बारिश के असमान वितरण के कारण कई क्षेत्रों में बाढ़ आ गई है तो कई इलाके सूखे की चपेट में हैं। किसानाें को भारी बर्बादी का सामना करना पड़ रहा है। कृषि विशेषज्ञों की हिदायत है कि अब योजनाबद्ध तरीके से खेती करना ही लाभकर होगा। छोटे रकबे वाले किसानों को ऐसे हालात में योजनाबद्ध तरीके से अब खासतौर से सब्जियों की खेती को प्रमुखता देनी होगी। किसान जलप्लावन के दिनों में गोबर मिश्रित मिट्टी पन्नी में भरकर सब्जियों के पौधे तैयार करने के बाद बाढ़ का पानी उतरने पर उन्हें खेत में रोपें, इससे उनका लगभग एक महीने का समय बच जाएगा।

गन्ना मिलों के निकटवर्ती किसान शरदकालीन गन्ने की खेती करें। वे सह-फसली के तौर पर तोरई, मटर, मसूर की खेती कर सकते हैं। सूखे की मार से बचने के लिए किसानों को कम समय में तैयार होने वाली फसलों की खेती करनी होगी। इससे नुकसान कम होगा। धान की सीधी बिजाई करें। हिमाचल प्रदेश में छब्बीस करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान तो अकेले बागवानी करने वालों को हुआ है।

प्रदेश में करीब डेढ़ हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फलों की खेती को चोट पहुंची है। खासकर शिमला, मंडी और हमीरपुर में सेब के साथ-साथ आम, लीची, संतरा, माल्टा संतरा आदि की खेती गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। तीस फीसद से अधिक फसलें तबाह हो चुकी हैं। सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक करीब 1475 हेक्टेयर क्षेत्र पर बागवानी को भारी नुकसान पहुंचा है। किसानों ने जो प्राकृतिक खेती की थी, उसमें 2.50 करोड़ का आतमा परियोजना को भी नुकसान हुआ है। कृषि विभाग को अनुमान है कि कम से कम तीस करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।

देश के राजधानी क्षेत्र दिल्ली-एनसीआर में उफनती यमुना ने, खासकर नर्सरियों को तबाह कर डाला है। फूलों, फलों, सब्जियों के करोड़ों के पौधे या तो बाढ़ की भेंट चढ़ चुके हैं या बह चुके हैं। यमुना किनारे के दिल्ली-नोएडा के तटवर्ती इलाकों में छोटी-बड़ी सैकड़ों नर्सरियों का जाल सा बिछा हुआ है। बताया जा रहा है कि बाढ़ से नर्सरी कारोबार को सौ करोड़ रुपए से अधिक की चपत लगी है।

महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में लगातार बारिश के कारण नदी नालों में बाढ़ आई हुई है। पानी खेतों में घुसने से तालाब बन गए हैं। किसान आंखों के सामने फसले बर्बाद होते देख रहे हैं। हिंगोली में बड़े पैमाने पर खासतौर से अदरक, कपास और सोयाबीन की खेती होती है, जिसे इस बार बारिश ने चौपट कर दिया है। अब किसानों के सामने परिवार का पेट भरने की चुनौती है। सोयाबीन, हल्दी की फसलें तबाह हो चुकी हैं। किसान सरकार से गुहार लगा रहे हैं, पर अब तक तो कोई सुनवाई हुई नहीं है।

हरियाणा सरकार ने एलान किया है कि जिनकी फसलें पूरी तरह नष्ट हो चुकी हैं, उनको 15-15 हजार रुपए प्रति एकड़ का मुआवजा दिया जाएगा। करीब 14 हजार एकड़ की चारा की, 15 सौ एकड़ की कपास की और एक हजार एकड़ की मक्के फसलें नष्ट हो चुकी हैं। अब दोबारा बिजाई की भी गुंजाइश नहीं है। जिन खेतों में बिजाई नहीं हो पाएगी या फिर जहां पूरी फसल बर्बाद हो गई है, वहीं के किसानों को मुआवजा दिया जाएगा।

यमुना नगर में बारिश और बाढ़ से कुल 24,030 हेक्टेयर खेती खराब हो चुकी है। सबसे ज्यादा 19,578 हेक्टेयर में धान की फसल खराब हुई है। लगभग 1,676 हेक्टेयर में खड़ा पशुचारा भी नष्ट हो चुका है। इसी तरह 77 हेक्टेयर मक्की की और 2,585 हेक्टेयर में खड़ी गन्ने की फसल बाढ़ ने तबाह कर दी है।

