स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एक कंसोर्टियम (संघ) द्वारा बैंक डिफॉल्टर घोषित कर दिए जाने के बावजूद स्टर्लिंग ग्रुप को 1300 करोड़ रुपए का लोन देने के मामले का खुलासा हुआ है। खास बात ये है कि स्टर्लिंग ग्रुप को डिफॉल्टर घोषित करने वाला बैंक, स्टेट बैंक का ही सहयोगी बैंक है, जिसका फिलहाल स्टेट बैंक में ही विलय हो चुका है। बता दें कि स्टर्लिंग ग्रुप के मालिक नितिन संदेसारा और चेतन संदेसारा पर 8 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम की धांधली कर देश छोड़कर भागने का आरोप है। फिलहाल नितिन संदेसारा और चेतन संदेसारा के नाइजीरिया में होने की बात कही जा रही है।
द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर ने स्टर्लिंग ग्रुप को 80.90 करोड़ रुपए का लोन दिया था। लेकिन जब स्टर्लिंग ग्रुप द्वारा इस रकम का भुगतान नहीं किया गया तो स्टेट बैंक ऑफ मैसूर ने साल 2012 में स्टर्लिंग ग्रुप ने मुंबई में अदालत का रुख किया और स्टर्लिंग ग्रुप के प्रमोटर के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करा दिया। इतना ही नहीं स्टेट बैंक ऑफ मैसूर ने साल 2014 में स्टर्लिंग ग्रुप को रिजर्व बैंक के नियमों के अनुसार, लोन डिफॉल्टर घोषित करा दिया।
अब खुलासा हुआ है कि लोन डिफॉल्टर घोषित होने के बावजूद साल 2015 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एक संघ ने लोन डिफॉल्टर स्टर्लिंग ग्रुप की कंपनी स्टर्लिंग ग्लोबल ऑयल रिसॉर्सेज लिमिटेड को 1300 करोड़ रुपए के (Standby letters of Credit की शक्ल में) लोन की मंजूरी दे दी!
RBI के दिशा-निर्देशों का हुआ उल्लंघनः चूंकि आरबीआई के साफ दिशा-निर्देश हैं कि किसी भी प्रमोटर या कंपनी को, जो कि लोन डिफॉल्टर की लिस्ट में शामिल है, उसे नया लोन नहीं दिया जा सकता। इसलिए अब एसबीआई का यह संघ जांच एजेंसियों के निशाने पर आ गया है।
यहां ये बात भी उल्लेखनीय है कि स्टर्लिंग ग्रुप को 1300 करोड़ रुपए के लोन की मंजूरी देने वाले एसबीआई के संघ में बैंक ऑफ बड़ौदा भी शामिल था। जबकि बैंक ऑफ बड़ौदा की लंदन शाखा ने स्टर्लिंग ग्रुप के लिए External Commercial Borrowing(ECB) का इंतजाम किया था, जोकि बाद में बैंक ने एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) की श्रेणी में डाल दी थी।