पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के नामांकन के बाद अब कर्नाटक में राज्यसभा की चार सीटों के लिए मतदान की नौबत शायद ही आए। वजह है- केवल चार उम्मीदवार ही मैदान में होना। भाजपा यहां पहले तीन उम्मीदवार उतारने के मूड में थी। पर देवगौड़ा की उम्मीदवारी और उन्हें कांग्रेस के समर्थन के बाद भाजपा ने अपने संख्या बल के अनुपात में दो ही उम्मीदवार उतारे हैं। यानी कांग्रेस और जद (एस) विधायकों की क्रास वोटिंग की आशंका खत्म हो गई। 87 वर्षीय देवगौड़ा दूसरी बार संसद के उच्च सदन में दिखेंगे। पहली बार वे प्रधानमंत्री बनने के बाद 1996 में राज्यसभा पहुंचे थे।
कोरोना के चलते देशव्यापी पूर्णबंदी के मद्देनजर चुनाव आयोग ने 26 मार्च को प्रस्तावित राज्यसभा की सात राज्यों की 18 सीटों का चुनाव टाल दिया था। यह चुनाव अब 19 जून को होगा। इसके साथ ही तीन राज्यों की छह सीटों का चुनाव भी होगा। यानी 19 जून को कुल 24 सीटों के लिए दस राज्यों के विधायक मतदान करेंगे। इनमें कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और गुजरात की चार-चार, मध्य प्रदेश और राजस्थान की तीन-तीन, झारखंड की दो व मेघालय, मणिपुर, अरुणाचल और मिजोरम की एक-एक सीट शामिल है।
मध्य प्रदेश में सत्ता से बेदखल होने के कारण कांग्रेस को एक सीट का नुकसान हो सकता है। इसी तरह आठ विधायकों के इस्तीफे देकर भाजपा में जाने से गुजरात में भी अब उसे दो की जगह एक सीट पर ही निश्चित जीत का भरोसा है। भाजपा का संख्या बल तो यहां दो उम्मीदवार जिताने का ही था पर कांग्रेसी विधायकों में सेंधमारी कर उसने तीसरी सीट भी झटकने की रणनीति बनाई है। उम्मीदवार भी उसने तीन ही उतारे हैं। जबकि कांग्रेस ने दो उम्मीदवार उतारे हैं। अपने बचे 65 विधायकों को भाजपा की पकड़ से बचाने के लिए कांग्रेस ने राजस्थान भेज दिया है। चूंकि सीट चार हैं और उम्मीदवार पांच, लिहाजा यहां मतदान तय है।
जहां तक मध्य प्रदेश का सवाल है, कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह और फूल सिंह बरैया को मैदान में उतारा है। 230 सदस्यीय विधानसभा की मौजूदा सदस्य संख्या 206 है। इनमें भाजपा के 107, कांग्रेस के 92, निर्दलीय- चार, सपा- एक और बसपा के दो सदस्य हैं। भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुमेर सिंह सोलंकी को उम्मीदवार बनाया है। सिंधिया कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए हैं। वे पिछला लोकसभा चुनाव कांग्रेस में रहते हुए अपनी गुना सीट पर हार गए थे। समझा जाता है कि राज्यसभा में लाकर भाजपा उन्हें केंद्र में मंत्री बनाने का वादा पूरा करेगी। सीटें तीन हैं और उम्मीदवार- चार, लिहाजा यहां मुकाबला ज्यादा रोचक हो सकता है।
तीन सीट वाले राजस्थान में कांग्रेस ने केसी वेणुगोपाल और जाट नेता नीरज डांगी को मैदान में उतारा है। भाजपा का संख्या बल यहां एक ही उम्मीदवार को जिताने लायक है, तो भी उसने जान बूझकर दो उम्मीदवार उतार दिए हैं। पूर्व मंत्री राजेंद्र गहलोत और पूर्व राज्यसभा सांसद ओंकार सिंह लाखावत। यानी वह छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों से समर्थन की आस लगा रही है। यह बात अलग है कि कांग्रेस आलाकमान को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सियासी प्रबंधन पर पूरा भरोसा है। दूसरे उम्मीदवार नीरज डांगी वैसे भी गहलोत के पसंदीदा ही हैं। लिहाजा वे उन्हें हर हाल में जिताना चाहेंगे।
रही कर्नाटक की बात तो मुख्यमंत्री येदियुरप्पा यहां तीन उम्मीदवार उतारने के पक्ष में थे। भले भाजपा का संख्या बल दो उम्मीदवार जिताने लायक ही है। गुजरात और मध्य प्रदेश की तरह यहां पार्टी विधायकों को सेंधमारी से बचाने के लिए सोनिया गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री और जद (एस) नेता देवगौड़ा को फोन कर चुनाव लड़ने का आग्रह किया। जद (एस) के पास 37 विधायक हैं और कांग्रेस के पास 68 जबकि एक सीट जीतने के लिए न्यूनतम 44 विधायकों का समर्थन चाहिए।
कांग्रेस ने अपने अतिरिक्त 24 वोट के बूते अपना दूसरा उम्मीदवार उतारने और जद (एस) से समर्थन मांगने के बजाए जद (एस) को समर्थन की पेशकश कर दी। इस समीकरण को देख भाजपा ने संख्या बल के मुताबिक दो ही उम्मीदवार उतारे हैं। यानी कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खरगे, जद (एस) के देवगौड़ा और भाजपा के अशोक गस्ती और एरन्ना। भाजपा आलाकमान ने उम्मीदवारों के चयन के मामले में येदियुरप्पा की सिफारिश को तवज्जो नहीं दी। उनके एक भी सिफारिशी को उम्मीदवार नहीं बनाया।