भारतीय राजनीति इन दिनों फिर पुराने-नए सवालों से घिरी है—कहीं आपातकाल की बरसी पर ‘संविधान हत्या’ के नारे गूंज रहे हैं, तो कहीं गांगुली जैसे सितारे सियासत से दूरी बनाए हैं। भाजपा की नारा-बैठक से लेकर यूपी के तबादला विवाद और हरियाणा में भाई की पोस्टिंग तक, सत्ता, सियासत और सिस्टम के पांच रंगों की यह तस्वीर बेहद दिलचस्प है।
बचाना बनाम हत्या
बीती 25 जून को आपात काल के 50 बरस पूरे हो गए। अपनी कुर्सी की सलामती के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपात स्थिति लागू की थी। भाजपा और दूसरे गैर कांग्रेसी दल इसे लोकतंत्र का काला दिवस बता कर कांग्रेस पर वार करते रहे हैं। भाजपा ने कांग्रेस पर वार करने के लिए आपातकाल को नया शब्द दिया।इस दिन यानी 25 जून को संविधान हत्या दिवस का नाम दे डाला। भाजपा ने देश भर में संविधान हत्या दिवस के नाम से कार्यक्रम किए। भाजपा के नेताओं ने 25 जून को कई बार संविधान हत्या दिवस बता राहुल गांधी को घेरा। भाजपा ने कांग्रेस से माफी मांगने की अपनी पुरानी रट फिर दोहराई।
लोकतंत्र का काला दिवस की जगह भाजपा ने ‘संविधान हत्या दिवस’ सोची समझी रणनीति के तहत अपनाया। दरअसल पिछले साल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने संविधान की रक्षा का नारा लगाकर भाजपा को झटका दिया था। राहुल गांधी भाजपा सरकार पर हमला बोलने के लिए हाथ में संविधान की प्रति लेकर चलते हैं। उनके इसी अभियान की काट के लिए भाजपा ने कांगे्रस को संविधान की हत्या का जिम्मेदार भी ठहराया। ऊपर से सपा जैसे दलों के विरोधाभासी रवैए का खुलासा भी कर दिया, जो आपातकाल को लेकर निरंतर कांगे्रस के घोर आलोचक रहे हैं।
राजनीति नहीं
सौरभ गांगुली को राजनीति में लाने की कोशिशें 2021 से ही लगातार चलती रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले तो भाजपा ने उन्हें पश्चिम बंगाल में पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने की भी पेशकश की थी। गांगुली ने राजनीति में आने से साफ इनकार कर दिया था। उसके बाद ही उन्हें बीसीसीआइ के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था। भाजपा ही नहीं तृणमूल कांग्रेस तो खैर कब से उनके पीछे पड़ी है कि वे सूबे की सरकार में कोई पद ले लें। गांगुली ने सबसे दूरी बनाकर रखी। अब अगले साल फिर सूबे में विधानसभा चुनाव होंगे। पार्टियां संपर्क करें इससे पहले ही गांगुली ने बयान दिया है कि वे अभी क्रिकेट की सेवा करना चाहते हैं। भारतीय टीम का कोच बनने की अपनी इच्छा भी जाहिर कर दी। राजनीति में आने की बाबत सवाल पर बंगाली दादा दो टूक बोले कि राजनीति में कोई दिलचस्पी है ही नहीं।
बैठक खत्म होते ही भूल गए नारा
