रिपब्लिक मीडिया ग्रुप के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी और अन्य दो की गिरफ्तारी के मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को खूब फटकार लगाई और पत्रकार की गिरफ्तारी को व्यक्तिगत आजादी पर बंदिश लगाया जाना बताया। गोस्वामी को साल 2018 में आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में गिरफ्तार किया गया था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने इस मामले में की सुनवाई की। इसमें जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि अर्नब की जो भी विचारधारा हो कम से कम वो उनका चैनल तो नहीं देखते।
टॉप कोर्ट ने इस बात चिंता जाहिर की कि राज्य सरकारें कुछ लोगों को विचारधारा और मत भिन्नता के आधार पर निशाना बना रही हैं। अर्नब गोस्वामी की अंतरिम जमानत की याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, ‘हम देख रहे हैं कि एक के बाद एक ऐसा मामला है जिसमें हाईकोर्ट जमानत नहीं दे रहे हैं और वे लोगों की स्वतंत्रता, निजी स्वतंत्रता की रक्षा करने में विफल हो रहे हैं।’
कोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि क्या गोस्वामी को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की कोई जरूरत थी क्योंकि यह व्यक्तिगत आजादी से संबंधित मामला है। पीठ ने टिप्पणी की कि भारतीय लोकतंत्र असाधारण तरीके से लचीला है और महाराष्ट्र सरकार को इन सबको (टीवी पर अर्नब के ताने) नजरअंदाज करना चाहिए।
इस बीच चंद्रचूड ने कहा, ‘उनकी जो भी विचारधारा हो, कम से कम मैं तो उनका चैनल नहीं देखता लेकिन अगर सांविधानिक कोर्ट आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा तो हम निर्विवाद रूप से बर्बादी की ओर बढ़ रहे होंगे।’
पीठ ने कहा, ‘सवाल यह है कि क्या आप इन आरोपों के कारण व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत आजादी से वंचित कर देंगे। अगर सरकार इस आधार पर लोगों को निशाना बनाएंगे… आप टेलीविजन चैनल को नापसंद कर सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए। पीठ ने टिप्पणी की कि मान लीजिए की प्राथमिकी ‘पूरी तरह सच’ है लेकिन यह जांच का विषय है।
कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए सीनियर कपिल सिब्बल से पीठ ने सवाल किया, ‘क्या धन का भुगतान नहीं करना, आत्महत्या के लिए उकसाना है? यह इंसाफ का उपहास होगा अगर प्राथमिकी लंबित होने के दौरान जमानत नहीं दी जाती है।’ कोर्ट ने कहा, ‘ए’ ‘बी’ को पैसे का भुगतान नहीं करता है और क्या यह आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला है? अगर हाईकोर्ट इस तरह के मामलों में कार्यवाही नहीं करेंगे तो व्यक्तिगत स्वतंत्रता पूरी तरह नष्ट हो जाएगी।
कोर्ट ने कहा कि हम इसे लेकर बहुत ज्यादा चिंतित हैं। अगर हम इस तरह के मामलों में कार्रवाई नहीं करेंगे तो यह बहुत ही परेशानी वाली बात होगी। जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि अदालतों की उनके फैसलों के लिए तीखी आलोचना हो रही है और मैं अक्सर अपने लॉ क्लर्क से पूछता हूं और वे कहते हैं कि सर कृपा करके ट्विट्स मत देखें।
गोस्वामी की तरफ से पेश हुए सीनियर वकील हरीश साल्वे ने उनके और चैनल के खिलाफ दर्ज तमाम मामलों का जिक्र किया और आरोप लगाया कि महाराष्ट्र सरकार उन्हें निशाना बना रही है। साल्वे ने कहा, ‘यह सामान्य मामला नहीं था और सांविधानिक कोर्ट होने के नाते बॉम्बे हाईकोर्ट को इन घटनाओं का संज्ञान लेना चाहिए था।
उन्होंने पूछा कि क्या यह ऐसा मामला है जिसमे अर्नब गोस्वामी को खतरनाक अपराधिकयों के साथ तलोजा जेल में रखा जाए? उन्होंने कहा कि मैं अनुरोध करूंगा कि यह मामला सीबीआई को सौंप दिया जाए और अगर वह दोषी हैं तो उन्हें सजा दीजिए।
उल्लेखनीय है कि कोर्ट ने अन्य दो नीतीश सारदा और प्रवीण राजेश सिंह को भी 50-50 हजार रूपए के निजी मुचलके पर अंतरिम जमानत दे दी। पीठ ने कहा कि इन सभी की रिहाई में देरी ना हो। (एजेंसी इनपुट)