सबरीमाला मंदिर विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार (छह फरवरी, 2019) को सुनवाई के दौरान हंगामा हो गया। हालात हाथ से बाहर होते देख चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बुरी तरह नाराज हुए। ‘द हिंदू’ के लीगल कॉरसपॉन्डेंट कृष्णदास राजगोपाल के अनुसार, गुस्से में आकर उन्होंने फाइल फेंक दी और बोले- अगर याचिकाकर्ता कोर्ट में इस तरह से पेश आएंगे, तब कोर्ट मामलों पर बहस करना बंद कर देगा। सीजेआई ने इसके बाद अधिवक्ता मैथ्यूज नेदुमपारा से कहा, “हमने आपसे अपनी जगह पर बैठने के लिए कहा है न। क्या आपको वहां बैठने में कोई दिक्कत हो रही है?” जवाब में नेदुमपारा ने कहा, “जी, मैं बैठूंगा। मैं बैठ रहा हूं…देखिए।”

सुनवाई में इससे पहले, एम सिंघवी बोले थे- हिंदुत्व ही पृथ्वी पर सबसे विविधताओं वाला धर्म है। यहां आप केवल जरूरी धार्मिक परंपराओं को ही मान्यता दे रहे हैं, जो कि सभी हिंदुओं के लिए नैतिक हैं? क्या यह संभव है? स्वाभाविक है कि विविधताओं वाले धर्म में यह सही चीज नहीं है। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता आर.वेंकटरमणी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को संप्रदाय नहीं तय करना चाहिए।

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अंग्रेजी अखबार के संवाददाता ने इस घटना को लेकर ट्वीट भी किया था।

कोर्ट ने लगभग चार माह पहले केरल के प्राचीन मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। बुधवार को इसी मसले पर पुनःविचार याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हुई, जिनमें सितंबर 2018 में आए कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। सीजेआई के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ को इन 60 याचिकाओं पर सुनवाई करनी थी।

हालांकि, कोर्ट ने बुधवार को पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया, जबकि मंदिर बोर्ड ने कहा है कि वह कोर्ट के निर्णय का सम्मान करेगा। सुनवाई के दौरान बोर्ड की तरफ से पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा, “हमने कोर्ट के फैसले का सम्मान करने का फैसला लिया है, जिसमें सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति की बात कही गई थी।”

सबरीमाला मामले पर 22 जनवरी को सुनवाई होनी थी, मगर जस्टिस इंदू मल्होत्रा के छुट्टी पर होने के कारण उसे टाल दिया गया था। चूंकि वह पांच सदस्यों वाले पैनल में हैं, लिहाजा उनके कारण सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाई गई। सितंबर में कोर्ट के फैसले के दौरान बेंच में वह इकलौती महिला थीं, जिन्होंने निर्णय से अलग मत रखते हुए कहा था कि कोर्ट को धार्मिक भावनाओं के मामले में दखल नहीं देनी चाहिए।