यमुना के साथ लगी फसलों को तो नुकसान हुआ ही है, खेतों का भारी कटाव भी हुआ है। फसलों के साथ खेत भी यमुना में समा चुके हैं। किसान प्रति एकड़ की दर से 60 हजार रुपए मुआवजा मांग रहे हैं। कृषि विभाग ने खराब फसलों की रिपोर्ट तैयार कर ली है। उसे 24 हजार हेक्टेयर से ज्यादा की धान, गन्ना, मक्का, दलहन की फसलों के नुकसान का अनुमान है। अगर किसान दोबारा धान लगाते भी हैं तो उन्हें प्रति एकड़ 15-20 हजार रुपए फिर से खर्च करने पड़ेंगे।

उधर, गुजरात सरकार के प्राथमिक अनुमान के मुताबिक, राज्य के मध्य और दक्षिण क्षेत्रों में भारी बाढ़ के कारण 50 हजार हेक्टेयर खड़ी फसल बर्बाद हो चुकी है। मध्य गुजरात में बागवानी की फसल को सबसे अधिक नुकसान हुआ है, जबकि दक्षिण गुजरात में तिलहन, अनाज और दालों को भारी नुकसान की आशंका है। दक्षिण गुजरात में कपास, धान, तुअर और सोयाबीन की फसलें बर्बाद हुई हैं।

मध्य और दक्षिण गुजरात में कपास की 1,22,000 हेक्टेयर, सोयाबीन की 29,600 हेक्टेयर और 77,700 हेक्टेयर में धान की खेती होती है। किसानों को डर है कि अगर अधिक समय तक पानी का ठहराव जारी रहा तो ये फसलें बचने से रहीं। छोटा उदपुर जिले में 26,600 हेक्टेयर में बागवानी होती है। भारी बारिश से केले और बागवानी की 20,000 हेक्टेयर फसलों को नुकसान पहुंचा है।

बोडेली तालुका में केले की खेती पूरी तरह बर्बाद हो गई है। उसी तरह नर्मदा जिले में भूमि कटाव बड़ी चिंता का मुद्दा बन चुका है। रेत ने सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि को ढंक दिया है। इस इलाके की 9,610 हेक्टेयर में बागवानी होती है, जो कर्जन बांध खुलने से कम से कम 10 फीसद तबाह हो चुकी है। उधर, पंजाब में बाढ़ से करीब 60 हजार एकड़ फसल को नुकसान पहुंचा है।

राज्य के 18 जिले गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। बाढ़ से सबसे ज्यादा संगरूर में 50150 एकड़ और फाजिल्का में 5204 हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई है। इसके बाद बाढ़ ने रोपड़ और पटियाला जिले की खेती को नुकसान पहुंचाया है। पंजाब के मानसा में सरदूलगढ़ के गांव फूस मंडी के पास घग्गर नदी में दरार आ जाने से खेतों में पानी भर गया है।

अनिश्चितता के दौर में

जलवायु परिवर्तन का किसानों पर क्या प्रभाव हो रहा है, यह जानने के लिए जालना, सतारा, धारवाड़, कलबुर्गी, नरसिंहपुर, हनुमान कोंडा, सत्य साई, महेंद्रगढ़ आदि के 201 किसानों पर हुए एक शोध के बाद बताया गया है कि हमारे देश में पिछले तीन वर्षों के दौरान वर्षा पर आश्रित क्षेत्रों में खेती करने वाले 76 फीसद से अधिक किसान तथा सिंचाई सुविधा वाले इलाकों के 55 फीसद उत्पादकों का लगभग आधा उत्पादन बर्बाद हो गया।

बारिश के असमान वितरण के कारण कई क्षेत्रों में बाढ़ की विभीषका रहती है तो कई इलाके सूखे की चपेट में फंस जाते हैं। इसके अलावा कीड़ों-रोगों के भीषण आघात से भी फसलों को भारी नुकसान होता है। ऐसा अब हर साल होने लगा है। किसानों का कहना है कि बारिश की असमानता मुख्य समस्या है। कई क्षेत्रों में एक वर्ष अत्यंत मूसलाधार बारिश और बाढ़ से, तो कभी सूखा से फसलें चौपट हो जा रही हैं। कपास जैसी फसलों को कीड़ों और रोगों से भारी क्षति हो रही है। लालमिर्च, मक्का आदि अन्य फसलें भी इसके प्रकोप झेल रही हैं।