महेश केजरीवाल
दिल्ली सरकार के कैबिनेट मंत्री राजकुमार आनंद का इस्तीफा संवैधानिक और सैद्धांतिक प्रक्रिया में लटक गया है। सोशल मीडिया पर भले ही वह पूर्व मंत्री हो गए लेकिन सरकारी दस्तावेज में अभी भी मंत्री हैं। 10 अप्रैल को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भेजे गए इस्तीफे पर अब तक स्वीकृति की मुहर नहीं लग पाई है। संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा व दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा का कहना है कि देश में इस तरह का यह पहला मामला है।
केजरीवाल सरकार पर भ्रष्टाचार सहित दलित और आरक्षण विरोधी होने का आरोप लगाने वाले कैबिनेट मंत्री राजकुमार आनंद का इस्तीफा स्वीकार नहीं हो पाया है। उनके पास समाज कल्याण विभाग सहित गुरुद्वारा चुनाव, एससी एसटी, कापरेटिव, भूमि और भवन, श्रम और रोजगार सहित कुल सात विभाग हैं। मंत्री पद से इस्तीफा स्वीकार न होने और किसी अन्य मंत्री को इसका प्रभार नहीं मिलने के कारण कल्याणकारी योजनाओं सहित मंजूरी को लेकर कई विभागों की फाइलें अटक गई है।
उन्होंने सोशल मीडिय ‘एक्स’ पर केजरीवाल सरकार को निशाने पर लेते हुए लिखा कि तीर्थ यात्रा दिल्ली की सबसे सफल योजना, बाबा साहेब आंबेडकर की तस्वीर लगाने वालों ने आज तक एक भी यात्रा क्यों नहीं भेजी बोध गया या आंबेडकर जन्मस्थल। समाज कल्याण मंत्री राजकुमार आनंद ने संवाददाता को बताया कि वह पहले भी स्वतंत्र रूप से दलितों के लिए काम करते थे और आगे भी काम जारी रहेंगे। भविष्य में किसी अन्य राजनीतिक पार्टी में शामिल होने की बात को उन्होंने सिरे से नकार दिया। उन्होंने बताया कि उपराज्यपाल से मिलकर उन्होंने अपने इस्तीफे की प्रगति रिपोर्ट की जानकारी ली थी।
मुख्यमंत्री का इस तरह जेल से सरकार चलाना गलत है। यदि कार्यवाहक मुख्यमंत्री नियुक्त होते तो कई कामों में रुकावट नहीं आती। उन्होंने आरोप लगाया कि चार साल इस पार्टी के साथ काम करने के बाद मैंने यह समझा कि यह पार्टी व सरकार दलित आरक्षण और बाबा साहेब के विचारों की विरोधी है। कैबिनेट मंत्री राजकुमार आनंद के इस्तीफे लेकर फंसे पेंच पर संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा व दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा का कहना है कि देश में इस तरह का यह पहला मामला है। जिसमें राजनीतिक शक्ति का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है।
किसी मुख्यमंत्री के जेल जाने पर प्रशासनिक और अन्य कार्य सुचारु रूप से चलते रहे इसके लिए कार्यवाहक मुख्यमंत्री को नियुक्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि लंबे समय तक यदि किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या संविधान के स्पष्ट उल्लंघन की स्थिति बनी रहती है तो संभावना है कि दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए।
