कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से सबसे बड़ी संजीवनी मिल गई है। मोदी सरनेम मामले में कोर्ट ने साफ कर दिया है जब तक सुनवाई पूरी नहीं हो जाती राहुल गांधी की सजा पर रोक रहेगी। इस एक फैसले के कांग्रेस के लिए कई मायने हैं। एक तरफ राहुल गांधी एक बार फिर सांसद बन गए हैं तो दूसरी तरफ 2024 की लड़ाई में कांग्रेस को एक बड़ा सियासी बूस्टर मिल गया है।

एक फैसले ने बदल दिए कई समीकरण

अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को सियासी चश्मे से समझना बहुत जरूरी हो जाता है। इस समय लोकसभा चुनाव करीब हैं, एक तरफ एनडीए खुद को एकजुट कर अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहा है तो दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन भी पहले पटना और बेंगलुरु में मीटिंग कर अपनी ताकत दिखा चुका है। लेकिन अभी तक क्योंकि राहुल गांधी प्रधानमंत्री रेस से बाहर चल रहे थे, ऐसे में कांग्रेस की बारगेनिंग पावर काफी कम हो गई थी। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद जमीन पर कई समीकरण फिर बदलने वाले हैं।

इंडिया गठबंधन में इस समय कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में है लेकिन क्योंकि राहुल गांधी को मोदी सरनेम मामले में सजा दे दी गई थी, ऐसे में पार्टी खुलकर अपनी तरफ से किसी भी चेहरे को आगे नहीं कर पा रही थी। उनके लिए राहुल गांधी सबसे बड़े स्टार प्रचारक थे, लेकिन एक सजा की वजह से पार्टी मजबूर थी और उसे दूसरी विपक्षी पार्टियों के सामने झुकना पड़ रहा था। लेकिन अब एक बार फिर कांग्रेस मजबूत हो गई है, राहुल गांधी की सजा पर जो रोक लगाई गई है उसका सीधा फायदा देश की सबसे पुरानी पार्टी को होने जा रहा है।

भारत जोड़ो यात्रा के बाद कैसे बदले राहुल?

भारत जोड़ो यात्रा के बाद से ही ये कहा जाने लगा था कि राहुल गांधी ने अपनी छवि को पूरी तरह बदल लिया है। जिस तरह से उन्होंने दक्षिण से उत्तर, पूरब से पश्चिम तक देश के कई राज्यों को कवर किया था, उनकी लोकप्रियता बढ़ी थी। उसी लोकप्रियता के दम पर कर्नाटक चुनाव में पार्टी ने प्रचंड जीत भी दर्ज कर ली। अब आगे उस यात्रा का लाभ उठाया जाता, उससे पहले मोदी सरनेम मामले में राहुल को अपने करियर का सबसे बड़ा झटका लग गया। ऐसा झटका जिसने उनकी सांसदी भी छीन ली और वे सीधे-सीधे पीएम रेस से भी बाहर हो गए।

उस समय तक क्योंकि राहुल सांसद ही नहीं थे, ऐसे में दूसरी विपक्षी पार्टियों के सामने कांग्रेस के पास दिखाने के लिए कुछ खास नहीं था। विपक्षी एकता की जो दो बैठक भी हुईं, उनमें सिर्फ इस बात पर चर्चा हो पाई कि साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे, एक कॉमन एजेंडा रहेगा। लेकिन जो सबसे बड़ा सवाल था- मोदी बनाम कौन, इसका जवाब कोई नहीं दे पा रहा था। अब यहीं पर सारा खेल बदलने जा रहा है। अब कांग्रेस खुलकर राहुल गांधी को बतौर पीएम उम्मीदवार जेक्ट कर सकती है। सवाल ये है कि क्या विपक्ष के दूसरे नेता इस बात को स्वीकार करेंगे या नहीं?

INDIA गठबंधन राहुल की राहत से कितना खुश?

अब मीडिया के सामने तो इंडिया गठबंधन के कई बड़े चेहरे भी राहुल की सजा पर लगी रोक का स्वागत ही करेंगे, ज्यादा हुआ तो कोई ट्विटर पर ट्वीट कर भी बधाई देने का काम कर देंगे। लेकिन राजनीति में हर फैसले के मायने होते हैं। इस फैसले के भी हैं, ऐसे मायने जो विपक्ष के नेताओ को इस समय शायद रास भी ना आएं। इंडिया गठबंधन का जो कुनबा है, वहां पर राहुल गांधी को छोड़कर किन नेताओं को पीएम रेस में माना जा रहा था?

