सुप्रीम कोर्ट ने वित्तीय संकट में फंसी बिजली कंपनियों को राहत देते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के 2018 के उस कड़े सर्कुलर को मंगलवार (2 अप्रैल) को रद्द कर दिया जिसमें कर्ज लौटाने में एक दिन की भी चूक पर कंपनी को दिवालिया घोषित करने का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से 2.24 लाख करोड़ रुपये की कर्जदार 75 कंपनियों को राहत मिली है। यह सर्कुलर आने के बाद यह कंपनियां कर्ज चुकाने में नाकाम कर रहीं। अपने 84 पृष्ठ के आदेश में जस्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस विनीत सरन ने कहा कि बैंकों को दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) का रास्ता अपनाने का निर्देश बैंकिंग नियमन कानून की धारा 35एए की शक्तियों से परे है।

ऐसा एक उदाहरण स्‍टेट बैंक ऑफ इंडिया के अगुआई में एस्‍सार स्‍टील के खिलाफ शुरू की गई आईबीसी प्रक्रिया का है। एस्‍सार स्‍टील पर 45,000 रुपये का कर्ज है। जस्टिस नरीमन ने एसोसिएशन ऑफ पावर प्रोड्यूसर्स के वकील अभिषेक मनु सिंघवी की मुख्‍य दलील मान ली। सिंघवी के तर्कों को बाकी वकीलों ने भी इस्‍तेमाल किया। जज ने कहा कि आईबीसी का संदर्भ मामला-दर-मामला आधार पर लिया जा सकता है और इस संदर्भ में कोई सामान्य निर्देश नहीं हो सकता।

हालांकि न्यायालय के इस आदेश से दिवाला कार्यवाही की गति धीमी पड़ सकती है। इस फैसले से सर्कुलर के अंतर्गत आने वाले फंसे कर्ज के जल्दी समाधान की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। फैसले से वसूली में फंसे कर्ज के पुनर्गठन को लेकर बैंकों को कुछ सहूलियत हो सकती है।

रिजर्व बैंक ने 12 फरवरी 2018 को सर्कुलर जारी कर कहा था कि बैंकों को 2,000 करोड़ रुपये या उससे ऊपर के कर्ज के मामलों में एक दिन की भी चूक की स्थिति में 180 दिन के अंदर ऋणसमाधान प्रक्रिया शुरू करनी होगी। इसमें कहा गया था कि यदि निर्धारित अवधि में कोई समाधान नहीं तलाशा जा सके तो गैर-निष्पादित खातों को दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता कानून के तहत राष्ट्रीय कंपनी विधि प्राधिकरण के समक्ष रखा जाए।

जीएमआर एनर्जी लि., रतन इंडिया पावर लि., एसोसिएशन आफ पावर प्रोड्यूसर्स, स्वतंत्र बिजली उत्पादों का संगठन आईपीपीए, शुगर मैनुफैक्‍चरिंग एसोसिएशन फ्रॉम तमिलनाडु तथा गुजरात के जहाज बनाने वाली कंपनियों के संगठन ने सर्कुलर के खिलाफ विभिन्न अदालतों में याचिकाएं दायर की थी।

बिजली क्षेत्र की दलील थी कि 5.65 लाख करोड़ रुपये का कर्ज (मार्च 2018 की स्थिति अनुसार) उन कारकों के कारण है जो उनके नियंत्रण से बाहर है। जैसे ईंधन की उपलब्धता और कोयला ब्‍लॉक का आवंटन रद्द होना। इससे पहले, उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल 11 सितंबर को इस सर्कुलर पर रोक लगा दी थी।

(भाषा इनपुट सहित)