केंद्रीय विद्यालयों में प्रार्थना के जरिए खास धर्म को बढ़ावा देने की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। बुधवार को जारी इस नोटिस के बाद अब सरकार को सुप्रीम कोर्ट में चार हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करना होगा। सुप्रीम कोर्ट की इस पहल के बाद सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई। कहा जा रहा है कि प्रार्थना कोई नई बात नहीं है, बहुत पहले से होती चली आ रही है। इस पर विवाद बेवजह है। हालांकि याचिका दायर करने वाले वकील विनायक शाह का कहना है कि सरकारी विद्यालयों में ऐसी प्रार्थना नहीं होनी चाहिए, जिससे किसी विशेष धर्म(हिंदुत्व) को बढ़ावा मिलता हो।
याची ने आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा कि -”केंद्रीय विद्यालयों में हिंदुत्व का प्रोपोगंडा किया जा रहा, चूंकि स्कूल सरकारी हैं, इस नाते इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।” वकील ने दावे के समर्थन में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 28 के तहत सरकारी वित्तपोषित स्कूलों में धर्म विशेष को बढ़ावा देने वाला कोई आयोजन नहीं हो सकता।
Supreme Court issued notice to the Central government after hearing a PIL which alleged that school prayers in Kendriya Vidyalayas propagate Hinduism and they should not be allowed as they are run by Government.
— ANI (@ANI) January 10, 2018
जनहित याचिका को गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया। कहा कि यह संवैधानिक मामला है। इस पर सर्वोच्च न्यायलय विचार करेगा कि क्या देश के सभी केंद्रीय विद्यालयों में हकीकत में हिंदी की प्रार्थना धर्म विशेष को बढ़ावा दे रही है। क्या हिंदी की संबंधित प्रार्थना संविधान के मूल्यों के खिलाफ है ?
उधर इस मसले पर ट्विट पर भी यूजर्स ने टिप्पणियां करनी शुरू कीं। आमची मुंबई ट्विटर हैंडल यूजर ने कहा-मैं केंद्रीय विद्यालय में पढ़ा हूं, याचिका दाखिल करने वाले शख्स को जानना चाहिए कि 1980 से केंद्रीय स्कूलों में संस्कृति में प्रार्थना होती आ रही है। अचानक जागने का क्या मतलब। मुहम्मद बिलाल भट्ट ने कहा-बात तो है
Whoever has put this PIL should know that right from 1980’s the KV’s been having prayers in assembly which was largely Sanskrit ones. Why suddenly wake up now. I have been a student of KV and have never felt anything odd about it.
— Amchi Mumbai (@MumbaiAmchi) January 10, 2018
Baat to hai!
— Muhammad Bilal Bhat (@mBilalBhat) January 10, 2018

