सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा कांड के बाद हुए दंगों से जुड़े मामले में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को नियमित जमानत दी है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ मामले में आरोपपत्र दायर किया जा चुका है। लिहाजा उनको हिरासत में लेकर पूछताछ की जरूरत नहीं है।
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने सीतलवाड़ को जमानत देते हुए गोधरा कांड के बाद हुए दंगों से जुड़े मामले के गवाहों को प्रभावित नहीं करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि वो गवाहों से दूरी बनाकर रखें। ट्रिपल बेंच ने गुजरात हाईकोर्ट के एक जुलाई के उस आदेश को रद कर दिया, जिसमें तीस्ता को गोधरा कांड के बाद हुए दंगों से जुड़े मामले में आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 1 जुलाई को तीस्ता को अरेस्ट से अंतरिम राहत दी थी। सीतलवाड़ पर आरोप है कि उसने गोधरा दंगों के बाद दस्तावेजों में हेरफेर करके गवाहों को फुसलाने की कोशिश की जिससे मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत गुजरात सरकार के कुछ बड़े चेहरों को फंसाया जा सके। हालंकि पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते ही तीस्ता को अरेस्ट किया गया था।
2022 में SC ने कहा था कि जिन्होंने गुजरात को कलंकित करने की कोशिश की, भेजा जाए जेल
जून 2022 में सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि जिन लोगों ने दंगों के बाद गुजरात को कलंकित करने की कोशिश की उन सभी को जेल में भेजा जाना चाहिए। उसके बाद गुजरात के एंटी टेरर स्कवायड ने तीस्ता को हिरासत में ले लिया था। सितंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने ही तीस्ता को अंतरिम जमानत दी थी। गुजरात हाईकोर्ट ने उसकी रेगुलर बेल की रिट को खारिज कर दिया था। उसके बाद तीस्ता ने सुप्रीम कोर्ट में मौजूदा याचिका दाखिल की थी।
सीतलवाड़ की तरफ से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल पेश हुए। उनका कहना था कि उनके मुवक्किल को लेकर गुजरात सरकार की नीयत ठीक नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देकर कहा कि इसके तुरंत बाद ही तीस्ता को अरेस्ट कर लिया गया। आखिर ऐसी जल्दी क्या थी?