देश में ग्रामीण रोजगार का संकट गहराने का खतरा मंडरा रहा है। वजह- मौजूदा वित्त वर्ष से पहले ही महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का पैसा खत्म हो गया। ऐसे में नए प्रोजेक्ट्स शुरू न हो पाने को लेकर आशंका जताई गई है। मनरेगा की वेबसाइट का हवाला देते हुए रिपोर्ट्स में कहा गया, “फिलहाल 1719 करोड़ रुपए का नेट बैलेंस घाटे में है। यानी कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 59,567 करोड़ रुपए की पूरी रकम खर्च दी, जो कि 2018-19 के लिए उसे विभिन्न वॉर्ड्स के लिए आवंटित की गई थी।”

सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे के हवाले से टेलीग्राफ की रिपोर्ट में बताया गया, “वित्त वर्ष पूरा होने में लगभग ढाई महीने शेष हैं। अगर और फंड नहीं जारी किए गए तो इससे न केवल ग्रामीण रोजगार का संकट गहराएगा, बल्कि योजना का भट्टा भी बैठ जाएगा।”

डे के मुताबिक, मौजूदा समय में इस योजना का संतुलन नकारात्मक है। वह आगे बोले, “पेमेंट संबंधी समस्याओं के डर के कारण योजना लागू करने वाले अधिकारी नए प्रोजेक्ट्स शुरू करने को लेकर झिझकेंगे। वे काम के लिए लोगों द्वारा कराए दिया जाने वाला आवेदन ही स्वीकार नहीं करेंगे। यही वजह है कि ग्रामीण रोजगार का संकट गहराएगा।”

उधर, अधिकारियों का कहना था- ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस संबंध में अनुमान लगाया था कि मार्च के अंत तक योजना में लगभग 21 हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त लगेंगे। मंत्रालय ने नवंबर 2018 में वित्त मंत्रालय को इसी के चलते पत्र भी लिखा था, जिसमें अतिरिक्त 10 हजार करोड़ रुपए की मांग की गई थी। अधिकारियों के अनुसार, पिछले हफ्ते वित्त मंत्रालय ने तकरीबन छह हजार करोड़ रुपए ग्रामीण विकास मंत्रालय को जारी किए थे, जिसमें पूरी रकम इस्तेमाल की जा चुकी है।

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पश्चिम बंगाल स्थित चांदपाड़ा गांव में नरेगा के तहत मजदूरी करते हुए 35 वर्षीय चपला दास व अन्य। (एक्सप्रेस फोटोः शुभम दत्ता)

ऐसे में डे ने कहा, “जिस तरह से हालात हैं, उससे तो यही लगता है कि अगले महीने तक कोई अतिरिक्त रकम नहीं जारी की जाएगी। अगर आप 2019-20 वित्त वर्ष के ग्रामीण फंड्स का इंतजार करेंगे, तो वे अप्रैल में आएंगे। ऐसे में मुझे उम्मीद है कि सरकार कुछ और फंड अभी जारी करेगी।”

बता दें कि मनरेगा के तहत हर ग्रामीण परिवार को एक वर्ष में 100 दिनों तक के लिए असंगठित क्षेत्र में काम मुहैया कराया जाता है, जिसके बदले में उसे बाद में वेतन मिलता है। योजना के तहत लोगों को काम के लिए अपने नजदीकी पंचायत दफ्तर में खुद का पंजीकरण (आवेदन) कराना पड़ता है।