उस लिस्ट में राहुल गांधी के अलावा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, एनसीपी प्रमुख शरद पवार जैसे नेताओं को सबसे अहम माना जा रहा था। ये वो नेता थे जो इंडिया गठबंधन के सबसे बड़े चेहरे कहे जा रहे थे। राहुल की अनुपस्थिति में तो इन्हीं नेताओं में से किसी को ‘बड़ी जिम्मेदारी’ भी दी जा सकती थी। लेकिन अब जब राहुल गांधी की वापसी हो गई है, उस स्थिति में इन सभी नेताओं के दिल्ली जाने वाले सपने भी चकनाचूर हो गए हैं।

नीतीश के टूटे सपने

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महत्वकांक्षा बहुत बड़ी है। जेडीयू के तमाम नेता इस बात की इच्छा पहले ही जाहिर कर चुके हैं कि नीतीश को देश का अगला प्रधानमंत्री बनना चाहिए। जिस तरह से बिहार में पोस्टर लगते हैं, उनकी दावेदारी को मजबूत दिखाने की कोशिश होती है, वो साफ बता देता है कि विपक्ष की अगुवाई करने में नीतीश पीछे नहीं रहना चाहते। इसी वजह से जब पूरे विपक्ष को एकजुट करने की बात हुई तो सबसे पहले तमाम बड़े नेताओं से मिलने का काम भी नीतीश ने ही किया। उसके बाद पटना में पहली बैठक भी उनकी अगुवाई में हो गई। संदेश तो जरूर दिया गया कि नीतीश सामने से लीड कर रहे हैं। इसके ऊपर ऐसी खबरें भी थी कि बाद में नीतीश, तेजस्वी को सीएम पोस्ट देकर दिल्ली के लिए निकल जाएंगे।

लेकिन अब नीतीश के उस नेरेटिव को बड़ी चोट पहुंची है। राहुल गांधी की वापसी के साथ नीतीश की दावेदारी काफी कमजोर हो गई है। कांग्रेस किसी कीमत पर राहुल के अलावा किसी दूसरे चेहरे को स्वीकार नहीं कर सकती। कहने को जरूर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कह चुके हैं कि राहुल या कांग्रेस को पीएम उम्मीदवार बनने की लालसा नहीं है, लेकिन जैसे राजनीतिक समीकरण हैं, राहुल की दावेदारी स्वभाविक तौर पर ज्यादा प्रबल है।

ममता की दिल्ली राह मुश्किल

अब नीतीश को झटका है तो ये ममता बनर्जी के लिए भी कोई खुशखबरी नहीं है। जब तक राहुल गांधी रेस से बाहर थे, ममता की छवि ऐसी थी कि उन्हें बीजेपी के खिलाफ सबसे ज्यादा आक्रमक माना गया। जिस तरह से उन्होंने बंगाल में बीजेपी को करारी शिकस्त दी थी, उनकी दावेदारी काफी मजबूत हुई थी। इसके ऊपर क्योंकि जमीन से जुड़ी नेता रहीं, आंदोलनकारी वाली छवि रही, इसने भी विपक्षी कुनबे में ममता की स्वीकार्यता को बढ़ा दिया था। माना जा रहा था कि मोदी के खिलाफ ममता एक सॉलिड चेहरा हैं। उन्हें भी सबसे बड़ी चुनौती राहुल गांधी से ही मिलनी थी। लेकिन क्योंकि वे बाहर हो गए थे, ऐसे में ममता की दावेदारी तेज गति से आगे बढ़ रही थी। लेकिन अब उस पर अभी के लिए फुल स्टॉप लग गया है।

पवार फिर बैकसीट पर खिसके

ममता की तरह एनसीपी प्रमुख शरद पवार की भी जो थोड़ी बहुत दिल्ली पहुंचने की आस थी, उसको को बड़ा झटका है। पांच दशक से लंबी राजनीति कर चुके पवार कई मौकों पर पीएम बनने के काफी करीब थे। लेकिन हर बार उन्होंने मौका गंवाया और महाराष्ट्र तक ही उनकी राजनीति सीमित रह गई। इस बार बीजेपी को हराने के लिए उनके मार्गदर्शन को भी काफी अहम माना जा रहा था। लेकिन राहुल के फिर सक्रिय हो जाने से उनका काम सिर्फ राह दिखाने तक सीमित हो सकता है।

केजरीवाल नहीं बन पाएंगे विकल्प

अब नीतीश, ममता और पवार तो बड़े और अनुभवी नेता रहे, लेकिन कुछ सालों के अंदर में आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी लोकप्रियता की सीढ़ी चढ़ ली है। पहले दिल्ली में प्रचंड बहुमत के साथ दो बार सरकार बनाई और फिर पंजाब में भी कांग्रेस को उखाड़ फेंका। इसके ऊपर कुछ समय पहले ही पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी मिल गया है। ऐसे में अरविंद केजरीवाल की स्वीकृति दिल्ली-पंजाब के बाहर भी महसूस की जा रही है। उनकी आम आदमी वाली छवि लोगों के बीच पसंद की जाती है, उनकी कई योजनाएं भी सुर्खियों में रही हैं। लेकिन इन सभी खूबियों का फायदा तब तक था, जब तक राहुल पीएम रेस से बाहर थे। केजरीवाल उस समय तक खुद को एक विकल्प के तौर पर देख सकते थे। लेकिन राहुल की वापसी ने अभी के लिए उनके लिए भी पीएम वाले दरवाजे बंद कर दिए हैं।