स्वतंत्रता संग्राम में आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार को लेकर आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने बड़ा बयान दिया है। दत्तात्रेय होसबले ने शुक्रवार को कहा कि हेडगेवार न केवल देश की आजादी के लिए जेल गए, बल्कि जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1929 में लाहौर में पूर्ण स्वराज की घोषणा की, तो संघ की सभी शाखाओं में इसके लिए खुशी मनाई गई।
पूर्ण स्वराज के पक्ष में थे हेडगेवार
दत्तात्रेय होसबोले संसद परिसर में ‘मैन ऑफ द मिलेनिया – डॉ. हेडगेवार’ पुस्तक के विमोचन के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। यह पुस्तक सुरुचि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई है जिसके मुखिया आरएसएस नेता राजीव तुली हैं। दत्तात्रेय होसबोले ने कहा, “डॉक्टर हेडगेवार स्वतंत्रता संग्राम के बारे में बहुत स्पष्ट थे। 1920 में कांग्रेस का एक सम्मेलन हुआ। वह तब सम्मेलन की स्वागत समिति का हिस्सा थे। उस समय नेशनलिस्ट यूनियन नाम का एक ग्रुप बना था। इसने सम्मेलन की स्वागत समिति की ओर से दो प्रस्ताव रखे। यह प्रस्तावित किया गया कि कांग्रेस को पूर्ण स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता) की घोषणा करनी चाहिए। दूसरे प्रस्ताव में कहा गया कि भारत को लोकतंत्र स्थापित करना होगा और दुनिया को पूंजीवाद की जंजीरों से मुक्त कराना होगा। हेडगेवार का एक वैश्विक दृष्टिकोण था कि भारत की स्वतंत्रता केवल उसके लोगों की मुक्ति नहीं है, बल्कि कुछ और है।”
पूर्ण स्वराज की घोषणा 1930 में कांग्रेस द्वारा पारित की गई थी। 31 दिसंबर 1929 को नेहरू ने लाहौर में रावी नदी के तट पर भारतीय ध्वज फहराया और भारत के लोगों से 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने के लिए कहा। हालांकि हेडगेवार ने कांग्रेस छोड़ दिया था और 1925 में आरएसएस की स्थापना की थी।
लाहौर घोषणा के बारे में बात करते हुए दत्तात्रेय होसबोले ने कहा, “जब लाहौर कांग्रेस के दौरान नेहरू जी ने पूर्ण स्वराज प्रस्ताव पेश किया, तो डॉ हेडगेवार ने कहा कि 26 जनवरी को सभी संघ शाखाओं द्वारा धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाना चाहिए। उन्होंने कांग्रेस को शुभकामनाएं देते हुए देश भर में पत्र भेजकर इस पर प्रस्ताव पारित करने को कहा। ऐसे कार्यक्रम तब सभी शाखाओं में आयोजित किए गए थे।”
दो बार जेल गए थे हेडगेवार
दत्तात्रेय होसबोले ने कहा, “देश की आजादी के लिए हेडगेवार 1921 और 1931 में दो बार जेल गए। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न पहलुओं में भाग लिया। उनका मानना था कि देशवासियों की अंतर्निहित शक्ति और विश्वास को जागृत किए बिना राष्ट्रीय गौरव हासिल नहीं किया जा सकता है। स्वतंत्रता संग्राम में भारतीयों ने एक-दूसरे को नीचे गिराया और इसलिए आरएसएस ने चरित्र निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया।”