‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के पॉलिटिकल एडिटर रवीश तिवारी ने जब राज्यसभा सांसद और कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे से पूछा कि आप साल 1972 से विधायिका का हिस्सा रहे हैं। संसद में हुए हंगामे से आप लोगों को क्या मिला,आप लोगों ने क्या हासिल किया? इसका जवाब देते हुए मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, ‘ ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। सुषमा स्वराज ने क्या कहा था? ‘व्यवधान भी लोकतंत्र का हिस्सा है।’ अरुण जेटली अक्सर लोकतंत्र को जीवित रखने के तरीकों के बारे में बात करते थे और लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर आंदोलन का समर्थन भी करते थे … वे भी व्यवधानों का हिस्सा थे। 30 जनवरी 2011 को अरुण जेटली ने कहा, ‘संसद का काम चर्चा करना है। लेकिन कई बार संसद मुद्दों की अनदेखी करती है और ऐसे में संसद में बाधा डालना लोकतंत्र के पक्ष में होता है…’।
खड़गे ने कहा, ‘हम यही कर रहे हैं। अगर सरकार हमारे द्वारा उठाए जा रहे मुद्दों का समाधान नहीं ढूंढ पा रही है, तो हम देश को एक संदेश भेज रहे हैं…। जनवरी 2011 में सुषमा स्वराज ने कहा था, और मैं वहां था, ‘संसद चलाना सरकार का काम है, संसद चलाना विपक्ष का काम नहीं है ‘। अब बताओ, यह सारा ज्ञान उन्हीं से आया है, क्या किया जाए? क्या कर रहे हैं पीएम मोदी? यह आपके नेताओं से आया है।’
जब खड़गे से पूछा गया कि संसद के मानसून सत्र के खराब होने के लिए आपको क्या लगता है कि कौन जिम्मेदार है? इसके जवाब में खड़गे ने कहा, ‘हमारा एजेंडा मुद्दों को उठाना था। सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही नहीं, कम से कम 15 विपक्षी दलों ने हमारे मौलिक अधिकारों, अभिव्यक्ति और भाषण की स्वतंत्रता को बचाने के लिए सत्र के लिए प्राथमिकताओं पर फैसला किया था … पेगासस स्पाइवेयर से किसी को भी नहीं बख्शा गया – सेना, प्रेस, विपक्ष …।’
उन्होंने कहा, ‘हमने फैसला किया था कि चार मुद्दों को उठाया जाएगा जिसमें पेगासस, कृषि कानून, कोविड -19, और महंगाई शामिल थे।हमने इन मुद्दों पर कई नोटिस दिए लेकिन उन सभी को खारिज कर दिया गया।
मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, ‘जब हम पेगासस का मुद्दा उठा रहे थे, और यह बता रहे थे कि यह बुनियादी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, तो इसे व्यवधान कहा गया। उन्होंने (सरकार) कहा कि वे आरोपों से सहमत नहीं हैं, लेकिन यह नहीं बताया कि क्यों।’
खड़गे ने कहा, ‘राजनाथ सिंह ने मुझे यह कहने के लिए बुलाया कि वह ताजिकिस्तान जा रहे हैं, जिसके बाद इस बारे में (पेगासस) कुछ करने की जरूरत है। फिर, (केंद्रीय मंत्री) पीयूष गोयल और प्रह्लाद जोशी मुझसे मिलने आए। मैंने उनसे कहा कि हम विपक्षी दलों की बैठक कर रहे हैं, जिसके बाद हम उन्हें अपना फैसला बताएंगे। वे चले गए… फिर उन्होंने हॉल में कुछ विपक्षी नेताओं से बात की, कुछ ने संसद के अंदर… । सदन के कामकाज को सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने नहीं किया।’