मंगलवार को राहुल गांधी ने विपक्षी पार्टियों के साथ एक ब्रेकफास्ट मीटिंग बुलाई थी। उद्देश्य था कि मॉनसून सत्र में सरकार को सदन के अंदर मजबूती से घेरने के लिए एक साझी रणनीति तैयार हो। अब इस मीटिंग के आइडिये का क्रेडिट लेने के लिए होड़ मचती दिख रही है।

तृणमूल कांग्रेस का जहां कहना है कि राहुल की ब्रेकफास्ट मीटिंग का आइडिया बंगाल से आया है। वहीं शिवसेना ने भी इस आइडिया पर दावा ठोकते हुए कहा कि राहुल को ये आइडिया महाराष्ट्र से आया है।

दरअसल बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी भी कुछ इसी स्टाइल में मीटिंग करती रही हैं। बंगाल जीत के बाद वो लगातार केंद्र से टकराव के बीच जहां सत्ता पक्ष से मिल रही हैं, वहीं विपक्षी पार्टियों के नेताओं से भी लगातार मुलाकात कर 2024 की रणनीति पर काम कर रही है। शायद यही कारण है कि टीएमसी के सांसद राहुल की इस मीटिंग के आइडिये को बंगाल से जोड़ कर देख रहे हैं।

अगर शिवसेना की बात करें तो महाराष्ट्र में सरकार बनाने के बाद से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी इसी रणनीति पर चल रहे हैं। सीएम के साथ-साथ पार्टी के सांसद संजय राउत भी लगातार ऐसी मीटिंग्स के जरिए सत्ता पक्ष और विपक्ष के साथ तालमेल बैठाते रहे हैं। शायद यही कारण है कि संजय राउत, राहुल गांधी की इस ब्रेक फास्ट मीटिंग के आइडिये पर अपना हक जता रहे हैं।

वहीं राहुल गांधी ने इस मीटिंग को एक नई शुरुआत बताते हुए कहा- “ना हमारे चेहरे जरूरी हैं, ना हमारे नाम। बस ये जरूरी है कि हम जन प्रतिनिधि हैं- हर एक चेहरे में देश की जनता के करोड़ों चेहरे हैं जो महंगाई से परेशान हैं।”

दरअसल राहुल गांधी की ब्रेकफास्ट मीटिंग लगातार सुर्खियां बटोर रही है। राहुल के इस कदम को राजनीतिक गलियारों में एक अलग ही नजर से देखा जा रहा है। विपक्ष में आने के बाद राहुल की ये एक ऐसी मीटिंग है जिसमें विपक्ष ना एकजुट दिखा बल्कि उनके नेतृत्व में इस बैठक में भाग भी लिया। इस मीटिंग में 17 पार्टियों को आमंत्रण दिया गया था। मीटिंग में राजद, सपा, शिवसेना, टीएमसी समेत 14 पार्टियों के नेता पहुंचे। मीटिंग के बाद राहुल ने विपक्ष के नेताओं के साथ संसद तक साइकिल मार्च भी निकाला था।