देश में राम मंदिर को लेकर अलग ही उत्साह देखने को मिल रहा है। अयोध्या में तो भव्य तैयारियां की ही गई हैं, इसके साथ-साथ पूरे देश में भी एक बड़ा वर्ग राम दर्शन के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहा है। अब आम लोगों के लिए राम मंदिर सिर्फ भक्ति का विषय है, लेकिन राजनीति में इस भक्ति से बड़ी वो सियासत है जिसे लपकने के लिए बीजेपी ने तो पूरा प्लान बना ही रखा है, कांग्रेस भी अब पीछे रहने के मूड में नहीं है।
कांग्रेस का धर्मसंकट क्या था?
लंबे समय से ऐसी खबरें चल रही थीं कि कांग्रेस एक बड़े धर्मसंकट है। धर्मसंकट इसलिए क्योंकि उसे राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में आने का न्योता मिला। अब उस न्योते की वजह से पार्टी को ये समझ ही नहीं आया कि उस कार्यक्रम में जाया जाए या नहीं। ये दुविधा इसलिए थी क्योंकि अगर उस कार्यक्रम में शिरकत की जाती, तो इसे बीजेपी अपनी जीत की तरह देखती। वो दावे के साथ कहती कि उसने कांग्रेस को भी राम मंदिर के आयोजन में आने पर मजबूर कर दिया। इसके ऊपर कांग्रेस के साथ एक मुस्लिम वोटबैंक भी जुड़ा हुआ है।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि अयोध्या में बन रहे राम मंदिर का मुस्लिम समुदाय ज्यादा विरोध नहीं कर रहा, लेकिन बाबरी मस्जिद के गिरने का दर्द एक बड़े वर्ग के मन में पहले से चल रहा है। ऐसे में कांग्रेस को इस बात का भी अहसास है कि उसका एक कदम इन्हीं नाराज मुसलमानों को पार्टी से दूर कर सकता है। यहीं वो धर्म संकट था जिसने कांग्रेस को अभी तक फैसला नहीं लेने दिया था। लेकिन अब कांग्रेस ने अपना मन बना लिया है, कहना चाहिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपना मन बना लिया है।
कांग्रेस ने बड़ा दांव क्या चला?
उनकी तरफ से सोनिया गांधी, अधीर रंजन या खुद के जाने पर कुछ नहीं बोला गया, लेकिन खबर है कि उन्होंने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को हरी झंडी दिखा दी है। ये हरी झंडी राम मंदिर जाने को लेकर है। यहां पर एक बड़ा ट्विस्ट ये जरूर दिख रहा है कि कांग्रेस 22 जनवरी के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से पहले ही राम मंदिर के दर्शन करना चाहती है। माना जा रहा है कि उसका एक प्रतिनिधिमंडल अयोध्या जा सकता है।
अब पहली नजर में ये कांग्रेस की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। इस समय जब 2024 के लोकसभा चुनाव करीब हैं और बीजेपी पूरी तरह राम मंदिर के जरिए हिंदुत्व की पिच पर खेलना चाहती है, तब देश की सबसे पुरानी पार्टी खुद को इस ध्रुवीकरण से दूर नहीं रखना चाहती। ऐसे में राम मंदिर के दर्शन कर संदेश दिया जाएगा कि पार्टी के लिए राजनीति और आस्था अलग बाते हैं। ये पार्टी के नेरेटिव को सूट भी ज्यादा करता है क्योंकि कांग्रेस हमेशा से आरोप लगाती रही है कि बीजेपी ने भगवान राम को भी बस राजनीति के लिए ही इस्तेमाल किया है।
बीजेपी को परेशान होना चाहिए?
22 जनवरी से पहले जाकर कांग्रेस, बीजेपी से एक बड़ा क्रेडिट भी छीन सकती है। असल में अभी तक तो बीजेपी का प्लान साफ दिख रहा है, विपक्षी दलों को राम मंदिर के कार्यकम में बुलाओ, उसके बाद जनता के सामने इमेज सेट करो कि सभी को पार्टी ने ही आने के लिए मजबूर कर दिया था। अगर ये मजबूरी वाला दांव सफल हो गया तो उस स्थिति हिंदु वोटों का ध्रुवीकरण और बड़े स्तर पर होता दिख जाएगा।
लेकिन कांग्रेस ने शायद इस स्थिति को पहले से भाप लिया, इसी वजह से बीजेपी को वो ये वाला क्रेडिट देने को तैयार नहीं है। माना जा रहा है कि इसी वजह से वो पहले राम मंदिर के दर्शन करने जा सकती है। वैसे अगर कांग्रेस के इस दांव को रणनीति के रूप में देखा जाए तो पार्टी की तारीफ बनती है, लेकिन कुछ जानकार ऐसे भी हैं जो इस पूरे घटनाक्रम को अलग नजरिए से देखते हैं।
बीजेपी को कांग्रेस की मजबूरी क्यों दिख रही?
ऐसी खबरें आई थीं कि कांग्रेस के कुछ नेता जरूर राम मंदिर में दर्शन करने के लिए जाना चाहते थे। लेकिन दिक्कत ये थी कि वे सोनिया गांधी से पहले राम मंदिर के दर्शन करना नहीं चाहते थे। जैसा पार्टी का चलन है, इसे हाईकमान के विरोध वाला कदम भी माना जा सकता था। अब क्योंकि कई दिनों से सोनिया गांधी ने अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की, ऐसे में वो कांग्रेस कार्यकर्ता भी बीच में ही फंस गए। कहा जा रहा है कि उन कार्यकर्ताओं को लेकर ही मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि कांग्रेस नेता राम मंदिर के दर्शन के लिए जा सकते हैं, इसमें कोई दिक्कत नहीं है। अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या कांग्रेस में राम मंदिर जाने को लेकर इतना असमंजस है कि कार्यकर्ताओं को एक दर्शन के लिए हाईकमान के फैसले का इंतजार करना पड़ रहा है?
इस पूरे घटनाक्रम का ये जो दूसरा पहलू है जो बीजेपी के नेरेटिव को सूट करता है। पार्टी तो यहीं दिखाना भी चाहती है कि कांग्रेस राम मंदिर जाने को लेकर ज्यादा सहज नहीं है। अगर ये मैसेज जनता तक डिलीवर हुआ तो देश की सबसे पुरानी पार्टी का सॉफ्ट हिंदुत्व भी किसी काम का नहीं रहेगा। यानी कि वर्तमान स्थिति में कांग्रेस इसे अपनी रणनीति बताने की कोशिश करेगी और बीजेपी उसी दांव को पार्टी की मजबूरी दिखाएगी।