राज्यसभा चुनाव के बाद अखिलेश यादव की अपरिपक्वता पर सवाल उठ रहे हैं। उनके कई विधायकों ने खुलेआम भाजपा उम्मीदवार को वोट दिए। राज्यसभा चुनाव में क्रास वोटिंग करने पर किसी भी सदस्य के खिलाफ दलबदल कानून के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती। हिमाचल में भी कांग्रेस ने जिन छह विधायकों की सदस्यता खत्म कराई, विधानसभा अध्यक्ष ने सदन के भीतर पार्टी विप के उल्लंघन का उन पर आरोप सही माना। बजट के दौरान ये सभी सदन से नदारद थे।
अब अखिलेश कह रहे हैं कि जिन्होंने क्रास वोटिंग की है, उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे। यह बात अलग है कि कार्रवाई करना उनके अधिकार में नहीं है। दलबदल कानून के तहत कार्रवाई का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष को है, जो सत्तारूढ़ भाजपा के हैं। अतीत में हम देख चुके हैं कि विधानसभा अध्यक्ष अपने समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करते। यह हथियार वे विरोधियों पर इस्तेमाल करते हैं।
अखिलेश की असली विफलता तो यह है कि जिसे उन्होंने ‘चीफ व्हिप’ बनाया था, उसी ने मतदान से एक दिन पहले इस्तीफा दे दिया। अपना दल की पल्लवी पटेल ने सपा के उम्मीदवारों के खिलाफ बयान देकर अखिलेश को सवालों के घेरे में पहले ही खड़ा कर दिया था। लोग कह रहे, अखिलेश यादव ने विरासत में अपने पिता से न सियासी तेवर लिए और न रूठों को मनाने की कला सीखी।
विस्तार का इंतजार
उत्तर प्रदेश में मंत्रिमंडल के विस्तार की अटकलें फिर तेज हुई हैं। खासकर गुरुवार को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मुलाकात के बाद संभावना बढ़ गई दिखती है। बेशक यह विस्तार सीमित होगा पर लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सामाजिक समीकरण बिठाना इसका मकसद है। सबसे ज्यादा खुश तो ओमप्रकाश राजभर होंगे।
वह तो इस विस्तार का इंतजार करते-करते थक चुके हैं। हालांकि उनके दो विधायकों ने राज्यसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के बजाए सपा उम्मीदवार को वोट देकर उनकी स्थिति कमजोर कर दी है। पर पार्टी का आलाकमान उन्हें मंत्रिपद का भरोसा देकर ही सपा से अपने साथ लाया था। इसी तरह नए सहयोगी रालोद को भी सरकार में हिस्सेदारी की संभावना जताई जा रही है। देखना है कि कब तक विस्तार होता है, जिससे उम्मीदों की कतार खत्म होगी।
संकट के बाद उठे सवाल
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में अब पार्टी के प्रदेश प्रभारी राजीव शुक्ला की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। क्यों हर जगह कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को संकट मोचक की भूमिका अदा करनी पड़ रही है? उत्तर भारत का कांग्रेस की सरकार वाला हिमाचल अकेला राज्य है।
पार्टी के नेता दबी जुबान से पूछ रहे हैं कि राजीव शुक्ला में ऐसी कौन सी खासियत है कि लगातार कमजोर होती जा रही पार्टी उनके लिए राज्यसभा का जुगाड़ जरूर कर देती है। कभी उत्तराखंड से तो कभी महाराष्टÑ से। कभी हिमाचल से तो कभी छत्तीसगढ़ से। आंध्रप्रदेश में जब वाइएसआर रेड्डी की मौत के बाद कांग्रेस में संकट गहराया था तो तब भी राजीव शुक्ला की भूमिका पर सवाल उठे थे। राजीव शुक्ला पुराने कांगे्रसी भी नहीं हैं।
इतनी आवभगत?
भाजपा के विरोधी ही नहीं बल्कि पार्टी के अपने कार्यकर्ता और नेता भी समझ नहीं पा रहे कि भाजपा आजकल दूसरे दलों के नेताओं को तोड़ने की ऐसी आपाधापी क्यों मचा रही है। विरोधी तो यही कह रहे हैं कि पार्टी को हार का डर सता रहा हैै। एक तरफ पार्टी खुद को दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल बताती है और चाल, चरित्र व चेहरे की दुहाई देती आई है पर, दूसरी तरफ हर किसी का स्वागत कर रही है। कांग्रेस ही नहीं क्षेत्रीय दलों के नेताओं का भी भाजपा हर दिन स्वागत कर रही है।
मौका चूंकि चुनाव का है तो जाहिर है कि जो दलबदल कर आ रहे हैं, वे टिकट या कोई मलाईदार पद पाने के भरोसे पर ही आ रहे होंगे। ऐसे में पार्टी के पुराने कार्यकर्ता और नेता बेचैन हैं। बीजू जनता दल, वाइएसआर कांग्रेस, बसपा परोक्ष रूप से भाजपा का समर्थन करते रहे हैं। उनके नेताओं को भी शामिल करने की होड़ मची है।
यहां तक कि अपने सहयोगी दलों जद (एकी) व अन्ना द्रमुक तक के नेताओं को नहीं छोड़ा जा रहा। कांग्रेस, सपा और राजद में तो लगातार सेंधमारी चल रही है। हालांकि भाजपाई तो इसे पार्टी के विस्तार की योजना का हिस्सा बता रहे हैं पर 400 पार के लक्ष्य के दबाव का नतीजा भी तो हो सकती है दूसरे दलों के नेताओं को लेकर कुनबे का विस्तार करने की हड़बड़ी की वजह। लेकिन, दूसरे दलों की रोज-रोज की आवभगत से पुराने भाजपाई कार्यकर्ताओं के सामने सवाल तो उठता है कि हमारा क्या होगा?
चीनी भाषा में मिली बधाई
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री व द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के अध्यक्ष एमके स्टालिन का जन्मदिन राजनीतिक सक्रियता के हिसाब से अहम रहा। एक तरफ तो उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे तथा कई नेताओं ने बधाई दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर पोस्ट किया, ‘तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन जी को जन्मदिन की बधाई, वह लंबा और स्वस्थ जीवन जिएं।’ वहीं 71 वर्ष के मुख्यमंत्री को प्रदेश भाजपा की तरफ से चीनी भाषा मंडारिन में बधाई मिली।
मंडारिन में बधाई देकर उन पर कटाक्ष कर उस विवाद को फिर हवा दी जिसमें थूथुकुडी जिले के कुलसेकरपट्टिनम में इसरो के स्पेसपोर्ट को तमिलनाडु के एक मंत्री ने स्थानीय अखबारों में विज्ञापन दिए थे। विज्ञापन में चीनी झंडे के साथ एक राकेट दिखाया गया था। इस विज्ञापन के बाद विवाद उठा और केंद्र सरकार ने द्रमुक सरकार पर आरोप लगाया कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में वह भारत का विकास नहीं देखना चाहती है। हालांकि द्रमुक ने इस विज्ञापन के लिए माफी मांगते हुए इसे ‘डिजायनर’ की गलती बताया था। प्रदेश भाजपा को स्टालिन का जन्मदिन इस विवाद को फिर से लाने के लिए माकूल मौका लगा।
संकलन : मृणाल वल्लरी