राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामला अब सुप्रीम कोर्ट में अपनी सुनवाई के अंतिम चरण में पहुंच गया है। इसी बीच मुस्लिम बुद्धिजीवियों के एक समूह ने मामले में मध्यस्थता की पेशकश की है। मुस्लिम बुद्धिजीवियों के समूह ने सुप्रीम कोर्ट में केस जीतने के बावजूद भी विवादित भूमि हिंदुओं को तोहफे में दे देने की वकालत की है। मुस्लिम बुद्धिजीवियों के इस समूह का नाम ‘इंडियन मुस्लिम्स फॉर पीस’ है, जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह भी शामिल हैं।

इंडियन मुस्लिम्स फॉर पीस की इस संबंध में लखनऊ के एक होटल में बैठक हुई। बैठक के बाद मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने राम मंदिर-बाबरी मस्जिद केस में मध्यस्थता की बात कही। एनडीटीवी के साथ बातचीत में लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह ने कहा कि “हमें सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए कि यदि कोर्ट मुस्लिमों के पक्ष में फैसला देता है तो क्या वहां (अयोध्या) मस्जिद बनाना संभव है? मुझे लगता है कि यह असंभव है।”

उन्होंने कहा कि “देश के मौजूदा हालात में यह एक सपना है, जिसे पूरा नहीं किया जा सकता। ऐसे में यदि केस का फैसला हमारे पक्ष में आता है तो मुस्लिमों के पास विकल्प है कि वह बहुसंख्यक समुदाय को इसे तोहफे में दे दे। इसके बदले में धार्मिक स्थान संशोधन एक्ट को मजबूत किया जाना चाहिए।”

एएमयू के पूर्व वीसी जमीरुद्दीन शाह ने कहा कि हमारा मकसद देश को आगे ले जाना और अदालत के बाहर समझौते करना है, जिससे देश का फायदा हो। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले पर सुनवाई शुरु करने से पहले मध्यस्थता के लिए तीन सदस्यों के एक पैनल का गठन किया था, जिसे सभी पक्षों के बीच समझौते की जिम्मेदारी दी गई थी। हालांकि तय समय के बाद भी मध्यस्थता पैनल समझौता कराने में नाकाम रहा था। जिसके बाद कोर्ट ने सुनवाई शुरू की थी।

कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस में सुनवाई 17 अक्टूबर या उसके आसपास पूरी हो सकती है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की पीठ इस मसले पर सुनवाई कर रही है। 17 नवंबर तक राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस में फैसला आने की उम्मीद है।