हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों को अलग करने के चुनाव आयोग (ईसी) के फैसले पर काफी चर्चा हुई है। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे हैरान करने वाला फैसला भी कहा है। तर्क दिया जाता है कि दोनों राज्यों में पिछले तीन चुनाव एक साथ हुए थे तो इस बार अलग क्यों? चुनाव आयोग ने 16 अगस्त को हरियाणा के लिए कार्यक्रम की घोषणा की और राज्य में 5 अक्टूबर को चुनाव हुए, जबकि महाराष्ट्र का कार्यक्रम 15 अक्टूबर को घोषित किया गया और राज्य में एक ही चरण में 20 नवंबर को मतदान होना है।
यहां पढ़िए आज की ताजा खबर | READ
महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल परिणाम के तीन दिन बाद 26 नवंबर को समाप्त होने वाला है, ऐसे में शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने चुनाव आयोग द्वारा घोषित कार्यक्रम पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने इशारा किया है कि भाजपा की राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की चाल है ताकि विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) को सत्ता से बाहर रखा जा सके। जानते हैं कि उनके इस दावे में कितना दम है?
राउत ने क्या आरोप लगाया है?
रविवार को शिवसेना (यूबीटी) नेता ने कहा कि महायुति सरकार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की योजना बना रही है और चुनाव आयोग ने इसे ध्यान में रखते हुए चुनाव कार्यक्रम बनाया है। संजय राउत का तर्क था कि जो तारीखें दी गई हैं उसके हिसाब से किसी भी गठबंधन को सरकार बनाने के लिए बहुत कम समय दिया गया है क्योंकि परिणामों की घोषणा और विधानसभा के मौजूदा कार्यकाल की समाप्ति के बीच केवल तीन दिन का समय है।
संजय राउत ने कहा, “मतदान 20 नवंबर को है और 26 नवंबर तक नई सरकार का गठन होना चाहिए। आम तौर पर इतना कम समय नहीं दिया जाता। एमवीए की जीत के बाद विधायकों को विधायक दल के नेताओं का चुनाव करने के लिए पूरे राज्य से आना होगा। महाराष्ट्र एक बड़ा राज्य है और इसमें समय लगेगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह एमवीए सरकार नहीं चाहते हैं। वे 26 नवंबर के तुरंत बाद राष्ट्रपति शासन लागू करना चाहते हैं और इसलिए इतना कम समय दिया गया है।”
भाजपा पर चुनावों में हेरफेर करने के लिए चुनाव आयोग का उपयोग करने का आरोप लगाते हुए राउत ने दावा किया कि इस मुद्दे पर पिछले सप्ताह एमवीए सहयोगियों – कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार) की बैठक में भी चर्चा हुई थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि जिन सीटों पर भाजपा चुनाव लड़ रही है, वहां एमवीए मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं, जबकि फर्जी मतदाताओं को जोड़ा जा रहा है। इससे पहले राउत ने तारीखों और चुनावों की घोषणा से पहले प्रचार के लिए सिर्फ 35 दिनों का वक़्त देने पर भी सवाल उठाए।
चुनाव आयोग चुनाव कार्यक्रम कैसे तय करता है?
चुनाव आयोग चुनाव की तारीखों का ऐलान करने से पहले मौसम, त्यौहारों और सुरक्षा बलों की मौजूदगी और परीक्षाओं की तारीखों का खास ख्याल रखता है। लेकिन कार्यक्रम निर्धारित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होती है विधानसभा के कार्यकाल की अंतिम तारीख। क्योंकि नियम इस तिथि से पहले चुनाव कराने का प्रावधान करते हैं।
संविधान का अनुच्छेद 172 (1), जो राज्य विधानसभाओं के लिए कार्यकाल निर्धारित करता है, कहता है, “प्रत्येक राज्य की प्रत्येक विधान सभा, जब तक कि उसे पहले भंग न कर दिया जाए, अपनी पहली बैठक के लिए नियत तिथि से पांच वर्ष तक बनी रहेगी, इससे ज़्यादा नहीं, तथा पांच वर्ष की उक्त अवधि की समाप्ति विधानसभा के विघटन के रूप में मानी जाएगी।” इसके अतिरिक्त जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 15 में प्रावधान है कि विधानसभा चुनाव की अधिसूचना सदन के कार्यकाल की समाप्ति से छह महीने पहले जारी नहीं की जानी चाहिए।
चुनाव आयोग को चुनाव शेड्यूल करने का एकमात्र विशेषाधिकार होता है। चुनाव आयोग की भूमिका तब समाप्त हो जाती है जब वह सरकार बनाने के लिए राज्यपाल को निर्वाचित विधायकों की सूची सौंप देता है। इसके बाद विधानसभा का सत्र बुलाया जाता है और नए विधायक पद की शपथ लेते हैं।
प्रचार अवधि के बारे में नियम क्या कहते हैं?
प्रचार के मामले में भी कानून में कोई निश्चित समय सीमा नहीं है, लेकिन आदर्श आचार संहिता, जो चुनावों की घोषणा के बाद लागू होती है, के अनुसार मतदान शुरू होने से 48 घंटे पहले प्रचार समाप्त हो जाना चाहिए।