इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज (आइआइएससी) ने 29 ऐसी दवाओं की पहचान की है, जिनका इस्तेमाल कोरोना मरीजों के इलाज के लिए किया जा सकता है। आइआइएससी ने जीनोमिक्स स्टडी के आधार पर 29 ऐसी दवाओं की पहचान की है।

आइआइएससी में प्रोफेसर नारायणसामी श्रीनिवासन, सोहिनी चक्रवर्ती और स्नेहा भीमीरेड्डी की टीम ने इन दवाओं की पहचान करते हुए एक शोध पत्र तैयार किया है। शोध करने वाले प्रोफेसरों ने बताया कि प्राथमिक अध्ययन के आधार पर हमने करीब 20 ऐसी दवाओं की पहचान की है, जिन्हें लोग जानते हैं और इनका इस्तेमाल इलाज में हो सकता है। इसके अलावा नौ इंवेस्टिगेशनल ड्रग मॉलिक्यूल्स की पहचान भी की गई है।

रिसर्च करने वाली टीम का कहना है कि जो तथ्य सामने आए हैं, उन पर अभी और शोध किया जा रहा है। फिलहाल हमारे अध्ययन में जो बातें निकल कर सामने आई हैं, उन पर और काम करने की जरूरत है। शोधकर्ताओं ने यह अपील भी की है कि जो तथ्य मिले हैं, उनपर अभी तमाम अध्ययन और रिसर्च की जरूरत है और इसका उपयोग सिर्फ वैज्ञानिकों की ओर से करना ही सही है। फिलहाल सिर्फ शुरुआती अध्ययन के आधार पर ही किसी को भी इन दवाओं का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

दूसरी ओर, कोरोना विषाणु को लेकर एक नया अध्ययन सामने आया है। अध्ययन में कहा गया है कि कुछ क्षेत्रों में कोरोना के खिलाफ पहले के अनुमान से कुछ कम लोगों की मदद से हर्ड इम्यूनिटी का इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन जानकारों का मानना है कि भारत जैसे देश में इसका इस्तेमाल करने से मानवता और स्वास्थ्य महकमे पर और बोझ बढ़ सकता है।

इस अध्ययन को जर्नल साइंस में छापा गया है और इसे नॉटिंघम यूनिवर्सिटी और स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी के गणतिज्ञों ने तैयार किया है। इस अध्ययन में लोगों को उम्र और सामाजिक गतिविधियों के आधार पर अलग-अलग श्रेणी में बांटा था। ये मॉडल बताता है कि संक्रमण को तोड़ने के लिए जितने लोगों को संक्रमित करने की जरूरत है उनकी संख्या कुल जनसंख्या का 43 फीसद है, जबकि पहले यह 60 फीसद था।

स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और शोध के अध्यक्ष टॉम ब्रिटोन का कहना है कि ये एक सकारात्मक परिणाम है कि हर्ड इम्यूनिटी के बारे में पहले चल गया, लेकिन इसके लिए इम्यूनिटी पर जोर देना ज्यादा जरूरी है। इस शोध पर वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए कहा कि 43 फीसद संख्या को पूर्ण रूप से नहीं लिया जा सकता। उन्होंने कहा कि शोध का ओर गहराई से समझने की जरूरत है कि जनसंख्या कैसे हर्ड इम्यूनिटी को प्रभावित कर सकती है।

नॉटिंघम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और शोधकर्ता फ्रेंक बॉल का कहना है कि मौजूदा कोविड-19 महामारी के लिए हमारे शोध में कई परिणामों की संभावना है और किसी मॉडल के जरिए योजना बनाने में किसी व्यक्तिगत गतिविधि की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। शोध में उम्र को छह और गतिविधियों को तीन श्रेणी जैसे उच्च, मध्यम और निम्न में बांटा गया है और ऐसा अनुमान लगाया गया है कि हर उम्र वाली श्रेणी में 50 फीसद लोग सामान्य गतिविधि कर रहे हैं, 25 फीसद उच्च और 25 फीसद निम्न स्तर की गतिविधियां कर रहे हैं।

यहां वैज्ञानिकों ने दो महत्त्वपूर्ण बातें सामने रखी हैं। पहली कि उम्र से ज्यादा सामाजिक गतिविधियां महत्व रखती हैं, क्योंकि कोरोना विषाणु गतिविधियों के माध्यम से ज्यादा तेजी से फैल सकता है और दूसरी बात यह कि हर्ड इम्यूनिटी को दो तरीके हासिल किया जा सकता है- एक तो पर्याप्त मरीजों को वैक्सीन देना या फिर पर्याप्त मरीजों की इम्यूनिटी को मजबूत करना। हर्ड इम्यूनिटी का स्तर तब कम हो जाता है, जब रोग प्रतिरोधक क्षमता वैक्सीन से आती है।