में संसद भवन के भीतर स्पीकर की कुर्सी के पास सेंगोल स्थापित किया गया था। सेंगोल को तमिलनाडु की एक मंदिर से लाया गया था और इसे बड़े ही धूमधाम से स्थापित किया गया था। अब सपा सांसद ने इसपर सवाल खड़े कर दिए हैं और इसे हटाने की मांग कर दी है।

क्या है सेंगोल का इतिहास

सेंगोल के इतिहास का जिक्र करें तो यह सदियों पुराना बताया जाता है। इसका रिश्ता चोल साम्राज्य से रहा है। इतिहासकारों की मानें तो चोल साम्राज्य में राजदंड सेंगोल का इस्तेमाल सत्ता के हस्तांतरण के लिए किया जाता था। ‘राजदंड’ सेंगोल भारत की स्वतंत्रता से जुड़ा एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रतीक है। जब अंग्रेजों ने भारत की आजादी का ऐलान किया था तो सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर सेंगोल का इस्तेमाल किया गया था।

लॉर्ड माउंटबेटन ने 1947 में सत्ता के हस्तांतरण को लेकर नेहरू से सवाल पूछा कि सत्ता का हस्तांतरण कैसे किया जाए। इसके बाद नेहरू ने सी राजा गोपालचारी से राय ली थी, उन्होंने सेंगोल के बारे में जवाहर लाल नेहरू को जानकारी दी। इसके बाद सेंगोल को तमिलनाडु से मंगाया गया और ‘राजदंड’ सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था।