भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि नीतिगत दर में सोच-समझ कर की गई वृद्धि और सरकार के स्तर पर आपूर्ति व्यवस्था बेहतर बनाने के उपायों से खुदरा महंगाई घटी है तथा इसे और कम कर चार फीसद पर लाने के लिए कोशिश जारी है। दास ने साथ ही जोड़ा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनिश्चितताएं और अल नीनो की आशंका के साथ चुनौतियां भी बनी हुई हैं।

उन्होंने कहा कि ब्याज दर और मुद्रास्फीति साथ-साथ चलते हैं। इसीलिए अगर मुद्रास्फीति टिकाऊ स्तर पर काबू में आती है, तो ब्याज दर भी कम हो सकती है। दास ने यहां आरबीआइ मुख्यालय में कहा, यूक्रेन युद्ध के कारण पिछले साल फरवरी-मार्च के बाद मुद्रास्फीति काफी बढ़ गई थी। इसके कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिंसों के दाम में तेजी आई।

गेहूं और खाद्य तेल जैसे कई खाद्य पदार्थ यूक्रेन और मध्य एशिया क्षेत्र से आते हैं। उस क्षेत्र से आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने से कीमतें काफी बढ़ गई। लेकिन उसके तुरंत बाद हमने कई कदम उठाए। हमने पिछले साल मई से ब्याज दर बढ़ाना शुरू किया। सरकार के स्तर पर भी आपूर्ति व्यवस्था बेहतर बनाने के लिए कई कदम उठाए गए। इन उपायों से मुद्रास्फीति में कमी आई है और अभी यह पांच फीसद से नीचे है।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर मई महीने में 25 महीने के निचले स्तर पर 4.25 फीसद पर रही। बीते वर्ष अप्रैल में यह 7.8 फीसद तक चली गई थी। महंगाई को काबू में लाने के लिए रिजर्व बैंक पिछले साल मई से इस साल फरवरी तक रेपो दर में 2.5 फीसद की वृद्धि कर चुका है। यह पूछे जाने पर कि लोगों को महंगाई से कब तक राहत मिलेगी, दास ने कहा, मुद्रास्फीति तो कम हुई है।

पिछले साल अप्रैल में 7.8 फीसद थी और यह अब 4.25 फीसद पर आ गई है। हम इस पर मुस्तैदी से नजर रखे हुए हैं। जो भी कदम जरूरी होगा, हम उठाएंगे। इस वित्त वर्ष में हमारा अनुमान है कि यह औसतन 5.1 फीसद रहेगी और अगले साल (2024-25) इसे चार फीसद के स्तर पर लाने के लिए हमारी कोशिश जारी रहेगी। आरबीआइ को दो फीसद घट-बढ़ के साथ खुदरा महंगाई दर चार फीसद पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है। केंद्रीय बैंक नीतिगत दर-रेपो पर निर्णय करते समय मुख्य रूप से खुदरा मुद्रास्फीति पर गौर करता है।