उच्चतम न्यायालय चार जनवरी को रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि मालिकाना हक मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर सकता है। इस मामले को प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एस के कौल की पीठ के सामने सूचीबद्ध किया गया है। पीठ के इस मामले में सुनवाई के लिए तीन न्यायाधीशों की पीठ का गठन करने की संभावना है। चार दीवानी वादों पर वर्ष 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ 14 अपील दायर हुई हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि 2.77 एकड़ भूमि को तीन पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर बराबर बांटा जाए।

शीर्ष अदालत ने 29 अक्टूबर को जनवरी के पहले सप्ताह में ‘‘उचित पीठ’’ के सामने मामले को सुनवाई के लिए रखने को कहा था जो सुनवाई का कार्यक्रम तय करेगी। बाद में, तत्काल सुनवाई की मांग को लेकर याचिका दायर की गई थी लेकिन शीर्ष अदालत ने अनुरोध ठुकराते हुए कहा था कि उसने इस मामले की सुनवाई के संबंध में 29 अक्टूबर को आदेश पारित कर दिया है।

जल्द सुनवाई के अनुरोध वाली याचिका अखिल भारतीय हिन्दू महासभा ने दायर की थी जो इस मामले के मुख्य याचिकाकर्ताओं में शामिल एम सिद्दीक के कानूनी वारिसों द्वारा दायर अपील के प्रतिवादियों में शामिल है। शीर्ष अदालत के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 27 सितंबर को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में उसकी 1994 के फैसले की इस टिप्पणी पर पुर्निवचार के लिए इसे पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजने से इंकार कर दिया था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है।

फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह हो सुनवाई: केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने उच्चतम न्यायालय में अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह करने की अपील की और कहा कि जब सबरीमला और समलैंगिकता के मामले में न्यायालय जल्द निर्णय दे सकता है तो अयोध्या मामले पर क्यों नहीं। प्रसाद ने अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के 15वें राष्ट्रीय अधिवेशन के उद्घाटन अवसर पर कहा कि वह व्यक्तिगत तौर पर उच्चतम न्यायालय से अपील करते हैं कि रामजन्म भूमि मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह हो, ताकि इस पर जल्द से जल्द फैसला आ सके। उन्होंने दलील दी कि जब उच्चतम न्यायालय सबरीमला और समलैंगिकता के मामले पर जल्द निर्णय दे सकता है तो राम जन्म भूमि मामला 70 साल से क्यों अटका है।