केंद्र सरकार ने देश में तीन नए कानूनों को लागू किया है। ये कानून अपनी एक साल की समय-सीमा पूरी कर चुके हैं। अब भाजपा शासित राज्यों में इन कानूनी प्रावधानों पर आम जनता को समझाया जाएगा और यह भी बताने की कोशिश होगी कि इसका क्या लाभ हुआ। इसके लिए हाल ही में भाजपा शासित राज्य में एक उच्च स्तरीय बैठक हुई। बैठक में इस प्रावधान को समझाने के लिए एक नारा भी तय किया गया। लेकिन बैठक खत्म होते ही जैसे ही संबंधित विभाग के मंत्री ने संबंधित विभाग के अधिकारियों से यह नारा पूछा तो उनमें कोई भी यह नारा नहीं बता पाया। बाद में कुछ अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने इस नारे की जानकारी दी और मंत्री के आसपास खड़े अधिकारियों ने भी चैन की सांस ली।
तबादले पर तहलका
जो भाजपा अभी तक बसपा और सपा की सरकारों पर तबादला उद्योग चलाने के आरोप लगाती थी अब खुद इसकी गिरफ्त में है। उत्तर प्रदेश के पंजीयन व शुल्क महकमे के मंत्री रवींद्र जायसवाल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि विभाग के सबसे बड़े अधिकारी महानिरीक्षक समीर वर्मा ने अफसरों और लिपिकों के तबादलों में जमकर नियमों की अनदेखी की। उनसे कोई मंजूरी भी नहीं ली। मंत्री ने तबादलों की एसटीएफ से जांच की मांग कर डाली। मुख्यमंत्री ने पूरी तबादला सूची रद्द कर समीर वर्मा को विभाग से हटा दिया।
दूसरा मामला कानपुर का है, जहां जिला कलक्टर और सीएमओ के बीच खासी जंग चली। जिला कलक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह राजपूत हैं जबकि सीएमओ डाक्टर हरिदत नेमी हैं दलित। सीएमओ ने आरोप लगाया कि जिला कलक्टर उन पर एक दागी कंपनी के बिल के भुगतान के लिए नाहक दबाव बना रहे थे। उन्होंने असमर्थता जताई तो बैठक से बाहर निकाल दिया। मुख्यमंत्री ने सीएमओ को निलंबित कर दिया। विपक्ष ने कहा कि योगी सरकार में उनकी जाति के अफसरों के लिए स्वर्णकाल है पर दलितों के साथ खुलेआम नाइंसाफी हो रही।
अपनों पर करम
सत्ता में कोई भी पार्टी हो, अपनों को लाभ पहुंचाने से नहीं चूकती। हरियाणा विधानसभा के अध्यक्ष हरविंदर कल्याण भी इसकी मिसाल हैं। अपने भाई को भी किस्मत का धनी बना दिया। उनके भाई देवेंद्र कल्याण भारतीय राजस्व सेवा के अफसर थे। आयकर विभाग में विभिन्न पदों पर रहे। लेकिन दशकों तक मलाईदार समझी जाने वाली इस केंद्रीय सेवा के प्रति आकर्षण पिछले एक दशक में कम हुआ है। सो, जिनका जुगाड़ है, वे मलाईदार महकमो में प्रतिनियुक्ति पर तैनाती करा लेते हैं। हरविंदर कल्याण ने भी अपने आइआरएस भाई को प्रतिनियुक्ति पर हरियाणा सरकार में फरवरी 2023 में तैनात करा लिया। कुछ दिन वित्त विभाग में सलाहकार रहे। फिर मलाईदार आबकारी एवं कराधान विभाग के मुखिया बन गए। जबकि अमूमन इस पद पर आइएएस अफसर तैनात किए जाते हैं।
सत्ता से करीबी का लाभ उठाने का मोह 31 मई को सेवानिवृत्त होने के बाद भी नहीं छूटा। राज्य सरकार ने पर्यावरण प्रभाव आकलन समिति के अध्यक्ष पद के लिए उनके नाम की केंद्र सरकार से सिफारिश कर दी। यह ठुकरा दी गई तो इसी गुरुवार को उन्हें राज्य चुनाव आयुक्त बना दिया। पंचायत व शहरी निकायों का चुनाव राज्य चुनाव आयुक्त ही कराता है। कहने को यह संवैधानिक पद ठहरा। पिछले राज्य चुनाव आयुक्त धनपत सिंह स्थापित प्रथा के मुताबिक सेवानिवृत्त आइएएस थे। विधानसभा अध्यक्ष के भाई का कामकाज कितना निष्पक्ष रहेगा, वक्त ही बताएगा।
(संकलन: मृणाल वल्लरी)