Section 377 Supreme Court Verdict: धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का बयान आया है। संगठन में अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने कहा है कि समलैंगिक संबंध प्राकृतिक नहीं होते हैं। वह ऐसे रिश्तों का समर्थन नहीं करते। समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार कुमार ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट की तरह हम भी इसे अपराध नहीं मानते हैं। हालांकि, समलैंगिक संबंध और रिश्ते प्राकृतिक नहीं होते और न ही हम इस तरह के संबंधों को बढ़ावा देते हैं।”

आपको बता दें कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 पर कोर्ट ने गुरुवार (छह सितंबर) को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने धारा 377 के उस प्रावधान को निरस्‍त कर दिया, जिसके तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध माना जाता था। LGBT समुदाय सालों से इसे खत्‍म करने की मांग उठा रहा था।

संघ प्रचार प्रमुख आगे बोले, “समलैंगिकों का शादी करना व इस तरह के संबंध प्रकृति के अनुकूल सही नहीं हैं, लिहाजा हम इनका समर्थन नहीं करते हैं। भारतीय समाज ऐसे रिश्तों को मान्यता नहीं देता। मनुष्य अनुभवों से सीखता है, इसलिए इस विषय पर चर्चा होनी चाहिए।”

फैसला पढ़ते वक्त मुख्‍य न्‍यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने धारा 377 को अतार्किक व मनमाना बताया। संविधान पीठ ने कहा, “LGBT समुदाय को भी बाकी नागरिकों जैसे जीने का हक है। उन्‍हें भी दूसरे लोगों के समान तमाम अधिकार प्राप्‍त हैं।”

क्या था धारा 377 में?: साल 1860 में यह धारा अमल में लाई गई थी। इसमें बेहद सख्‍त सजा के प्रावधान थे। दोषी पाए जाने पर 14 साल जेल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा थी। साथ ही जुर्माने का भी प्रावधान था। आईपीसी की इस धारा में अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने को दंडनीय अपराध माना गया था। धारा के बारे में लिखा था, “कोई भी व्‍यक्ति जो अपनी इच्‍छा से पुरुष, महिला या पशुओं के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है तो उसे दंडित किया जाएगा।”