What is RERA & How to file a Complaint under this against Builder, Developer and Real Estate Agents: मकान/फ्लैट का पजेशन (कब्जा) देने में बिल्डर लगातार देर करे या कोई और गड़बड़ (कंस्ट्रक्शन योजना में बदलाव, अचानक से अतिरिक्त शुल्क वसूलना, पार्किंग, स्टोरेज या फिर लिफ्ट सरीखी सुविधाएं नहीं देना आदि) तो रियल एस्टेट रेग्युलेशन एंड डेवलेपमेंट एक्ट यानी कि रेरा के तहत शिकायत की जा सकती है।

आमतौर पर इस तरह के मामलों में लोग रियल एस्टेट क्षेत्र से जुड़ी नियामक संस्थाओं या फिर किसी कंज्यूमर फोरम/कोर्ट का सहारा लेते हैं, पर वहां फैसला आने और न्याय मिलने में बहुत वक्त लग जाता है, जबकि रेरा प्रॉपर्टी से जुड़ी शिकायतों का निस्तारण करने में कम समय लेता है और इसमें शिकायत देने की प्रक्रिया भी बेहद सरल है। यह नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रीड्रेसेल कमीशन (एनसीडीआरसी) की ही तरह रियल एस्टेट सेक्टर के मामलों का हल करता है।

एक्ट के अनुसार, पीड़ित डेवलपर्स, बिल्डर्स और रेरा के तहत पंजीकृत रियल एस्टेट एजेंट्स के खिलाफ शिकायतें दे सकते हैं। कंप्लेंट के लिए कुछ फॉर्म्स के साथ जरूरी दस्तावेज भी देने पड़ते हैं। आमतौर पर खरीदार शिकायतें ऑनलाइन देते हैं, लेकिन तमिलनाडु समेत कुछ और राज्यों में यह काम ऑफलाइन भी हो जाता है। हर राज्य की रेरा वेबसाइट पर शिकायत वाला सेक्शन होता है, जिसमें मांगी गई जानकारी पीड़िता को मुहैया करानी होती हैं।

खरीदार के नाते पीड़ित को फॉर्म में नाम, पता, फोन नंबर और अन्य संपर्क संबंधी जानकारी देनी होती है, जिसके साथ प्रमोटर का नाम, प्रोजेक्ट के डिटेल्स, कुल चुकाई गई रकम, फ्लैट/मकान/घर की असल कीमत और अन्य चीजें (रसीदें व बाकी दस्तावेज आदि) शामिल हैं। रेरा को इस शिकायत में पीड़ित को यह भी साफ करना पड़ता है कि आखिर उसे बिल्डर से किस प्रकार की समस्या है और वह बदले में किस प्रकार मदद चाहता है।

दस्तावेजों के साथ फॉर्म में डिटेल्स देने के बाद शिकायत के लिए शुल्क भी अदा करना पड़ता है। हालांकि, यह फीस राज्यों के हिसाब से अलग-अलग होती है। मसलन महाराष्ट्र में इस काम के लिए पांच हजार रुपए चुकाने होते हैं, जबकि कर्नाटक में यह शुल्क महज एक हजार रुपए ही है। हालांकि, शिकायत देने के लिए कोई निर्धारित समयसीमा नहीं है, पर बेहतर रहता है कि पीड़ित जल्द से जल्द शिकायत दे।

एक्ट के मुताबिक, शिकायत दाखिल होने के 60 दिनों (दो माह) के भीतर उसका निस्तारण करना होता है। अगर समय पर यह काम नहीं हो पाता, तब रेरा पीड़ित को उसके पीछे का कारण बताता है। बता दें कि 27 जुलाई तक रेरा देशभर में प्रॉपर्टी से जुड़े लगभग 20 हजार से अधिक केस निपटा चुका है।