मनोज कुमार मिश्र
26 जून को लोकसभा की तीन और विधानसभा की सात सीटों पर उपचुनावों के नतीजों ने राजनीतिक दलों को अलग-अलग संदेश दिए हैं। उत्तर प्रदेश की रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा सीट भाजपा ने जीत ली। सपा के दोनों बड़े नेताओं अखिलेश यादव व आजम खान नेप्रदेश की राजनीति करने के लिए अपनी सीट छोड़ी थी। अब हार के बाद तो चुनाव प्रक्रिया पर ही सवाल उठा रहे हैं। आम आदमी पार्टी दिल्ली की राजेंद्र नगर विधानसभा सीट जीत कर भले ही अपनी पीठ थपथपा रही है लेकिन संगरूर लोकसभा सीट हारने के बाद उसके होश फाख्ता हैं। संगरूर सीट के परिणाम एक अलग ही संकेत दे रहे हैं।
दिल्ली के राजेंद्र नगर विधानसभा उपचुनाव की जीत पर होने वाले जश्न को संगरूर लोकसभा सीट की हार ने कम कर दिया है। आप पर 2017 के विधानसभा चुनाव और इस साल मार्च में हुए विधानसभा चुनाव में अलगाववादियों से समर्थन लेने का आरोप लगा था। कहा जाता है कि 2017 में सत्ता में न पहुंच पाने में यही आरोप एक बाधा बना था, जबकि इस साल के चुनाव में सत्ता पाने में आप को सहायता मिली थी।
सत्ता में आने के बाद पंजाब में हुई हिंसक घटनाओं ने आप सरकार की क्षमताओं पर सवाल उठाने का मौका दे दिया। संगरूर लोकसभा सीट का नतीजा भी इसी से जोड़ा जा रहा है। विधानसभा की सात सीटों के उपचुनाव हुए थे। त्रिपुरा में सबसे ज्यादा चार सीटों के चुनाव थे। चुनाव में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री मानिक साहा समेत तीन सीटों पर भाजपा उम्मीदवार जीता, एक सीट कांग्रेस जीती। झारखंड की मंडार सीट कांग्रेस और आंध्र प्रदेश की अत्माकुर सीट से वाईआरएस कांग्रेस जीती।
राजेंद्र नगर विधानसभा उपचुनाव के नतीजे ने फिर से दिल्ली के राजनीतिक समीकरण बदलने के ठोस सबूत दिए हैं। 2006 के परिसीमन से पहले यह सीट पाकिस्तान से विभाजन के बाद आए पाकिस्तान मूल के लोगों के बहुल वाली मानी जाती थी। परिसीमन के बाद राजेंद्र नगर विधानसभा सीट में काफी बदलाव हुआ है। उस सीट पर एक अच्छी आबादी पूर्वांचल (बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड आदि के मूल निवासी) और अल्पसंख्यकों की हो गई है। बावजूद इसके अभी इस सीट पर दबदबा पंजाब मूल के मतदाताओं का ही रहा है। तभी इस सीट पर हुए सातों चुनाव पंजाब मूल के उम्मीदवार ही जीते। भाजपा के पूरन चन्द्र योगी 2003 तक राजेंद्र नगर सीट जीतते रहे। 2020 के चुनाव में आप ने राघव चड्ढा को टिकट दिया और वे इस सीट को जीतने में कामयाब रहे।
इस उपचुनाव में भाजपा ने तो स्थानीय और दमदार पंजाबी नेता राजेश भाटिया को उम्मीदवार बनाया था। जिनका प्रभाव गैर पंजाबी मतदाताओं पर भी पूरा माना जाता है। आप ने नया प्रयोग करके पूर्वांचल मूल के दुर्गेश पाठक को उम्मीदवार बनाया। कांग्रेस ने पूर्व पार्षद प्रेमलता को टिकट दिया। चुनाव परिणाम ने साबित कर दिया कि अब आप पूरी तरह से कांग्रेस के वोटरों को अपना बना चुकी है। आप के वजूद में आने के बाद लगातार इस बात की पुष्टि होती जा रही है। 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को आठ सीटें और 24.50 फीसद वोट मिले।
2015 के चुनाव में कोई सीट नहीं मिली और वोट औसत 9.7 फीसद रह गया। 2020 के विधानसभा चुनाव में तो यह 4.26 फीसद पर आ गया। इस उपचुनाव में कांग्रेस को 2014 यानी 2.79 फीसद वोट मिले हैं। आाप की इस जीत के दूरगामी मतलब हैं। राजेन्द्र नगर जैसी भाजपा की माने जानेवाली सीट पर आप की लगातार तीसरी जीत है। इस जीत के कई कारण हो सकते हैं लेकिन यह तो दावे के साथ कहा जा सकता है कि दिल्ली में चाहे जिस कारण से हो, आप हर तरह की परंपरागत राजनीतिक समीकरणों को तोड़ने की हैसियत में आ गई है।
आगामी चुनावों में दिल्ली में आप उसी मजबूती से लड़ेगी, जैसा वह राजेंद्र नगर में लड़ी। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने चुनाव की कमान संभाल रखी थी। आप को संगरूर की हार से तो सबक मिला है लेकिन राजेंद्र नगर जीत ने उत्साह बढ़ाया है। भाजपा उत्तर प्रदेश की दो लोक सभा सीटों को जीत कर अति उत्साह में है, वास्तव में वह उसकी बड़ी जीत है लेकिन राजेंद्र नगर विधानसभा उपचुनाव की हार उसे दिल्ली में बड़ा सदमा दे गया है। इस बार अगर भाजपा नहीं संभली तो नगर निगम चुनाव में उसे ज्यादा कठिन चुनौती मिलने वाली है। ये उपचुनावों के नतीजे सभी दलों को कोई न कोई संकेत दे गए हैं। किसी दल को कहीं तो किसी को कहीं झटका लगा है।