Research यह संभव हुआ है एक उपकरण (न्यूरोप्रोस्थेटिक डिवाइस) की मदद से, जो उसके दिमाग की तरंगों को वाक्यों में बदल देता है।अमेरिकी शोधकर्ताओं ने उस व्यक्ति का दिमाग पढ़ा है। सैन फ्रांसिस्को की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोध प्रमुख शान मेत्सगर ने बताया कि इस आदमी का पसंदीदा फ्रेज था- कुछ भी संभव है (एनिथिंग इज पासिबल)।

पिछले साल शोधकर्ताओं की इस टीम ने दिखाया था कि अगर 50 बहुत आम शब्दों को जब कोई इंसान पूरी तरह से बोलने की कोशिश करे तो दिमाग से जुड़ा कंप्युटर (इंटरफेस नाम का ब्रेन इम्प्लांट) उनका पता लगा सकता है। ‘नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल’ में प्रकाशित नए शोध के मुताबिक, वे अंग्रेजी वर्णमाला के 26 अक्षरों को पकड़ पाने में सफल हुए हैं, जब संबंधित व्यक्ति उन्हें मन ही मन बोल रहा हो। मेत्सगर ने कहा, ‘स्पेलिंग इंटरफेस लैंग्वेज माडलिंग’ का इस्तेमाल कर वास्तविक समय में आंकड़े जुटाया जाता है और संभावित शब्द या फिर गलतियों का पता लगाया जाता है।म्‍

शोधकर्ता 1,150 से ज्यादा शब्दों को डिकोड कर पाने में सफल हुए हैं। अंग्रेजी के वाक्यों में इस्तेमाल होने वाले 85 फीसद शब्द हैं। उनका अंदाजा है कि इस शब्दकोष को नौ हजार से ज्यादा शब्दों तक ले जाया जा सकता है। मेत्सगर ने कहा, यह वास्तव में शब्दों की वही संख्या है जो आमतौर पर इस्तेमाल की जाती है। इस उपकरण ने हर मिनट में 29 कैरेक्टर डिकोड किए, इनमें गलतियों की दर छह फीसद थी। कुल मिला कर देखा जाए तो प्रति मिनट सात शब्दों को बनाने में सफलता मिली। पहला प्रयोग ब्रावो-1 पर किया गया है।

ब्रावो-1 यानी वह लकवाग्रस्त व्यक्ति, जिसका दिमाग पढ़ा गया। इस आदमी को ब्रावो-1 कहा गया है, क्योंकि वह इस उकरण पर प्रयोग का वह पहला प्रतिभागी है। अब 30 साल का हो चुका यह शख्स 20 साल की उम्र में स्ट्रोक का शिकार बना, जिसके बाद से उसकी बोलने की क्षमता पूरी तरह चली गई। हालांकि संज्ञानात्मक क्षमताओं को नुकसान नहीं पहुंचा। आमतौर पर वह एक पाइंटर की मदद से संवाद करता है जो एक बेसबाल के कैप से जुड़ी है और इसकी मदद से वह स्क्रीन पर लगे अक्षरों की ओर संकेत करता है।

वर्ष 2019 में एक शोधकर्ता ने सर्जरी के जरिए उच्च घनत्व का एक इलेक्ट्रोड उसके दिमाग की सतह पर ‘कार्टेक्स’ में लगाया था। उसके बाद कोई अक्षर या शब्द बोलने की कोशिश के दौरान उसके सिर में एक लगे पोर्ट की मदद से विद्युतीय आधार पर निगरानी रखने में शोधकर्ता सफल हुए हैं। मेत्सगर का कहना है कि ब्रावो-1 इस उपकरण का इस्तेमाल मजे से करता है, क्योंकि वह हमारे साथ आसानी और तेजी से संवाद में सफल हो रहा है। शोध के दौरान एक बढ़िया पल तब आया जब ब्रावो-1 को जो वह चाहता है, उसे बोलने के लिए कहा गया। मेत्सगर ने कहा, उसने कहा कि वह जहां रहता है, वहां का खाना उसे बिल्कुल पसंद नहीं है।

पिछले साल स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी में विकसित ‘ब्रेन इंटरफेस कंप्यूटर’ प्रति मिनट 18 शब्दों को डिकोड करने में सफल हुआ था, जब एक प्रतिभागी ने हाथ की लिखावट की कल्पना की। मेत्सगर का कहना है कि बोली पर आधारित उनका तरीके के अनोखे फायदे हैं। आमतौर पर बोलने जाने वाले 50 शब्द भागीदार खामोशी से पूरा बोल लेता है और इनका इस्तेमाल कई बातचीतों में हो सकता है। जबकि जो कम इस्तेमाल होने वाले शब्द हैं, उनके हिज्जे किए जा सकते हैं इस तरह ज्यादा बढ़िया बातचीत हो सकती है।

जानकारों के मुताबिक, इस शोध को अभी कई और प्रतिभागियों पर परखने की जरूरत होगी। दुनिया में हजारों लोगों को इनकी जरूरत है और वो इसका सामान्य रूप से इस्तेमाल कर सकें। इसमें अभी थोड़ा और वक्त लगेगा। दुर्घटनाएं और बीमारियां हर साल बहुत से लोगों से उनके बोलने की क्षमता छीन लेती हैं। कई और वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग के नतीजों को शानदार बताया है। हालांकि, इसका इस्तेमाल कम ही लोग कर सकेगें, क्योंकि ‘न्यूरोप्रोसेथेटिक सर्जरी’ अत्यधिक जटिल और कई जोखिमों से भरी है।

विभिन्न मरीज के दिमाग से हजारों शब्द पढ़े वैज्ञानिकों ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक एक लकवाग्रस्त व्यक्ति के दिमाग से 1100 से ज्यादा शब्दों को हिज्जे के साथ पढ़ पाने में सफल हुए हैं। ‘नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल’ में प्रकाशित नए शोध के मुताबिक, वे अंग्रेजी वर्णमाला के 26 अक्षरों को पकड़ पाने में सफल हुए हैं, जब संबंधित व्यक्ति उन्हें मन ही मन बोल रहा हो।