ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के मुखिया और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद को लेकर बने सुप्रीम कोर्ट के पैनल में श्री श्री के रविशंकर को शामिल किए जाने का विरोध किया है। ओवैसी ने इसके पीछे राम मंदिर पर रविशंकर के दिए एक पुराने बयान का हवाला दिया, जिसमें आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक ने कहा था, “अगर मुस्लिमों ने अयोध्या पर अपना दावा नहीं छोड़ा, तब तो भारत सीरिया बन जाएगा।” ओवैसी उसी पर बोले कि कोर्ट को किसी निष्पक्ष व्यक्ति को मध्यस्था के लिए चुनना चाहिए था।

दरअसल, राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील दशकों पुराने राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद का सर्वमान्य समाधान खोजने के लिये शुक्रवार (आठ मार्च, 2019) को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति गठित कर दी। यह समिति आठ सप्ताह के भीतर मध्यस्थता की कार्यवाही पूरी करेगी।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने आदेश में कहा कि मध्यस्थता के लिये गठित समिति के अन्य सदस्यों में आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और प्रख्यात मध्यस्थ एवं वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू शामिल हैं। दिलचस्प बात है कि तीनों मध्यस्थ तमिलनाडु के रहने वाले हैं, जहां अयोध्या विवाद का कुछ खास प्रभाव नहीं है।

इसी को लेकर ओवैसी आगे बोले, “अच्छा होता कि कोर्ट ने किसी निष्पक्ष व्यक्ति को मध्यस्थ बनाया होता। श्री श्री का चार नवंबर 2018 का ऑन रिकॉर्ड बयान है। उसमें वह सीरिया बनने को लेकर मुसलमानों को धमकी दे रहे हैं।” हालांकि, एआईएमआईएम चीफ ने यह भी कहा कि कोर्ट ने अब श्री श्री को मध्यस्थ बनाया है तो उन्हें निष्पक्ष रहना पड़ेगा।

वहीं, श्री श्री रविशंकर ने मध्यस्थ बनाए जाने के बाद ट्वीट करते हुए लिखा, “सभी का सम्मान करते हुए, हमें सपनों को सच्चाई में तब्दील करने, लंबे समय से चले आ रहे विवाद को खत्म करने और सामाजिक सौहार्द बरकरार रखने के लिए आगे बढ़ना चाहिए।”