ग्रामीण संकट के एक संकेत के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के आखिरी साल में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत नौकरियों की मांग में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी गई है। जारी हुए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक साल 2018-19 में पिछले साल के मुकाबले रोजगार की मांग में रिकॉर्ड दस फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली है। साल 2010-11 के बाद से इस योजना के तहत काम करने वाले व्यक्ति की संख्या सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई है। इस वित्तीय वर्ष (25 मार्च तक) MGNREGA के तहत उत्पन्न कार्य 255 करोड़ व्यक्ति दिन थे और इनकी संख्या में और बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। वहीं इसके उलट साल 2017-18 में इस योजना ने 233 करोड़ व्यक्ति दिन रोजगार उत्पन किए।

साल 2016-17 और 2015-16 की बात करें तो यह संख्या 235 करोड़ व्यक्ति बैठती है। 2014-15 में, जब एनडीए सरकार के पहले साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपीए सरकार की विफलता का स्मारक बताते हुए MGNREGA योजना को खारिज कर दिया तब महज 166 करोड़ व्यक्ति रोजगार इस योजना के माध्यम से लोगों को मिले। इस योजना के तहत एक व्यक्ति दिन की इकाई को आमतौर पर आठ घंटे के काम के लिए लिया जाता है।

जबकि योजना को लागू करने वाले सरकारी अधिकारी जलवायु परिवर्तन से संबंधित घटनाओं जैसे सूखा या बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि का मुख्य कारण खेत की आय में कमी का कारण मानते हैं। जमीनी स्थिति पर इस योजना की निगरानी करने वाले लोग बताते हैं कि मनरेगा के काम का बढ़ा हुआ भाव बेरोजगारी की समग्र स्थिति को भी दर्शाता है। बता दें कि मनरेगा मांग संचालित सुरक्षा योजना है जो ग्रामीण क्षेत्रों में हर घर से एक व्यक्ति को 100 दिन के रोजगार का अवसर मुहैया कराती है। इसमें सूखे की स्थिति में काम के दिनों की संख्या बढ़ाकर 150 दिन कर दी गई।

मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) के निखिल देव कहते हैं कि बेरोजगारी और सूखे की स्थिति में लोग कोई भी काम करेंगे। देव कहते हैं कि बेरोजगारी के कारण मनरेगा के काम की बड़ी पैमाने पर मांग है। लेकिन वित्त मंत्रालय द्वारा इस योजना के लिए अपर्याप्त धनराशि आवंटित किए जाने के कारण काम का प्रावधान अक्सर प्रतिबंधित था। 18 मार्च को मंत्रालय में झारखंड और कर्नाटक के अधिकतर जिलों में योजना के तहत 150 दिन काम दिए जाने के प्रावधान की घोषणा की।

जानना चाहिए कि झारखंड, जहां मनरेगा योजना के तहत सबसे कम 168 रुपए मेहनताना मिलता है, पिछले कुछ महीनों में इसके 24 में से 18 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया है। इसके अलावा कर्नाटक के सभी 30 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया। इस योजना के तहत सूखा प्रभावित राजस्थान, ओडिशा, महाराष्ट्र, गुजरात और आंध्र प्रदेश के बड़े हिस्से के साथ-साथ बाढ़ से प्रभावित केरल और चक्रवात की मार से प्रभावित तमिलनाडु में अतिरिक्त काम उपलब्ध कराया जाना था।