2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई जाने वाली है। इससे पहले मशहूर लेखक रामचंद्र गुहा ने ‘द टेलिग्राफ’ में महात्मा गांधी और आरएसएस के साथ रिश्तों पर रौशनी डाली है। उन्होंने, “कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी’ (Collected Works of Mahatma Gandhi) किताब के हवाले से इतिहास के संदर्भ में कुछ बेहद ही महत्पूर्ण परतों को हटाने का काम किया है। गुहा लिखते हैं कि गांधी के साथ मुलाकात में संघ के सरसंघचालक एमएस गोलवलकर तत्कालीन समय में किसी भी दंगा या धार्मिक हिंसा में हाथ होने से इनकार करते हैं। हालांकि, गांधी से उन्होंने जो भी बातें कहीं थी वे झूठी थीं।

गुहा ने अपने आर्टिकल में संघ की सोच को मुसलमान विरोधी बताते हुए सितंबर 1947 से जनवरी 1948 का जिक्र किया है। दिल्ली पुलिस के दस्तावेजों के हवाले से गुहा ने बताया कि इस अवधि में आरएसएस ने कई बैठकें की और मुसमलानों तथा महात्मा गांधी के खिलाफ जमकर जगह उगले। गोलवलकर एक वक्त में धमकी भी देते हैं कि महात्मा गांधी जैसे लोगों को तुरंत शांत किया जा सकता है।

रामचंद्र गुहा अपने लेख में कहते हैं, “गांधी को अब आरएसएस के बारे में कोई भ्रम नहीं था। संघ (RSS) ने महात्मा गांधी के खिलाफ जो घृणा पिछले कई महीनों से पाले रखा था उसके प्रति और ताकत के साथ मुखर हो गया।” इसके पीछे गुहा ने संघ की उस धारणा को तब और बलवती होते बताया है, जब कहा गया कि पाकिस्तान अपने यहां हिंदू या मुसलमानों के साथ कुछ भी करे, लेकिन हिंदुस्तान के मुसलमानों को बराबर के शहरी होने का अधिकार मिलेगा।

गुहा लिखते हैं, “दिसंबर 1947 के पहले सप्ताह में, एम.एस. गोलवलकर ने दिल्ली में आरएसएस की एक बैठक को संबोधित किया। यहां गोलवलकर ने ‘मुसलमनों का जिक्र’ करते हुए एक टिप्पणी की, “पृथ्वी पर कोई भी शक्ति उन्हें हिंदुस्तान में नहीं रख सकती है। उन्हें यह देश छोड़ना पड़ेगा। महात्मा गांधी मुसलमानों को भारत में रखना चाहते थे ताकि चुनाव के समय कांग्रेस को उनके वोटों से लाभ हो सके। लेकिन, उस समय तक, भारत में एक भी मुसलमान नहीं बचेगा। महात्मा गांधी उन्हें अब गुमराह नहीं कर सकते। हमारे पास ऐसे साधन हैं, जिनसे ऐसे लोगों को तुरंत खोमोश किया जा सकता है। लेकिन, यह हमारी परंपरा है कि हम हिंदुओं के लिए अयोग्य न हों। लेकिन यदि हमे मजबूर किया गया, तो हमे उस काम को भी अंजाम देना पड़ेगा।”

“जनवरी में महात्मा गांधी ने उपवास शुरू कर दिया। यह कलकत्ता की तरह शहर के हिंदू और मुसलमानों के बीच शांति कायम करने में सफल रहा। अब उन्होंने पाकिस्तान में रह रहे हिंदू और सिखों की सुरक्षा के लिए वहां जाने की योजना बनाई। लेकिन, 30 जनवरी को उन्हें खामोश (हत्या) कर दिया गया। यह काम आरएसएस के पूर्व सदस्य नाथूराम गोडसे द्वारा हमेशा के लिए कर दिया गया। इस तुरंत बाद ही संघ को प्रतिबंधित कर दिया गया और गोलवलकर समेत इसके तमाम नेताओं को जेल भेज दिया गया।”