महाराष्ट्र की जीत से गदगद NDA को झारखंड में निराशा हाथ लगी है। प्रदेश के आदिवासी बेल्ट में BJP का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है। आदिवासी बेल्ट की 21 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने के बावजूद BJP नीत गठबंधन को सिर्फ एक सीट पर कामयाबी मिल सकी है। दूसरी ओर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) नीत गठबंधन मजबूत आदिवासी लहर को हवा देने में सफल रहा और 27 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रहा है।
झारखंड के आदिवासी बेल्ट में BJP को लगातार दूसरी बार झटका लगा है। इससे पहले लोकसभा चुनाव में पार्टी को राज्य की कुल 14 लोकसभा सीटों में से सभी पांच आदिवासी बहुल सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा था।
आदिवासी बेल्ट में बीजेपी को क्यों लगा झटका?
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाला सत्तारूढ़ गठबंधन शनिवार को 81 सदस्यीय विधानसभा की 56 सीटें जीतकर लगातार दूसरी बार झारखंड की सत्ता पर काबिज हुआ है। वहीं, चुनाव अभियान के दौरान एड़ी-चोटी का जोर लगाने वाला NDA महज 24 सीटें हासिल कर सका है । विधानसभा चुनावों में JMM और कांग्रेस ने आदिवासी बेल्ट की 27 सीटों पर कब्जा जमाया, जबकि भाजपा महज सरायकेला में जीत दर्ज करने में सफल रही, जहां उसने पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को मैदान में उतारा था।
चंपई सोरेन विधानसभा चुनावों से पहले जेएमएम छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे। उन्होंने हेमंत सोरेन पर उनका अपमान करने का आरोप लगाया था। हालिया विधानसभा चुनावों में आदिवासी बेल्ट की 20 सीटें अकेले झामुमो की झोली में गईं। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, पार्टी को लोकलुभावन योजनाओं के अलावा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ कथित अन्याय का मुद्दा उठाने से पैदा हुई सहानुभूति लहर का फायदा मिला है।
कांग्रेस ने भी किया बेहतर प्रदर्शन
JMM की सहयोगी कांग्रेस आदिवासी बेल्ट की सात सीटों पर विजयी रही है। जबकि, 2014 के विधानसभा चुनावों में पार्टी आदिवासी बेल्ट में खाता तक खोलने में नाकाम रही थी। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनावों में उसने छह सीटों पर कब्जा जमाया था।
आदिवासी बहुल सीटों पर जेएमएम के दबदबे में वर्ष 2014 से से वृद्धि देखी जा रही है। उस साल के विधानसभा चुनावों में जहां पार्टी ने 13 सीटें हासिल की थीं, वहीं 2019 के चुनावों में उसकी सीटों का आंकड़ा बढ़कर 19 हो गया था।
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बीजेपी के हाथ से पांच बार जीती सीट भी गई
भाजपा ने 2014 के विधानसभा चुनावों में आदिवासी बेल्ट की 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन 2019 के चुनावों में पार्टी महज दो सीटों पर सिमटकर रह गई। नवंबर 2000 में झारखंड राज्य के गठन के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि भाजपा को खूंटी विधानसभा सीट पर हार झेलनी पड़ी है।
वर्ष 2000, 2005, 2009, 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों में खूंटी से लगातार पांच बार विधायक चुने गए भाजपा नेता नीलकंठ सिंह मुंडा ने इस बार 42,053 वोटों के अंतर से झामुमो उम्मीदवार सूर्या मुंडा के हाथों यह सीट गंवा दी।
भाजपा के टिकट पर घाटशिला सीट से किस्मत आजमाने वाले बाबूलाल सोरेन (चंपई सोरेन के बेटे) और पोटका से मैदान में उतरी मीरा मुंडा (पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी) को भी हार का सामना करना पड़ा है । बाबूलाल सोरेन को जेएमएम के रामदास सोरेन ने 22,446 वोटों से शिकस्त दी। वहीं, मीरा को जेएमएम उम्मीदवार संजीब सरदार ने 27,902 वोटों के अंतर से हराया।
लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा का दामन थामने वाली कांग्रेस की पूर्व सांसद गीता कोड़ा को भी हार का सामना करना पड़ा है। जगन्नाथपुर में कांग्रेस उम्मीदवार सोना राम सिंकू ने उन्हें 7,383 मतों से मात दी।
इसके अलावा, गुमला में भाजपा के पूर्व लोकसभा सांसद सुदर्शन भगत को JMM के भूषण तिर्की से 26,301 वोटों से हार झेलनी पड़ी। जबकि, बिशुनपुर में पार्टी के राज्यसभा सांसद समीर उरांव को JMM के चमरा लिंडा ने 32,756 वोटों से शिकस्त दी।
हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी ने किया था जमकर प्रचार
भाजपा का चुनाव प्रचार अभियान “बांग्लादेशी घुसपैठ”, भ्रष्टाचार और कानून-व्यवस्था की स्थिति पर केंद्रित रहा, इसके बावजूद JMM हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना के आक्रामक प्रचार की बदौलत आठ पीवीटीजी (विशेष रूप से कमजोर आदिवासी) सहित 32 जनजातियों में यह भरोसा जगाने में कामयाब रही कि पार्टी उनके हितों को ध्यान में रखते हुए कल्याणकारी उपाय करेगी। JMM की ‘मईया सम्मान योजना’ ने भी पार्टी की जीत में अहम भूमिका निभाई। इस योजना के तहत 18 से 51 साल के आयु वर्ग की महिलाओं को हर महीने 1,000 रुपये की आर्थिक मदद दी जाती है। पार्टी ने विधानसभा चुनावों में जीत के बाद सहायता राशि बढ़ाकर 2,500 रुपये प्रति माह करने का वादा किया था।