आजाद भारत जब विकास के पथ पर चलने लगा तो उसके सामने चुनौतियां बढ़ती चली गईं। स्वतंत्रता के 20-25 साल बाद एक तरफ आंतरिक परेशानियां बढ़ रही थीं तो वहीं दूसरी तरफ पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और चीन की साजिशें चिंताओं को और बढ़ा रही थीं। जिसको देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1968 में खुफिया एजेंसी बनाने का फैसला किया। उन्होंने इसका नाम रखा रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी की RAW।

दुनिया के टॉप 5 जासूस: अमेरिका की सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी CIA और ब्रिटेन की MI6 की तर्ज पर बनी इस एजेंसी की जिम्मेदारी रामेश्वर नाथ काव को दी गई। काव को इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिलने के पीछे सवालों को खंगाला तो पता चला कि मात्र 8 साल की नौकरी में राव की गिनती दुनिया के पांच बेहतरीन जासूसों में होने लगी थी। फ्रांस की बाहरी खुफिया एजेंसी SDECE के प्रमुख काउंट एलेक्जांड्रे ने कहा था कि अगर 70 के दशक के 5 टॉप खुफिया प्रमुखों के नाम का जिक्र होगा तो रामेश्वर नाथ काव उसमें एक होंगे।

बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के धनी: रामेश्वर नाथ काव का जन्म 10 मई 1918 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में हुआ था। बचपन से ही पढ़ने में होशियार काव बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे। मात्र 22 साल की उम्र में उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा की परीक्षा पास कर ली। उस जमाने में इसे IP कहा जाता था। साल 1948 में इंटेलिजेंस ब्यूरों को बनाया गया, काव को इसका सहायक निदेशक बनाया गया। यहां उन्हें देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई।

पहला केस: काव ने अपने करियर के पहले केस में ही लोगों का ध्यान खींच लिया था। उनका पहला केस 1955 में हुई हवाई दुर्घटना थी, जिसमें चीन के प्रधानमंत्री की जान बाल बाल बच गई थी। साल 1955 में चीन सरकार ने एयर इंडिया का एक विमान चार्टर किया था। इस विमान में सवार होकर चीन के पीएम चू एन लाई, बाडुंग सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए जाने वाले थे। आखिरी मौके पर उन्होंने पेट दर्द का हवाला देकर अपनी यात्रा रद्द कर दी थी। यह विमान इंडोनेशिया के पास क्रैश कर गया था, इसमें सवार सभी चीनी अधिकारियों और पत्रकारों की मौत हो गई थी।

इस षडयंत्र के खुलासे की जिम्मेदारी आएन काव को दी गई तो उन्होंने कुछ ही दिन में इसका पर्दाफाश करते हुए बता दिया कि साजिश कर्ता ताइवान की खुफिया एजेंसी है। इस काम से चीन के प्रधानमंत्री बेहद प्रभावित हुए उन्होंने काव को अपने दफ्तर बुलाकर, उपहार में एक शील प्रदान की, जोकि काव के कार्यकाल के दौरान उनकी मेज पर नजर आती थी। काव को मिले इस सम्मान ने पूरी दुनिया में उनको प्रसिद्ध कर दिया।

पाकिस्तान युद्ध: बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार काव का खुफिया नेटवर्क इतना जबरदस्त होता था कि उनको यह तक पता होता था कि पाकिस्तान किस दिन हमला करेगा। काव को करीबी से जानने वाले आंनद वर्मा ने बीबीसी से बात करते हुए बताया कि पाकिस्तान से एक मैसेज कोड के माध्यम से आया। जिसे डिसाइफर किया गया तो पता चला कि पाकिस्तान हवाई हमले की साजिश रच रहा है। मिली सूचना में हमले की तय तारीख से दो दिन पहले की डेट दी गई थी।

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भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान की एक तस्वीर । Photo Source- Express Archive

काव की सलाह पर वायुसेना को हाई अलर्ट कर दिया गया। जब दो दिनों तक कोई एक्टिविटी नहीं हुई तो वायुसेना ने काव से कहा कि इतने दिनों तक एयरफोर्स को हाई अलर्ट नहीं रख सकते हैं। जवाब में उन्होंने एक दिन और अतिरिक्त मांगा। 3 दिसंबर को पाकिस्तान की तरफ से हमला हुआ तो भारतीय सेना पूरी तरह से तैयार थी। पाकिस्तान को बुरी तरह से खदेड़ दिया गया।

सिक्किम विलय: सिक्किम को भारत का 22वां राज्य बनाने का श्रेय भी काव को ही जाता है। उन्होंने इस काम को इतनी गोपनीयता से किया कि उनके विभाग के अधिकारियों तक को इसकी भनक लगने नहीं दी। आरएन काव ही थे, जिन्होंने इंदिरा गांधी को विश्वास दिलाया कि यह तख्तापलट पूरी तरह से रक्तविहिन होगा। चीन की नाक के नीचे हुए इस सिक्किम विलय ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था। नितिन ए गोखले ने काव पर लिखी अपनी किताब ‘आर एन काव: जेंटलमेन स्पाइमास्टर’ में बताया कि कैसे 27 महीने के अभियान के बाद सिक्किम का विलय कराया गया था।

काव पर हुई जांच: इंदिरा गांधी की सरकार जाने के बाद एक समय ऐसा भी आया कि जब काव को संदिग्ध निगाहों से देखा जाने लगा। 1977 में जब मोरारजी देसाई की सरकार आई तो उन्हें शंका हुई कि इमरजेंसी के दौरान लागू हुई नीतियों के पीछे काव का दिमाग था। जांच के लिए चौधरी चरण सिंह के दामाद एसपी सिंह की अगुवाई में एक कमेटी का गठन किया गया, इस कमेटी ने 6 महीने बाद अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसके अनुसार काव का इमरजेंसी का कोई लेना-देना नहीं था।