रिप्रजेंटेशन ऑप पीपल एक्ट के सेक्शन 8(3) के तहत ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी को अपनी सांसदी से हाथ धोना पड़ा था। उस मामले के बाद सुप्रीम कोर्ट में एक सोशल एक्टिविस्ट ने याचिका दायर करके अपील की थी कि इस सेक्शन को खत्म किया जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करने से साफ इनकार कर दिया है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि आपको इस सेक्शन से कोई दिक्कत हुई है क्या। फिर उन्होंने कहा कि जब आपको कोई परेशानी हो तब याचिका दायर कीजिये, डिसमिस।
इस सेक्शन में प्रावधान है कि किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को अगर कम से कम दो साल की सजा होती है तो उसकी सांसदी या विधायकी अपने आप ही रद हो जाएगी। याचिका पर सीजेआई की अगुवाई वाली बेंच ने सुनवाई की। बेंच में जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला भी मौजूद थे।
सोशल एक्टिविस्ट आभा मुरलीधरन ने रिप्रजेंटेशन ऑप पीपल एक्ट 1951 के सेक्शन 8(3) की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट से इसमें दखल देने की मांग की थी। अपील में कहा गया था कि सेक्शन 8(3) अल्ट्रा वायरस है। इससे फ्री स्पीच पर रोक लगती है। संविधान में फ्री स्पीच को एक अधिकार माना गया है। उनका कहना था कि राजनेता इस सेक्शन की वजह से सहमे हुए हैं। मतदाताओं ने उन्हें जो अधिकार दिया है वो उसे पूरा करने में भी खुद को असमर्थ पा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट सेक्शन 8(3) पर सुनवाई करके कोई ठोस फैसला जारी करे।
छह साल के लिए अयोग्य हो जाता है जनप्रतिनिधि
याचिका में कहा गया था कि रिप्रजेंटेशन ऑप पीपल एक्ट का सेक्शन 8(3) इसके सेक्शन (1), 8, 8A, 9, 9A, 10 और 10A और 11 से बिलकुल अलग है। आभा मुरलीधरन का कहना था कि किसी को अयोग्य ठहराने से पहले अपराध के सभी पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि पीपल एक्ट के सेक्शन 8(3) की वजह से किसी जनप्रतिनिधि को दो साल की सजा होते ही उसकी सांसदी/विधायकी अपने आप खत्म हो जाती है। उसके बाद वो छह साल के लिए अयोग्य हो जाता है। यानि छह साल के दौरान वो कोई भी चुनाव नहीं लड़ सकता है।
याचिका में किया गया था लिली थॉमस के फैसले का जिक्र
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले लिली थॉमस का जिक्र कर कहा गया कि सेक्शन 8(4) को खत्म करना सही फैसला नहीं था। ये सेक्शन किसी को अयोग्य ठहराने के बाद तीन महीने का वक्त देता है जिससे वो सजा के खिलाफ अपील कर सके। लिली थॉमस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पीपल एक्ट के सेक्शन 8(4) को खत्म कर दिया था।
