देश में 2013 की तुलना में 2020 में नक्सली हिंसा की घटनाओं में 41 फीसद और मौतों में 54 फीसद की कमी आई है। इस तरह की घटनाओं को काफी हद तक सीमित कर दिया गया है और माओवादी हिंसा की 88 फीसद घटनाएं केवल 30 जिलों में हुई हैं। गृह मंत्रालय की 2020-21 के लिए वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 2013 में 10 राज्यों के 76 जिलों के 328 पुलिस थानों की तुलना में 2020 में नौ राज्यों के 53 जिलों के 226 पुलिस थानों से नक्सली हिंसा की सूचना मिली थी।

रिपोर्ट के अनुसार, ‘छह वर्ष में वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) हिंसा में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। वर्ष 2011 में शुरू हुई गिरावट का सिलसिला 2020 में भी जारी रहा।’ गृह मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2013 की तुलना में 2020 में हिंसक घटनाओं में कुल 41 फीसद की कमी आई और यह संख्या 1,136 से घटकर 665 रह गई जबकि एलडब्लूई से संबंधित मौतों में 54 फीसद की कमी आई और यह संख्या 397 से घटकर 183 रह गई।’ 2020 में, 315 घटनाओं और 111 लोगों की मौत के साथ छत्तीसगढ़ सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य बना रहा।

इसके बाद झारखंड (199 घटनाएं और 39 मौत), ओडिशा (50 घटनाएं और 9 मौत), महाराष्ट्र (30 घटनाएं और 8 मौत) और बिहार में 26 घटनाएं और मौत के आठ मामले सामने आए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि वामपंथी उग्रवाद परिदृश्य में समग्र सुधार का श्रेय वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों में सुरक्षा बलों की अधिक उपस्थिति और बढ़ती हुई क्षमता, बेहतर संचालन रणनीति और प्रभावित क्षेत्रों में विकास योजनाओं की बेहतर निगरानी को दिया जा सकता है। गृह मंत्रालय ने कहा कि वामपंथी उग्रवाद की हिंसा का भौगोलिक प्रसार भी काफी कम हो रहा है और हिंसा का दायरा काफी हद तक सीमित हो गया है।

सीएए सीमित संदर्भ में और खास उद्देश्य से बनाया गया कानून

संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) एक सीमित संदर्भ में और एक खास उद्देश्य से बनाया गया कानून है, जिसमें सहानुभूतिपूर्ण और सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर स्पष्ट ‘कट आफ’ तिथि के साथ कुछ चुनिंदा देशों से आने वाले विशेष समुदायों को छूट देने की कोशिश की गई है। गृह मंत्रालय (एमएचए) की वार्षिक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।

सीएए 2019 में बनाया गया था, लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है। इसका उद्देश्य हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के उन सदस्यों को नागरिकता प्रदान करना है, जिन्हें अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था। इस कानून के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हुए थे, जिनमें देश के विभिन्न हिस्सों में लगभग 100 लोगों की मौत हुई थी। गृह मंत्रालय की 2020-21 के लिए जारी वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार ‘सीएए एक सीमित संदर्भ में और एक खास उद्देश्य से बनाया गया कानून है, जिसमें स्पष्ट ‘कट आफ’ तारीख के साथ कुछ चुनिंदा देशों से आने वाले खास समुदायों को छूट देने की कोशिश की गई है। यह एक सहानुभूतिपूर्ण एवं सुधारात्मक कानून है। ’

इसके अनुसार सीएए भारतीय नागरिकों पर लागू नहीं होता है और इसलिए यह कानून किसी भी तरह से उनके अधिकारों को कम नहीं करता है। इसमें कहा गया है कि संविधान ने छठी अनुसूची के तहत पूर्वोत्तर क्षेत्र के आदिवासियों और स्वदेशी लोगों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए विशेष प्रावधान प्रदान किए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सीएए के जरिये संविधान की छठी अनुसूची के तहत क्षेत्रों और बंगाल पूर्वी सीमा विनियमन,1873 के तहत ‘इनर लाइन परमिट’ प्रणाली द्वारा कवर किए गए क्षेत्रों को बाहर कर दिया गया है।

‘आतंक के कारण 64,827 कश्मीरी पंडित परिवारों को कश्मीर घाटी छोड़नी पड़ी’

सरकार ने कहा है कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की वजह से 64,827 कश्मीरी पंडित परिवारों को 1990 के दशक की शुरुआत में कश्मीर घाटी छोड़ने और जम्मू, दिल्ली और देश के कुछ अन्य हिस्सों में बसने के लिए मजबूर होना पड़ा था। गृह मंत्रालय (एमएचए) की 2020-21 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 1990 के दशक और 2020 के बीच जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के कारण 14,091 नागरिकों और सुरक्षा बल के 5,356 जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद सीमा पार से आतंकवादियों की घुसपैठ से जुड़ा हुआ है।’ इसमें कहा गया है कि कश्मीरी पंडितों के अलावा, आतंकवाद की वजह से कुछ सिख और मुसलिम परिवारों को भी कश्मीर घाटी से जम्मू, दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। रिपोर्ट के अनुसार जम्मू के पहाड़ी इलाकों से लगभग 1,054 परिवार जम्मू के मैदानी इलाकों में चले गए।

इसमें कहा गया है कि जम्मू कश्मीर के राहत और प्रवासी आयुक्त के पास उपलब्ध पंजीकरण के रिकार्ड के अनुसार, वर्तमान में 43,618 पंजीकृत कश्मीरी प्रवासी परिवार जम्मू में बसे हुए हैं। 19,338 परिवार दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में और 1,995 परिवार देश के कुछ अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बसे हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार कश्मीरी प्रवासियों को घाटी में फिर से बसाने के उद्देश्य से गृह मंत्रालय ने प्रधानमंत्री पुनर्निर्माण पैकेज – 2008 के तहत जम्मू-कश्मीर सरकार में 3,000 नौकरियों, और प्रधानमंत्री विकास पैकेज – 2015 (पीएमडीपी-2015) के तहत अतिरिक्त 3,000 नौकरियों को मंजूरी दी है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जम्मू कश्मीर में 2014 से 2020 तक पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित कुल 2,546 आतंकी घटनाएं हुईं, जिनमें 481 सुरक्षाकर्मी, 215 नागरिक और 1,216 आतंकवादी मारे गए। इसमें कहा गया है कि 2014 और 2020 के बीच जम्मू कश्मीर में सीमा पार से घुसपैठ के 1,776 प्रयास किए गए थे।