साल 2011 की जनगणना के धार्मिक आंकड़ों में पाए गए ‘‘गंभीर जनांकिकीय बदलावों’’ को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने शनिवार को देश की जनसंख्या नीति की समीक्षा की मांग की। ‘जनांकिकीय असंतुलनों’ पर चिंता जताते हुए आरएसएस के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल ने एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र से अनुरोध किया कि वह देश में संसाधनों की उपलब्धता, भविष्य की जरूरतों और ‘जनांकिकीय असंतुलन की समस्या’ को देखते हुए राष्ट्रीय जनसंख्या नीति फिर से तैयार करे।

मीडिया को दी गई प्रस्ताव की प्रति के मुताबिक उसमें सीमा पार से घुसपैठ पर पूरी तरह लगाम लगाने, राष्ट्रीय नागरिक पंजी तैयार करने के साथ ही इन घुसपैठियों को नागरिकता अधिकार हासिल करने और जमीन खरीदने से रोके जाने की व्यवस्था करने की भी मांग की गई है।

आरएसएस की ओर से स्वीकार किए गए प्रस्ताव पर पत्रकारों से बातचीत में सह-सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल ने कहा कि 2011 की जनगणना के धार्मिक आंकड़ों ने जनसंख्या नीति की समीक्षा को जरूरी बना दिया है। प्रस्ताव का हवाला देते हुए कृष्ण गोपाल ने कहा कि यूं तो 1952 में ही भारत उन चुनिंदा देशों में शुमार हो गया था जिन्होंने जनसंख्या नियोजन उपायों को अमल में लाने की बात कही थी, लेकिन वर्ष 2000 में ही एक समग्र जनसंख्या नीति बन सकी और एक जनसंख्या आयोग गठित हो सका।

गोपाल ने कहा कि इस नीति का मकसद प्रजनन दर को कुल प्रजनन दर (टीएफआर) के आदर्श आंकड़े 2.1 तक लाकर 2045 तक एक स्थिर लेकिन स्वस्थ जनसंख्या का लक्ष्य हासिल करना था और अपेक्षा थी कि यह लक्ष्य राष्ट्रीय संसाधनों और भविष्य की जरूरतों के अनुरूप हो तथा यह समाज के सभी वर्गों पर समान रूप से लागू हो।

बहरहाल, 2005-06 के राष्ट्रीय प्रजनन एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) और 2011 की जनगणना के धार्मिक आंकड़ों में 0-6 आयु वर्ग की जनसंख्या के प्रतिशत, दोनों संकेत देते हैं कि टीएफआर और बाल अनुपात ‘‘सभी धर्मों में असमान हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘उपमन्यु हजारिका आयोग की रिपोर्ट…..और समय-समय पर कई न्यायिक निर्देशों ने भी इन तथ्यों को सही ठहराया है।’’

प्रस्ताव में कहा गया है, ‘‘यह भी एक तथ्य है कि घुसपैठिये इन राज्यों के नागरिकों के अधिकारों को हड़प रहे हैं और सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं आर्थिक तनाव पैदा करने के अलावा पहले से ही कम संसाधनों पर भारी बोझ बन रहे हैं।’’

पूर्वोत्तर राज्यों में जनसंख्या के ‘‘धार्मिक असंतुलन’’ को गंभीर करार देते हुए प्रस्ताव में कहा गया कि 1951 में अरुणाचल प्रदेश में भारतीय मूल के लोग 99.21 फीसदी थे, लेकिन 2001 में यह घटकर 81.3 फीसदी हो गए और 2011 में यह और घटकर 67 फीसदी रह गए।’’

मणिपुर के बारे में आरएसएस के प्रस्ताव में कहा गया कि 1951 में यहां भारतीय मूल के लोगों की संख्या 80 फीसदी से ज्यादा थी, जबकि 2011 में यह घटकर 50 फीसदी हो गई है। प्रस्ताव में दावा किया गया कि देश के कई राज्यों में इन उदाहरणों और ‘‘अप्राकृतिक वृद्धि’’ के संकेतकों से पता चलता है कि किसी निहित स्वार्थ के जरिए ‘‘लक्षित धर्मांतरण’’ हो रहा है।

लगातार ब्रेकिंग न्‍यूज, अपडेट्स, एनालिसिस, ब्‍लॉग पढ़ने के लिए आप हमारा फेसबुक पेज लाइक करेंगूगल प्लस पर हमसे जुड़ें  और ट्विटर पर भी हमें फॉलो करें