Ajmer Dargah Shiv Mandir: संभल की जामा मस्जिद की जगह पर प्राचीन वक्त में शिव मंदिर होने के दावे को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं हो रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आगे बढ़ते हुए ट्रायल कोर्ट के द्वारा दिए गए सर्वे के आदेश पर तब तक के लिए रोक लगा दी है जब तक हाई कोर्ट इस मामले में कोई आदेश नहीं दे देता। दूसरी ओर, अजमेर की स्थानीय अदालत के द्वारा एक याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार होने से और धार्मिक तनाव पैदा होने का खतरा है।

इस याचिका में सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के नीचे शिव मंदिर होने का दावा किया गया है। यह याचिका हिंदू सेना नाम का संगठन चलाने वाले विष्णु गुप्ता ने दायर की है।

काश, विष्णु गुप्ता ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत की बातों पर ध्यान दिया होता। मोहन भागवत ने जून, 2022 में स्पष्ट रूप से कहा था कि हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग खोजने और हर दिन नया विवाद शुरू करने की क्या जरूरत है?

Sambhal Jama Masjid Case: ‘बाबर भी तब कब्र से उठ कर हरिहर-हरिहर बोलेगा…’, महंत का दावा- संभल की शाही जामा मस्जिद में जल्द होगी पूजा

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हिंदू और मुस्लिम पक्ष के अपने-अपने दावे। (Express Photo by Gajendra yadav)

क्या कहा था मोहन भागवत ने?

संघ प्रमुख ने कहा था, “अब ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा चल रहा है, एक इतिहास है और हम इसे नहीं बदल सकते। इतिहास हमने नहीं बनाया है और न ही आज के हिंदुओं और मुसलमानों ने। यह उस वक्त हुआ जब भारत में इस्लाम आया और आक्रमणकारी भी आए। उस दौरान मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया और ऐसे हजारों मंदिर हैं।”

हिंदू-मुस्लिम दोनों जाते हैं चिश्ती की दरगाह पर

अजमेर दरगाह के मुद्दे को कुछ चरमपंथी संगठनों ने उठाया है। इस संबंध में उनके दावे हास्यास्पद हैं क्योंकि वे लोग सूफी विचारधारा के इतिहास और महत्व को नहीं समझते हैं। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की पवित्र दरगाह को हिंदुओं द्वारा उतना ही सम्मान दिया जाता है जितना मुसलमानों के द्वारा। दरगाह के बाजार में 75% से ज्यादा दुकानें और होटलों के मालिक हिंदू हैं। जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक सभी प्रधानमंत्री उर्स के मौके पर दरगाह में अपनी चादर भेजते रहे हैं।

Hindu Sena: प्रशांत भूषण की पिटाई, ओवैसी के घर पर हमला… कौन हैं हिंदू सेना प्रमुख विष्णु गुप्ता जिन्होंने अजमेर शरीफ दरगाह को बताया शिव मंदिर

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हिंदू सेना के प्रमुख विष्णु गुप्ता (पीले कुर्ते में)। (Source-VishnuGupta_HS/X)

बाबरी मस्जिद, ज्ञानवापी और संभल के बाद अजमेर दरगाह को लेकर हो रहा यह एक नया विवाद है। बाबरी मस्जिद, ज्ञानवापी और संभल के मामले में मस्जिद को लेकर विवाद था लेकिन अब यह विवाद जाने-माने सूफी संत की दरगाह को लेकर हो रहा है। मस्जिद मुसलमानों के लिए इबादत की जगह है, जहां वे अल्लाह को सजदा करते हैं जबकि दरगाह वह जगह है, जहां सम्मानित सूफी संतों की समाधियां बनाई जाती हैं।

दरगाहों पर हो चुके हैं हमले

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि सूफी संतों की दरगाह को खतरा हुआ हो। सूफीवाद को कट्टर धार्मिक विचारधारा के खिलाफ माना जाता है। सूफीवाद इस्लामी विचार का ऐसा गहरा रूप है, जो शिया-सुन्नी विवाद, राजनीतिक सीमाओं, आर्थिक वर्गों, भाषाओं और धर्मों से दूर है। इनके बढ़ते प्रभाव की वजह से सूफी संतों की दरगाहों पर हमले होते रहे हैं। वहाबी, देवबंदी, सलाफी विचारधारा वाले लोग संतों और सूफी प्रथाओं को “शिर्क” मानते हैं।

अफगानिस्तान और ईरान से लेकर तुर्की और पाकिस्तान तक सूफी संप्रदाय के खिलाफ अभी भी भेदभाव और हिंसा होती है। भारत में भी देवबंदी संप्रदाय के लोग दरगाह पर जाने वालों के खिलाफ अर्नगल बातें कहते हैं और उन्हें धार्मिक मान्यता भी नहीं देते। भारत में अंतिम सूफी शहीद सरमद कशानी को औरंगजेब ने ईशनिंदा के आरोप में फांसी पर चढ़ा दिया था। सरमद कशानी को आज भी संत के रूप में सम्मानित किया जाता है और जामा मस्जिद के पास उनकी समाधि बनाई गई है।

मुगल सम्राट अकबर 17 बार अजमेर आए थे। उनके पड़पोते दारा शिकोह का जन्म भी यहीं हुआ था। दारा शिकोह की सबसे बड़ी साहित्यिक विरासत सिर-ए-अकबर या “महान रहस्य” थी और यह उपनिषदों का फारसी अनुवाद है। उनकी किताब मजमा-उल-बहरीन या “दो समुद्रों का संगम” है जिसने सूफीवाद और वेदांत के बीच समानता की खोज की थी और बताया था कि इन दोनों में कोई मौलिक अंतर नहीं है।

इस्लाम और हिंदू धर्म के बीच अंतर नहीं

संघ प्रमुख मोहन भागवत की सलाह को गंभीरता से सुनने के अलावा विष्णु गुप्ता जैसे लोग दाराशिकोह के दृष्टिकोण से यह बात भी सीख सकते हैं कि इस्लाम और हिंदू धर्म के बीच मूल रूप से कोई ज्यादा अंतर नहीं है और सच यह है कि मूल रूप से दोनों धर्म एक ही हैं।

भारत आज समावेशी विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। धार्मिक संघर्ष सामाजिक प्रगति और आर्थिक विकास के विचार के पूरी तरह खिलाफ है। इस तरह की कट्टरता को रोकना जरूरी है इससे पहले कि यह हमारी सभ्यता के लिए और खतरा बने। कल के भारत को आज के भारत को अस्थिर करने की कोई अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।